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लेंस संपादकीय

अलीगढ़ में ‘आई लव मोहम्मद’ से जुड़ा विवादः गंगा-जमुनी तहजीब को नुकसान पहुंचाने का नतीजा

Editorial Board
Editorial Board
Published: November 1, 2025 8:39 PM
Last updated: November 1, 2025 8:39 PM
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हाल के वर्षों में हिंदू बहुसंख्यकवाद को जिस तरह से पोषित किया गया है और किया जा रहा है, उससे हिंदू-मुस्लिम सद्भाव और आपसी विश्वास को खासा नुकसान पहुंचा है। स्थिति कितनी गंभीर हो गई है, यह अलीगढ में चार मंदिरों की दीवारों पर ‘आई लव मोहम्मद’ लिखे जाने से उठे विवाद में देखा जा सकता है, जिसमें बहुसंख्यक समुदाय के चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

इन लोगों का मुस्लिम पड़ोसियों से कथित रूप से संपत्ति का झगड़ा था और वे उन्हें किसी भी तरह फंसाना चाहते थे! कल्पना कीजिए कि यदि ‘आई लव मोहम्मद’ इस नारे के सारे हिज्जे सही होते और पुलिस उन आरोपियों तक नहीं पहुंच पाती या देर से पहुंचती तो क्या होता? आखिर पुलिस उन तक स्पेलिंग की गलतियों से ही पहुंची है!

इस मामले को हाल के महीनों में उत्तर प्रदेश तथा अन्य जगहों पर ‘आई लव मोहम्मद’ के नारों को लेकर हिंदू संगठनों की शिकायत पर पुलिस की कार्रवाइयों से अलग करके नहीं देखा जा सकता। इस मामले की तह में जाएं, तो पता चलता है कि पिछले महीने पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन पर कानपुर में मुस्लिम समुदाय के जुलूस में ‘आई लव मोहम्मद’ के बैनर नजर आए थे, और उसके बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर इस समुदाय को जानबूझकर एक ‘नई परंपरा’ शुरू करने का जिम्मेदार बता दिया।

इसके बाद उत्तर प्रदेश के अनेक शहरों के साथ ही दूसरे राज्यों में पुलिस की इस कार्रवाई के विरोध में प्रदर्शन हुए और ‘आई लव मोहम्मद’ के बैनर और नारे नजर आए। धर्म या मजहब के नाम पर किसी भी तरह की हिंसा को किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता और जिन लोगों ने सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की ही जानी चाहिए।

लेकिन इसके साथ ही यह भी पूछा जाना चाहिए कि हमारे धर्मनिरेपक्ष देश में धार्मिक आस्था के दोहरे मापदंड को कैसे जायज ठहराजा जा सकता है? क्या यह याद दिलाने की जरूरत है कि भारत का संविधान हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता और उसे अभिव्यक्त करने का अधिकार देता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के बाद ‘सबका साथ सबका विकास का वादा किया था, लेकिन देश के सबसे बड़े सूबे में उनकी ही पार्टी की सरकार के शासन में इसकी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इस मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह की बयानबाजी की है, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता, यह उनके पद की गरिमा और उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी के अनुकूल नहीं है।

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