[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
नक्सलियों की बौखलाहट, तिरंगा फहराने वाले युवक की हत्या
कानून बनते ही रियल मनी गेमिंग ऑपरेशन बंद
आबकारी अधिकारियों की अग्रिम जमानत खारिज करते हाईकोर्ट ने कहा – वे क्यों गिरफ्तार नहीं हुए, वजह जानते हैं
24 अगस्त को सृजन संवाद-2 : नए रचनाकारों की साहित्यिक प्रस्तुति
अस्पतालों को नहीं मिला आयुष्मान भारत योजना का भुगतान, IMA ने रखी मांग
Online Gaming Bill संसद में पास, जानिए 3.8 अरब डॉलर के कारोबार पर क्‍या होगा असर?
GST Reform : टैक्स स्लैब में बड़े बदलाव की तैयारी, दो स्लैब की व्यवस्था जल्द लागू होगी
मानसूत्र सत्र खत्‍म: एक महीने में सिर्फ 37 घंटे काम, लोकसभा में 12 और राज्यसभा में 14 विधेयक पारित
बढ़ते अपराध से परेशान जनता ने पुलिस के खिलाफ निकाली रैली, 15 दिनों का अल्टीमेटम दिया
अजीम प्रेमजी फाउंडेशन छत्तीसगढ़ में खोलेगा 2 अस्पताल
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.
दुनिया

क्या दुनिया की सेहत संकट में है ? WHO की फंडिंग में कमी साजिश या राजनीति ?

पूनम ऋतु सेन
Last updated: May 20, 2025 7:55 pm
पूनम ऋतु सेन
Byपूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की...
Follow:
Share
WHO FUND ISSUE
WHO FUND ISSUE
SHARE

क्या आपने कभी सोचा कि भारत में पोलियो का खात्मा कैसे हुआ? या कोविड-19 के दौरान वैक्सीन और स्वास्थ्य सलाह पूरी दुनिया तक कैसे पहुँची? विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO FUND ISSUE) ने इन उपलब्धियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन आज यह संगठन गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहा है। इसका असर भारत से लेकर दुनिया भर के लाखों लोगों की जिंदगी पर पड़ सकता है खासकर उन गरीब परिवारों पर जो स्वास्थ्य सेवाओं के लिए WHO पर निर्भर हैं। आइए जानते हैं कि यह संकट क्यों और कैसे पैदा हुआ और इसका भारत और वैश्विक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होगा।

खबर में खास
WHO: वैश्विक स्वास्थ्य की रीढ़WHO का वित्तीय संकट: आंकड़ों मेंसंकट की जड़: वैश्विक सियासत और अमेरिका की भूमिकावैश्विक प्रभाव: गरीब देशों पर भारी मारभारत पर असर: पहले से कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबावWHO की फंडिंग संरचना: मूल समस्यापीपल्स हेल्थ मूवमेंट के ग्लोबल कोऑर्डिनेटर टी. सुंदररमन से बातचीतआगे की राह: एकजुटता की जरूरत

WHO: वैश्विक स्वास्थ्य की रीढ़

1948 में स्थापित विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) एक संयुक्त राष्ट्र एजेंसी है जो 194 देशों के साथ मिलकर सभी के लिए उच्चतम स्वास्थ्य सुविधाएँ सुनिश्चित करने का मिशन संचालित करता है। WHO बीमारियों की रोकथाम, उपचार, और निगरानी के लिए दिशानिर्देश बनाता है, महामारियों और प्राकृतिक आपदाओं में दवाएँ, चिकित्सा दल, और संसाधन प्रदान करता है, और नई दवाओं, वैक्सीन्स, और स्वास्थ्य तकनीकों के लिए अनुसंधान को बढ़ावा देता है। भारत में WHO ने पोलियो उन्मूलन (2014), तपेदिक (टीबी) नियंत्रण, और मातृ-शिशु स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन इन सभी कार्यों को चलाने के लिए पैसा चाहिए, और यहीं से शुरू होता है WHO का वित्तीय संकट।

