बिहार हर साल बाढ़ की आपदा झेलता आ रहा है। पिछले कई दशकों से बिहार में कोई साल ऐसा नहीं रहा है, जब यहां बाढ़ ने कहर ना बरपाया हो। पिछले वर्ष की बात करें, तो बाढ़ से प्रदेश के 19 जिलों के 16 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित थे। कुछ महीने बाद चुनाव हैं, तो इस बार बाढ़ एक बड़ा मुद्दा बन गई है।
बिहार में मुख्यतः 12 नदी बेसिन हैं और लगभग सभी हर साल बाढ़ से प्रभावित होते हैं। उत्तर बिहार बाढ़ से काफी ज्यादा प्रभावित रहता है। उत्तर बिहार की प्रमुख नदियों में कोसी, बागमती और गंडक हिमालय से निकलती हैं, जिससे ये बाढ़ के दौरान तेजी से जलस्तर बढ़ा देती हैं। खास कर कोसी बेसिन की बाढ़ का स्वरूप भयावह होता है। पिछले वर्ष कोसी नदी के अलावा गंगा नदी के बाढ़ की वजह से भी काफी नुकसान हुआ था।

सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश सरकार बाढ़ सुरक्षा पर प्रतिवर्ष करीब 600 करोड़ रुपये खर्च करती है। वहीं राहत अभियान में भी हजारों करोड़ खर्च किए जाते हैं। इसी क्रम में इस साल भी जल संसाधन विभाग द्वारा ईएसएमएल एवं अन्य योजना के तहत तटबंध को मजबूत करने के लिए अधिकारियों द्वारा लगातार काम किया जा रहा है। जल संसाधन विभाग ने तटबंधों की मरम्मत, निगरानी, चेतावनी प्रणाली और नेपाल से समन्वय जैसे कई कदम उठाए हैं। विभाग लगातार इसका प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया पर भी करता है।
वहीं आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक मानसून आने से पहले आपदा विभाग भी लगातार काम कर रहा है। 20 मई, 2025 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में पटना स्थित मुख्य सचिवालय सभागार में एक उच्चस्तरीय बैठक कर बाढ़ पूर्व तैयारियों की गहन समीक्षा की गई। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इतनी तैयारी के बावजूद प्रत्येक वर्ष आपदा खासकर बाढ़ से बिहार को इतना नुकसान क्यों होता है?
बाढ़ विशेषज्ञों के अनुसार बाढ़ से नियंत्रण के लिए बिहार सरकार के कई विभाग एक साथ काम करते हैं। हालांकि इन विभागों के बीच समन्वय नहीं रहता है, इससे काम काफी धीमी गति से होता है। खासकर आपदा प्रबंधन विभाग और जल संसाधन विभाग के बीच।
वरिष्ठ पत्रकार राजेश ठाकुर कहते हैं कि, “प्रत्येक साल की तुलना में इस साल सरकार बाढ़ से बचाव के लिए ज्यादा जागरूक रहेगी। इसकी मुख्य वजह चुनाव है, क्योंकि बाढ़ से हुए नुकसान का मुद्दा सत्ताधारी पार्टी के लिए नुकसान कर सकता है।”

अभी जून महीने में ही खगड़िया के सांसद राजेश वर्मा अचानक अपने लोकसभा क्षेत्र में बाढ़ ग्रस्त इलाका में जायजा लेने पहुंचे थे। वहां पर पत्थर की जगह ठेकेदार तटबंध के किनारे मिट्टी भरवा रहा था। सांसद महोदय ने ठेकेदार को डांटा और कहा कि आप लोगों की वजह से पूरी बस्ती नदी में चला जाती है। सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल भी हो रहा है। हालांकि अधिकांश बाढ़ग्रस्त इलाके में सरकारी व्यवस्था की यही हालत है।
पिछले वर्ष भी बिहार को बाढ़ से काफी नुकसान हुआ था। तत्कालीन कृषि मंत्री मंगल पांडे के मुताबिक पिछले वर्ष 19 जिलों के 92 प्रखंड प्रभावित हुए। बाढ़ से कुल 673 पंचायतों के लगभग 2,24,597 हेक्टेयर रकबा प्रभावित हुआ एवं प्रभावित क्षेत्रों में 91,817 हेक्टेयर रकबा में फसलों की क्षति 33 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है।
सरकारी व्यवस्था पर भरोसा नहीं

मौसम विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 1 जून, 2025 से 21 जून, 2025 के बीच में 64.6 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई, जबकि 87.8 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए। इसके बावजूद 20 जून 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक 6 बजे सुबह तक नेपाल ने 75,775 क्यूसेक पानी कोसी नदी में छोड़ा है। विशेषज्ञों के मुताबिक अभी ठीक से मानसून आया भी नहीं है, ऐसी स्थिति में पानी की इतनी मात्रा काफी ज्यादा है।
दशकों से बाढ़ झेल रहे ये गांव वाले अब बाढ़ के साथ जीना सीख चुके हैं। बाढ़ के निपटने के तमाम इंतजाम ये लोग खुद ही करते हैं और इसके लिए सरकार पर निर्भर नहीं रहते। हर साल बाढ़ से प्रभावित होने वाले गांव में सुपौल जिले की पिपड़ा खुर्द पंचायत शामिल है। इस गांव के रहने वाले 55 वर्षीय रामकिशोर यादव बताते हैं कि, “तटबंध के भीतर के लोग सरकार के भरोसे जिंदा नहीं है। हम लोग राहत सामग्री से लेकर नाव तक की व्यवस्था कर रहे हैं। सरकार के भरोसे रहे, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। सरकार बेहतर नाव तक की व्यवस्था नहीं कर पाती है।”
बाढ़ पीड़ितों के लिए वर्षों से कम कर रहें कोसी नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष महेंद्र यादव बताते हैं कि, “सालों मरम्मत, नए निर्माण, बाढ़ राहत और बचाव के नाम पर जम कर पैसे का बंदरबांट किया जाता हैं। हर साल इतनी तैयारी के बावजूद 3-4 लाख क्यूसेक से अधिक पानी डिस्चार्ज होने के साथ ही नदी का आक्रमण प्रभाव दिखने लगता है। एस्टिमेट बनता है, लेकिन काम क्या होता है? यदि तटबंधों की मरम्मत और बाढ़ से निपटने की तैयारियां सही ढंग से हो तो वे टूटेंगे कैसे?” हर साल बाढ़ से प्रभावित होने वाले बिहारी खुलकर कहते हैं कि बिहार में बाढ़ एक घोटाला है।
:: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ::