रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 5 दिसंबर 2025 को भारत यात्रा से वापस लौटे और अगले ही दिन बाबा रामदेव ने अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए रूस के साथ बड़ी डील कर ली। नई दिल्ली में पतंजलि ग्रुप और रूसी सरकार के बीच एक MoU पर हस्ताक्षर हुए।
यह MoU पतंजलि योगपीठ और रूस की सरकार के बीच हुआ, जिसमें स्वामी रामदेव ने पतंजलि की ओर से तथा सेर्गेई चेरेमिन (इंडो-रूस बिजनेस काउंसिल के अध्यक्ष एवं रूसी वाणिज्य मंत्री) ने रूस की ओर से हस्ताक्षर किए। पुतिन के लौटते ही रामदेव ने रूस का मार्केट फतह कर लिया! यह सब हुआ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सदारत में।

अब बाबा की ‘दुकानें ‘ रूस में भी खुलेंगी। बाबा रामदेव और उनकी कंपनियां और ट्रस्ट हेल्थ, वेलनेस, योग, आयुर्वेद, हर्बल उत्पादों, स्वास्थ्य पर्यटन, कुशल मानव संसाधन आदान-प्रदान तथा संयुक्त अनुसंधान के क्षेत्र में भी सक्रिय होंगी। इस समझौते का मुख्य मकसद है :
- रूस में पतंजलि की वेलनेस सेवाओं का विस्तार, जिसमें योग तथा आयुर्वेदिक उत्पादों का प्रचार मुख्य है।
- एंटी -एजिंग तथा गंभीर बीमारियों की प्रारंभिक पहचान पर संयुक्त अनुसंधान।
- पतंजलि को रूसी बाजार में प्रवेश दिलाना तथा रूसी ब्रांडों को भारत में लाना।
- योग प्रशिक्षकों तथा कुशल श्रमिकों का पारस्परिक आदान-प्रदान।
यह MoU भारत-रूस के 23वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के बाद हुआ, जो दोनों देशों के बीच 2030 तक आर्थिक सहयोग को सुदृढ़ करने का हिस्सा है। इससे पतंजलि को रूस के 14 करोड़ उपभोक्ताओं वाले बाजार में एंट्री मिल जाएगी। पतंजलि का माल रूस में भी बिकेगा। बाबा का साम्राज्य रूस तक होगा।
स्वामी रामदेव ने योग और प्राणायाम से अपने साम्राज्य को बढ़ाया और अब वे इस बिजनेस में ग्लोबल प्लेयर बनने की कोशिश में हैं। भारत में ही बाबा रामदेव का सफर चुनौतियों और विवादों से भरा रहा है। रामदेव और उनकी कंपनियों के खिलाफ 100 से अधिक कानूनी मामले दर्ज हो चुके हैं, जिनमें भ्रामक विज्ञापन, स्वास्थ्य दावों पर सवाल, साम्प्रदायिक टिप्पणियां, श्रम कानून का उल्लंघन, उत्पाद गुणवत्ता की समस्याएं और राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप शामिल हैं।
2005 में हरिद्वार स्थित दिव्य योग फार्मेसी (उनके ट्रस्ट की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट) पर 115 कर्मचारियों की बर्खास्तगी का आरोप लगा। सुप्रीम कोर्ट ने श्रम कानूनों के उल्लंघन का मामला दर्ज किया।
कोविड-19 महामारी रामदेव के लिए सबसे विवादास्पद दौर साबित हुई। जून 2020 में उन्होंने ‘कोरोनिल’ को ‘कोविड का इलाज’ बताकर लॉन्च किया, दावा किया कि यह वायरस को 3-7 दिनों में ठीक कर देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की कथित ‘प्रमाणन’ का हवाला दिया, जो गलत साबित हुआ।
गुजरात हाई कोर्ट ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया, जबकि कई राज्यों (जैसे बिहार, तेलंगाना) में बिक्री पर रोक लग गई।