WHO का वित्तीय संकट: आंकड़ों में

2024-25 के लिए WHO का बजट 6.83 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 5 खरब रुपये) था, लेकिन 2025-28 के लिए इसे 11.1 बिलियन डॉलर की जरूरत है। अभी तक केवल 4 बिलियन डॉलर (लगभग 3 खरब रुपये) मिले हैं, यानी 7.1 बिलियन डॉलर की कमी है । इस कारण 2026-27 के लिए WHO को अपने बजट में 21% की कटौती करनी पड़ी, जो अब केवल 4.2 बिलियन डॉलर है। यह कमी सिर्फ कागजी आँकड़ा नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की जिंदगी से जुड़ी है जो WHO की मदद पर निर्भर हैं।

संकट की जड़: वैश्विक सियासत और अमेरिका की भूमिका

इस संकट का प्रमुख कारण वैश्विक सियासत और फंड देने वाले देशों की बदलती प्राथमिकताएँ हैं। अमेरिका, WHO का सबसे बड़ा दानदाता, जो इसकी कुल फंडिंग का 18% और आपातकालीन फंडिंग का 34% देता था, डोनाल्ड ट्रम्प की दूसरी सरकार के तहत 2025 में फंडिंग में भारी कटौती की। ट्रम्प प्रशासन ने WHO पर कोविड-19 को गलत तरीके से संभालने और चीन के प्रभाव में होने का आरोप लगाया, और 2024 में 130 मिलियन डॉलर का फंड रोक दिया। इसके अलावा, PEPFAR (President’s Emergency Plan for AIDS Relief) के लिए फंडिंग में 6% (4.4 बिलियन डॉलर) की कटौती और USAID के 83% कार्यक्रमों का समापन किया गया, जिसने टीबी, एचआईवी, और मातृ-शिशु स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावित किया।

PEPFAR, जो 50 देशों में 20 मिलियन लोगों को एचआईवी उपचार देता है, अब 8 देशों में एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी की कमी से जूझ रहा है। WHO के निदेशक-जनरल टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने चेतावनी दी कि अमेरिकी फंडिंग के बिना टीबी सेवाएँ जिन्होंने 79 मिलियन जिंदगियाँ बचाईं और मीजल्स-रूबेला निगरानी जैसे कार्यक्रम ठप हो सकते हैं। ट्रम्प ने तर्क दिया कि अमेरिका 500 मिलियन डॉलर देता था, जबकि चीन केवल 39 मिलियन, जो उन्हें ‘पूरी तरह अनुचित’ लगा। इस कटौती ने WHO को जिनेवा मुख्यालय में कर्मचारी छंटनी और पुनर्गठन के लिए मजबूर कर दिया। यूरोपीय देश जैसे जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम ने भी रक्षा खर्च बढ़ाने के लिए विकास सहायता में कटौती शुरू की, जिसने संकट को और गहरा किया।

वैश्विक प्रभाव: गरीब देशों पर भारी मार

सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट के अनुसार, 26 निम्न और मध्यम आय वाले देश इस संकट से सबसे अधिक प्रभावित होंगे। दक्षिण सूडान में 19,000 लोग स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित होंगे, सोमालिया में 50 स्वास्थ्य केंद्र बंद हो जाएँगे बांग्लादेश में 6 लाख महिलाएँ और बच्चे मातृत्व स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित होंगे और अफगानिस्तान में 167 स्वास्थ्य सुविधाएँ बंद होने से 16 लाख लोग प्रभावित होंगे। जून 2025 तक 80% WHO-सहायता प्राप्त सेवाएँ बंद हो सकती हैं। टीबी, एचआईवी, और मलेरिया जैसे रोगों का नियंत्रण खतरे में है, और 2030 तक 22 लाख अतिरिक्त टीबी मृत्यु का अनुमान है। ये आँकड़े सिर्फ संख्याएँ नहीं, बल्कि उन माँओं, बच्चों, और परिवारों की कहानियाँ हैं जो स्वास्थ्य सेवाओं के बिना जीने को मजबूर होंगे।

