मुंबई के मिल वाले क्षेत्र परेल में लालबाग इलाका है। इस क्षेत्र में मिल के मजदूर बड़ी धूमधाम से गणेश उत्सव मनाया करते थे। अब मिलें तो बंद हो गईं, लेकिन गणेश उत्सव जारी है। इस बार इस गणेश उत्सव का 92 वां वर्ष है।
इस क्षेत्र में धूमधाम से गणेश प्रतिमा की स्थापना की जाती है। उसे ‘लालबागचा राजा’ यानी लाल बाग का राजा कहा जाता है। यह मुंबई ही नहीं, दुनिया का सबसे विशालतम अस्थायी गणेश पंडाल है। जहां गणेश उत्सव के दौरान करीब डेढ़ करोड़ लोग आते हैं। कुछ खास दिनों में आने वालों की संख्या 25 लाख तक होती है।
इन लोगों में राजनेता, उद्योगपति, फिल्मी कलाकार, खिलाड़ी, समाज सेवक और दुनिया भर से आए आम लोग भी शामिल होते हैं। इतने बड़े गणेश उत्सव के आयोजन में करोड़ों रुपए खर्च होते हैं और इस गणेश उत्सव की प्रतिमा के सामने जो दान पेटी रखी है, उसमें लोग नकदी, सोने -चांदी के जेवर, हीरे-जवाहरात, हुंडिया और तमाम महंगी चीज दान में दे जाते हैं। उसकी कीमत करीब 50 करोड़ रुपये बताई जाती है।
यह गणेश उत्सव कितना भव्य है, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस गणेश प्रतिमा के लिए 15 करोड रुपए का सोने का मुकुट बनाया गया है। प्रतिमा तो मिट्टी की होती है, लेकिन उनके चरण सोने के बनाए गए हैं। गणेश प्रतिमा के दर्शन करने के लिए अलग-अलग कतारें लगती है। वीआईपी लोगों की अलग लाइन, चरण वंदना करने वालों की अलग लाइन, शीश वंदना करने वालों की अलग-अलग लाइन, आम दर्शकों की अलग लाइन!
एक लाइन उन लोगों की, जो कुछ ख़ास मन्नत मांगने या मन्नत पूरी होने पर आभार मानने के लिए आते हैं। वीआईपी लोगों को भी तीन-तीन, चार-चार घंटे लाइन में लगना पड़ता है और आम दर्शकों को लाइन में खड़े-खड़े करीब 24 घंटे तक हो जाते हैं !
इस प्रतिमा के सामने आए चढ़ावे से समाज सेवा के बहुत सारे काम होते हैं। हजारों लोगों का इलाज होता है और आयोजन पर खर्च भी इसी में से निकाला जाता है।
आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि अगर किसी अस्थायी मंदिर में इतनी भीड़ उमड़ती हो और इतना दान प्राप्त होता हो तो भारत में जो प्राचीनतम मंदिर हैं, उनकी आय कितनी होती होगी ! भारत के मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के केंद्र हैं,बल्कि वह उसे इलाके की बड़ी आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी है। मंदिरों का अपना अर्थशास्त्र और अर्थ व्यवस्था है, इसे टेंपल इकोनॉमी कहा जाता है।
मंदिरों का चढ़ावा, मंदिरों के यात्रियों से होने वाली आय, यात्रियों के आने-जाने में लगने वाले साधनों का कारोबार, होटल, धर्मशाला, लॉज का कारोबार और मंदिर में प्रसाद का कारोबार मिलकर एक अलग ही अर्थव्यवस्था को जन्म देते हैं।
धर्म न केवल आध्यात्मिकता का स्रोत है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों को भी प्रभावित करता है। पिछले कुछ दशकों में, कुछ धार्मिक गतिविधियों और संस्थानों का उपयोग आर्थिक लाभ के लिए होने लगा है, जिसके कारण ‘धर्म धंधा बन गया है’ जैसे कथन प्रचलित हुए हैं।
कई प्रमुख मंदिर और तीर्थ स्थल भक्तों से प्राप्त दान, चढ़ावे और अन्य स्रोतों से भारी राजस्व अर्जित करते हैं। उदाहरण के लिए, तिरुपति बालाजी मंदिर और वैष्णो देवी मंदिर, उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर जैसे स्थान सालाना अरबों रुपये का राजस्व प्राप्त करते हैं।
मंदिरों में विशेष दर्शन और वीआईपी टिकट जैसी व्यवस्थाएं शुरू हो गई हैं, जहां अधिक पैसे देने वाले भक्तों को जल्दी और विशेष दर्शन की सुविधा दी जाती है। यह सामान्य भक्तों के लिए असमानता पैदा करता है और धार्मिक भावनाओं का व्यावसायीकरण है।
तिरुपति बालाजी मंदिर (तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम, आंध्र प्रदेश) विश्व के सबसे धनी मंदिरों में से एक है। भक्तों द्वारा चढ़ाए गए नकद, सोना और अन्य कीमती सामान से मंदिर को सालाना अरबों रुपये की आय होती है।
2023-24 में मंदिर का अनुमानित राजस्व 1,200 करोड़ रुपये से अधिक था। मंदिर की हुंडी में भक्तों द्वारा चढ़ाए गए नकद और कीमती सामान प्रमुख आय का स्रोत हैं। विशेष दर्शन टिकट की कीमत 300 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक हो सकती है।
तिरुपति का लड्डू प्रसाद एक ब्रांड बन चुका है और इसकी बिक्री से भी लाखों रुपये की आय होती है।मंदिर परिसर में आवास, परिवहन और अन्य सुविधाएं भी आय का स्रोत हैं। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) एक स्वायत्त संगठन है, जो मंदिर के संचालन, रखरखाव, और सामाजिक कल्याण योजनाओं को चलाता है। TTD अपनी आय का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, और धार्मिक गतिविधियों के लिए भी करता है।
वैष्णो देवी मंदिर (जम्मू और कश्मीर) को भक्तों द्वारा चढ़ाए गए दान और सामग्री से मंदिर को सालाना 500-600 करोड़ रुपये की आय होती है।मंदिर तक पहुंचने के लिए हेलीकॉप्टर, पालकी और घोड़े जैसी सेवाएं प्रदान की जाती हैं, जिनसे अतिरिक्त राजस्व मिलता है।
मंदिर परिसर में प्रसाद और धार्मिक सामग्री की बिक्री भी आय का स्रोत है। वैष्णो देवी मंदिर का मॉडल तीर्थ यात्रा पर आधारित है, जहां यात्रा से संबंधित सेवाएं और दान प्रमुख आय स्रोत हैं। श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड मंदिर का संचालन करता है और आय का उपयोग तीर्थयात्रियों की सुविधाओं, सुरक्षा, और सामाजिक कार्यों के लिए करता है।
महाराष्ट्र का शिरडी साई बाबा मंदिर भक्तों का केन्द्र है। मंदिर की वार्षिक आय लगभग 400 करोड़ है, जिसमें लड्डू प्रसाद की बिक्री से भी आय होती है। मंदिर के पास 380 किलो सोना, 4,428 किलो चांदी और ₹2,500 करोड़ नकद जमा है। मंदिर के पास विदेशी मुद्राओं में भी धन जमा है और 2017 में एक भक्त ने 12 किलो सोना दान किया था।
मंदिर ट्रस्ट अपनी आय का उपयोग मंदिर के रखरखाव और संचालन,प्रसाद और धार्मिक अनुष्ठानों की व्यवस्था, परोपकारी कार्य जैसे अस्पताल, स्कूल और गरीबों के लिए भोजन वितरण और कर्मचारियों के वेतन और प्रशासनिक खर्च में करता है।
मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर की वार्षिक आय लगभग ₹125 करोड़ है, जो दान और चढ़ावे से आती है। मंदिर के पास 160 किलो सोना है, और इसे 3.7 किलो सोने से कोट किया गया है। मंदिर की लोकप्रियता के कारण बॉलीवुड हस्तियों से लेकर आम भक्त तक यहाँ आकर दान करते हैं। दान का उपयोग मंदिर का रखरखाव और सौंदर्यीकरण, धार्मिक अनुष्ठानों और प्रसाद की व्यवस्था परोपकारी कार्य जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर किया जाता है।
