मुंबई के बांद्रा इलाके में बुधवार को नई बॉम्बे हाईकोर्ट बिल्डिंग की नींव रखी गई। इस मौके पर भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई (CJI Gavai) ने साफ लफ्जों में कहा कि यह इमारत फिजूलखर्ची की मिसाल न बने। उन्होंने कहा, ‘ यह न्याय का मंदिर होना चाहिए, कोई सेवन स्टार होटल की तरह नहीं।’ सीजेआई ने लोकतंत्र के मूल्यों को ध्यान में रखते हुए निर्माण की योजना बनाने पर जोर दिया।
कार्यक्रम के दौरान सीजेआई गवई ने वकीलों और अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायपालिका अब पुराने जमाने की तरह राजशाही का प्रतीक नहीं रही। ‘न्यायाधीशों की नियुक्ति आम लोगों की सेवा के लिए होती है, न कि रईसों की तरह रहने के लिए।’ उन्होंने अखबारों में छपी खबरों का जिक्र करते हुए चिंता जताई कि नई बिल्डिंग में दो जजों के लिए अलग-अलग लिफ्ट जैसी महंगी सुविधाएं क्यों?
उनका मानना है कि पैसे की बर्बादी से बचना जरूरी है।सीजेआई ने यह भी याद दिलाया कि कोर्ट हाउस का असली मकसद वकीलों और जजों की सुविधा ही नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की जरूरतें पूरी करना है जो न्याय की उम्मीद लेकर आते हैं। ‘ हम जजों की सोच से ज्यादा, आम नागरिकों की भावनाओं को प्राथमिकता दें।’ यह कहते हुए उन्होंने मुंबई की इस यात्रा को अपनी आखिरी यात्रा बताया।
दरअसल, 14 मई 2025 को पद संभालने वाले सीजेआई गवई 24 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। उन्होंने भावुक होकर कहा ‘महाराष्ट्र मेरी जन्मभूमि है। बॉम्बे हाईकोर्ट में सेवा करने के बाद अब पूरे देश के लिए सर्वश्रेष्ठ कोर्ट बिल्डिंग की नींव रखकर विदा हो रहा हूं। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है।’
पुरानी इमारत का ऐतिहासिक महत्व
सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी इस कार्यक्रम में शिरकत की। उन्होंने बताया कि मुंबई का मौजूदा बॉम्बे हाईकोर्ट भवन 1862 से खड़ा है और देश के कई बड़े ऐतिहासिक फैसलों का गवाह रहा है। ‘यह पुरानी इमारत नई बिल्डिंग की तरह ही मजबूत और लोकतांत्रिक होनी चाहिए, साम्राज्यवादी नहीं।’ सीएम ने वास्तुकार हफीज कॉन्ट्रैक्टर से अपील की कि डिजाइन में भव्यता तो हो, लेकिन फिजूलखर्ची न हो।
दिलचस्प बात यह है कि पुराने भवन का निर्माण मात्र 16,000 रुपये में हुआ था और बजट में 300 रुपये की बचत भी हुई थी। सीएम ने नई परियोजना को इसी सादगी का प्रतीक बनाने की बात कही।
न्याय, विधायिका और कार्यपालिका का संतुलन
सीजेआई गवई ने अपने भाषण के अंत में कहा कि न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका तीनों को संविधान के दायरे में रहकर समाज को न्याय दें। ‘ये तीनों पहिए एक साथ चलें, तभी लोकतंत्र मजबूत होगा।’ कार्यक्रम में बॉम्बे हाईकोर्ट के जज, वकील और सरकारी अधिकारी मौजूद थे।