भारत पर असर: पहले से कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव

भारत भी इस संकट से अछूता नहीं है। WHO ने भारत में पोलियो उन्मूलन (2014), टीबी नियंत्रण (30 लाख वार्षिक मामले), और मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी (NFHS-5 के अनुसार MMR 113 प्रति लाख) में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन फंडिंग कटौती से 31,053 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) और 1,61,829 उप-स्वास्थ्य केंद्रों (SHCs) को तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण मिलना मुश्किल हो सकता है। भारत का स्वास्थ्य बजट, जो GDP का केवल 1.3-1.4% है, वैश्विक औसत (6%) से काफी कम है। 2023-24 में 5.9% का राजकोषीय घाटा स्वास्थ्य खर्च बढ़ाने में बाधा है। कोविड-19 का नया वैरियंट JN.1, जो जनवरी 2025 तक 15 राज्यों में 1,000 से अधिक मामलों के साथ फैल चुका है, निगरानी और महामारी तैयारियों की कमजोरियों को उजागर करता है। यदि WHO की सहायता कमजोर हुई, तो एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP) और जीनोमिक सीक्वेंसिंग प्रभावित हो सकती है, जो भारत जैसे घनी आबादी वाले देश के लिए खतरनाक है।

WHO की फंडिंग संरचना: मूल समस्या

WHO की फंडिंग का 81% स्वैच्छिक अंशदानों से आता है, जो अक्सर विशिष्ट परियोजनाओं के लिए बंधा होता है, जबकि केवल 16.8% अनिवार्य अंशदान है। इस संरचना में लचीलापन कम होने से WHO को अपने आपातकालीन कोष से 2 मिलियन डॉलर अतिरिक्त खर्च करना पड़ा, जिससे 70% देश कार्यालयों में सेवाएँ प्रभावित हुई हैं। जर्मनी (392 मिलियन डॉलर) और स्विट्जरलैंड (80 मिलियन डॉलर) ने अतिरिक्त सहायता का वादा किया है, और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन मदद कर रहा है, लेकिन यह नाकाफी है। WHO अब निजी क्षेत्र और वैकल्पिक फंडिंग की तलाश में है, और 2030 तक 50% बजट अनिवार्य अंशदानों से प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है।

पीपल्स हेल्थ मूवमेंट के ग्लोबल कोऑर्डिनेटर टी. सुंदररमन से बातचीत

टी. सुंदररमन
पीपल्स हेल्थ मूवमेंट के ग्लोबल कोऑर्डिनेटर
नेशनल हेल्थ सिस्टम्स रिसोर्स सेंटर, नई दिल्ली के पूर्व कार्यकारी निदेशक

द लेंस ने पीपल्स हेल्थ मूवमेंट के ग्लोबल कोऑर्डिनेटर और नेशनल हेल्थ सिस्टम्स रिसोर्स सेंटर, नई दिल्ली के पूर्व कार्यकारी निदेशक टी. सुंदररमन से इस मुद्दे पर बात की। उन्होंने कहा, “WHO को निजी फंडिंग वित्तीय स्थिरता दे सकती है, लेकिन बहुराष्ट्रीय निगमों और बिग फार्मा की शर्तों से हितों का टकराव हो सकता है, जिससे WHO की तटस्थता और विकासशील देशों का भरोसा कमजोर होगा। निजी फंडिंग महंगी दवाओं को प्राथमिकता दे सकती है, जिससे सस्ती जेनेरिक दवाएँ और स्थानीय टीके आम लोगों तक नहीं पहुँचेंगे।” सुंदररमन ने बताया कि फंडिंग कटौती राजनीतिक निर्णयों से प्रेरित है, जो बिग फार्मा के मुनाफे को बढ़ावा देती है। उन्होंने कहा, “वैश्विक सैन्य खर्च का छोटा हिस्सा WHO की जरूरतें पूरी कर सकता है। WHO का बजट अमेरिका या यूरोप के किसी बड़े अस्पताल के सालाना खर्च जितना है।” समाधान के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि देशों को सैन्य खर्च के बजाय स्वास्थ्य फंडिंग पर जोर देना होगा, विकासशील देशों को नीति निर्माण में अधिक भूमिका निभानी होगी, और WHO को निजी फंडिंग पर सख्त दिशानिर्देश लागू करने होंगे।