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) की वार्षिक आय लगभग 500 करोड़ है, जो मुख्य रूप से भक्तों के दान से आती है। मंदिर की स्वर्ण-जड़ित संरचना और ऐतिहासिक महत्व इसे विशेष बनाता है। यहाँ लंगर सेवा चलती है। प्रतिदिन एक लाख से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर, ओडिशा की वार्षिक आय का अनुमान 150 करोड़ है, जो दान और रथ यात्रा जैसे आयोजनों से आता है। मंदिर के पास लगभग 100 सोना सोना और चांदी का खजाना है। यह चार धामों में से एक है और विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा के लिए जाना जाता है।
आय का उपयोग रथ यात्रा और अन्य धार्मिक आयोजनों का प्रबंधन, मंदिर का रखरखाव और कर्मचारियों के वेतन तथा प्रसाद वितरण और तीर्थयात्रियों की सुविधाएं प्रदान करने में खर्च होता है।
श्री सोमनाथ ट्रस्ट सोमनाथ मंदिर का प्रबंधन करता है और आय का उपयोग मंदिर के रखरखाव और तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के लिए करता है। मंदिर को भक्तों से नकद और कीमती सामान के रूप में दान मिलता है। मंदिर में विशेष पूजा और दर्शन के लिए शुल्क लिया जाता है। सोमनाथ एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। सोमनाथ का मॉडल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पर आधारित है, लेकिन इसका आर्थिक मॉडल भी दान और पर्यटन पर निर्भर करता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां प्रधानमंत्री की पहल पर विशेष कॉरिडोर बनाया गया है। यहां भी मंदिर में भक्तों द्वारा चढ़ाए गए दान और सामग्री से लाखों रुपये की आय होती है। वीआईपी और सुगम दर्शन के लिए टिकट बेचे जाते हैं।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट मंदिर का संचालन करता है और हाल के वर्षों में मंदिर कॉरिडोर परियोजना ने इसे और अधिक संगठित और आकर्षक बनाया है। काशी विश्वनाथ का मॉडल धार्मिक पर्यटन और दान पर आधारित है, जिसमें आधुनिक प्रबंधन और तकनीक का उपयोग बढ़ रहा है।
2024 में उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर को 165 करोड़ रुपये से अधिक की आय हुई। दान पेटियों से: लगभग 44 करोड़ रुपये,शीघ्र दर्शन से 49 करोड़ रुपये, अभिषेक पूजन से 5.93 करोड़ रुपये, अन्नदान से लगभग 12.5 करोड़ रुपये,मंदिर समिति की धर्मशाला से 5.5 करोड़ रुपये।
भस्म आरती बुकिंग से 90 लाख रुपये, फोटोग्राफी मासिक शुल्क से: 7.5 लाख रुपये, भांग और ध्वजा बुकिंग से 7.92 लाख रुपये, अन्य स्रोतों से लगभग 24 करोड़ रुपये मिले। दान में 400 किलो चांदी और 1.3 किलो सोना मिला। (अनुमानित मूल्य 3 करोड़ रुपये से अधिक) केवल श्रावण मास (11 जुलाई से 9 अगस्त 2024) में मंदिर को 27 करोड़ रुपये की आय हुई थी।
जिसमें 85 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। महाकाल लोक के निर्माण के बाद श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि के कारण आय में भी वृद्धि हुई है। 2024 में 7.32 करोड़ लोग उज्जैन आए, जो 2023 के 5.28 करोड़ की तुलना में 39% अधिक है।
कुछ स्व-घोषित धार्मिक गुरु और बाबा अपने अनुयायियों से धन, संपत्ति और अन्य संसाधन एकत्र करते हैं। इनमें से कई ने अपने आश्रमों को बड़े व्यवसायों में बदल दिया है, जो उत्पाद बेचने, दान मांगने और महंगे आध्यात्मिक कोर्स चलाने जैसे कार्य करते हैं।
कुछ मामलों में, इन धार्मिक नेताओं पर धोखाधड़ी और शोषण के आरोप भी लगे हैं, जिसने धर्म के प्रति लोगों का विश्वास कम किया है। भारत में कुछ धार्मिक संस्थान देश के बड़े उद्योगों को भी कमाई के मामले में मात दे रहे हैं।
- लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
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