नई दिल्ली। उत्तराखंड के देहरादून में प्रस्तावित रिस्पना-बिंदल एलिवेटेड कॉरिडोर परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। इसमें कई हितधारकों ने कहा कि इससे नदियां नष्ट हो जाएंगी और हजारों निवासी विस्थापित हो जाएंगे।
यह विरोध प्रदर्शन बाढ़ की गंभीर स्थिति के बाद लिया गया। महत्वपूर्ण है कि जिले में भारी बारिश के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण कम से कम 29 लोगों की मौत हो गई थी और आठ लोग लापता बताए गए थे।
6,200 करोड़ रुपये की लागत वाली यह सड़क परियोजना, देहरादून की दो प्रमुख नदियों, रिस्पना और बिंदाल, के किनारों पर लगभग 26 किलोमीटर लंबी है । इसमें दो सड़कें शामिल हैं जिनसे शहर में यातायात की भीड़ कम होने और पर्यटकों को मसूरी जल्दी पहुँचने में मदद मिलने की उम्मीद है।
इंडियन एक्सप्रेस ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से बताया कि इस परियोजना के कारण 2,600 से अधिक संरचनाओं को अधिग्रहित की जाने वाली भूमि से विस्थापन का खतरा है।
बाढ़ का भारी खतरा
इस योजना में प्रवाह चैनलों के कारण बाढ़ के पानी को किनारों पर धकेलने की चिंता भी जताई गई है, तथा यदि दोनों नदियों के किनारे तटबंध, स्तंभ और बाढ़ दीवारें बनाई गईं तो जलभृतों को संभावित खतरा हो सकता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार , रविवार को सैकड़ों निवासियों ने , कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविदों और अन्य हितधारकों के साथ, प्रस्तावित परियोजना के खिलाफ विरोध मार्च निकाला । वे गांधी पार्क से लैंसडाउन चौक तक मार्च कर रहे थे, जहाँ पुलिस ने उन्हें रोक दिया।
प्रदर्शनकारियों को कनक चौक पर अपना मार्च समाप्त करने की अनुमति दी गई, जहां उन्होंने सिटी मजिस्ट्रेट को मांगों का एक ज्ञापन सौंपा।
नदियों के नष्ट होने का खतरा
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार , विरोध प्रदर्शन के दौरान पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा सहित कई वक्ताओं ने दावा किया कि यह परियोजना रिस्पना और बिंदाल नदियों को नष्ट कर देगी, हजारों निवासियों को विस्थापित करेगी और शहरी गर्मी को बढ़ाएगी।
इससे पेयजल की कमी और भी बदतर हो जाएगी, प्रदूषण बढ़ेगा तथा क्षेत्र में पर्यावरण को गंभीर नुकसान होगा। सीवर के लिए गया था खोदा
टाइम्स ऑफ इंडिया ने पर्यावरण कार्यकर्ता और अधिवक्ता अभिजय नेगी के हवाले से बताया कि दोनों नदी तलों को लगभग 10 वर्ष पहले सीवर लाइन बिछाने के लिए खोदा गया था।
अखबार ने नेगी के हवाले से कहा, ‘हाल ही में हुई मूसलाधार बारिश के दौरान जब मलबा नदी में आया, तो सीवर की वे जाली फिर से ऊपर आ गईं और सीवेज लोगों के घरों में भर गया। यह बहुत ही चौंकाने वाला था।’
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