मई 2021 में विवाद चरम पर पहुंचा जब रामदेव ने एलोपैथी को ‘बेवकूफ विज्ञान’ कहा और दावा किया कि रेमडेसिविर जैसी दवाओं से ‘लाखों मौतें’ हुईं। इंडि यन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने मुकदमा दायर किया, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए बयान वापस लेने को कहा। रामदेव ने पहले माफी मांगी, फिर 25 सवालों के साथ पलटवार किया।
2022 से पतंजलि के च्यवनप्राश, आमला जूस जैसे प्रोडक्ट्स पर भ्रामक दावों के मामले बढ़े। IMA ने थायरॉइड, डायबिटीज जैसी बीमारियों के ‘इलाज’ के दावों पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। अप्रैल 2024 में कोर्ट ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को ‘जानबूझकर अवज्ञा’ का दोषी ठहराया, सार्वजनिक माफी का आदेश दिया।
जनवरी 2025 में केरल कोर्ट ने डायबिटीज दावों पर गिरफ्तारी वारंट जारी किया। SSAI ने सबस्टैंडर्ड फूड (जैसे आमला जूस) पर बैन लगाया। दिसंबर 2024 में डाबर ने च्यवनप्राश विज्ञापन पर दिल्ली हाई कोर्ट में केस किया, रामदेव को ‘आदतन अपराधी’ कहा।
बाबा रामदेव के कई राजनीतिक विवाद भी रहे। BBC डॉक्यूमेंट्री से कांवड़ यात्रा तक (2014-2025) उनके बयान एक पक्षीय रहे। कई बयानों को कम्युनल भी कहा गया। ये विवाद रामदेव की ‘स्वदेशी क्रांति’ को चुनौती देते रहे, लेकिन पतंजलि का टर्नओवर बढ़ता रहा। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार फटकार लगाई। ‘उपभोक्ता से धोखा’ और ‘सामाजिक हानि’ की बात कही। इसके बावजूद रामदेव और उनका ‘कारोबार’ विस्तार पाता रहा।
शुरू में बाबा केवल योगाचार्य थे, फिर उनकी आयुर्वेदिक दवाएं बिकने लगीं। फिर बाबा रामदेव ‘स्वदेशी क्रांति’ के नाम पर हर तरह का सामान बेचने लगे। का नाम दिया। “विदेशी कंपनियां हमें लूट रही हैं,” वे चिल्लाते। और जनता ने सुना। 2011 तक पतंजलि का टर्नओवर 1,100 करोड़ हो गया। आज? 45,000-50,000 करोड़ सालाना!
अब बाबा का डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन तथा 50% वृद्धि लक्ष्य हैं। भविष्य में 1 लाख स्टोर तथा 5 लाख करोड़ मार्केट कैप का सपना है। रामदेव का संदेश: “स्वास्थ्य ही धन है, स्वदेशी ही शक्ति।”
रामदेव का साम्राज्य जमीन पर टिका है – और वे भारत के सबसे बड़े ‘निजी जमींदारों’ में शुमार हो चुके हैं। 2025 तक, पतंजलि और जुड़े ट्रस्ट्स (पतंजलि योगपीठ, दिव्य योग मंदिर) ने खरीदकर या लीज पर लगभग 3,500-4,000 एकड़ जमीन पर कब्जा किया है। यह आंकड़ा फैक्ट्री, हर्बल पार्क, गौशालाओं और रिसर्च सेंटर्स का है। 2014 से अब तक ~2,500 एकड़ अधिग्रहण हुआ।
उत्तराखंड (हरिद्वार): योगपीठ मुख्यालय करीब 1,000 एकड़ का है। महाराष्ट्र के नागपुर SEZ में 650 एकड़, यूपी के यमुना एक्सप्रेस वे पर 455 एकड़, हरियाणा (फरीदाबाद-अरावली) में 400+ एकड़ (शेल कंपनियों से स्वामित्व, हर्बल पार्क) हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में भी सैकड़ों एकड़ ज़मीन है बाबा रामदेव के पास।
बाबा का कारोबार भारत के बाहर भी बीस से ज्यादा देशों में है और 14 करोड़ की आबादीवाले रूस में भी बाबा ने बाजार खोज लिया है। बाबा को अब रूस में आयुर्वेदिक उत्पादों को ‘डाइटरी सप्लीमेंट्स ‘ के रूप में रजिस्टर कराना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपोर्ट उन्हें और उनके कारोबार को रूस प हुंचा सकता है, लेकिन वहां कानूनों के अनुसार ही उन्हें चलना पड़ेगा।