आगे की राह: एकजुटता की जरूरत

WHO की फंडिंग की कमी एक वैश्विक स्वास्थ्य आपदा की ओर इशारा करती है। अगर टीबी, एचआईवी, और मातृ स्वास्थ्य जैसे कार्यक्रम रुकते हैं, तो इसका असर दशकों तक रहेगा। भारत को अपने स्वास्थ्य बजट को NHP 2017 के 2.5% GDP लक्ष्य तक बढ़ाना होगा, प्रो-हेल्थ टैक्स लागू करना होगा, और निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी को मजबूत करना होगा। WHO ने दिखाया है कि एकजुट होकर असंभव को संभव बनाया जा सकता है, लेकिन अब समय है कि दुनिया फिर से एकजुट हो। यह संकट सिर्फ WHO का नहीं, हम सबका है। क्या हम एक स्वस्थ भविष्य के लिए तैयार हैं?

TAGGED:GLOBAL HEALTHISSUELatest_NewsUN ORGANISATIONwhoWHO FUNDS
Byपूनम ऋतु सेन
Follow:
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
Previous Article JAYANT NARLIKAR PASSES AWAY खगोलशास्त्री जयंत विष्णु नार्लीकर का निधन, खामोश हो गई विज्ञान को सरल भाषा में समझाने वाली आवाज
Next Article Jindal Steel Plant छत्तीसगढ़ के जिंदल स्टील प्लांट के कर्मचारी सीमावर्ती गांवो के पुनर्वास के लिए देंगे एक दिन की सैलरी

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow

Popular Posts

23,722 महिलाएं हैं भारतीय जेल में बंद  

नई दिल्ली । 2022 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक भारत…

By The Lens Desk

चीफ जस्टिस गवई ने योगी को बताया पावरफुल, योगी ने कहा सरकारी कामों में स्टे न देना सराहनीय

नेशनल ब्यूरो/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने शनिवार को इलाहाबाद में…

By Lens News Network

जस्टिस वर्मा पर लटकी महाभियोग की तलवार, निगाहें मानसून सत्र पर

नई दिल्ली। (Impeachment on Justice Verma) इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के…

By Lens News Network

You Might Also Like

दुनिया

अमेरिका ने भारत पर ‘जैसे को तैसा’ टैरिफ लगाया, अब अमेरिका में प्रोडक्ट बेचने पर 26 फीसदी देना होगा टैरिफ

By दानिश अनवर
Pakistan, Prime Minister Shahbaz Sharif
दुनिया

भारत से बातचीत को तैयार पाकिस्तान, ईरान में शहबाज शरीफ का बड़ा बयान

By The Lens Desk
Sanjay Kumar CSDS
देश

राहुल गांधी ने CSDS के डेटा का इस्‍तेमाल नहीं किया : कांग्रेस   

By अरुण पांडेय
JSM National Conference
साहित्य-कला-संस्कृति

रांची में हुआ जन संस्कृति मंच का 17वां राष्ट्रीय सम्मेलन, फासीवाद के खिलाफ एकता और सृजन का संकल्प

By पूनम ऋतु सेन
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?