रायपुर। ब्राजील के बेलेम में चल रहे जलवायु शिखर सम्मेलन (COP30) में 190 से अधिक देशों के करीब 50 हजार प्रतिनिधि राजनयिक, विशेषज्ञ और अन्य जुटे हैं। यहां वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर गहन चर्चा हो रही है, जिसमें उत्सर्जन कटौती, अनुकूलन रणनीतियां और विकासशील देशों की चुनौतियां प्रमुख हैं। लेकिन यह मुद्दा सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मंच तक सीमित नहीं दुनिया भर में स्थानीय स्तर पर भी गतिविधियां तेज हो रही है।
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भारत में भी इसी दिशा में एक अनोखा कदम उठाया गया। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में खारुन नदी के घाट पर नदी घाटी मोर्चा संगठन ने प्रदर्शन किया, जहां नदियों के अधिकारों को मानवाधिकारों की तरह मान्यता देने की मांग की गई। संगठन के राष्ट्रीय संयोजक गौतम बंधोपाध्याय ने ‘द लेंस’ को बताया, “जलवायु चिंता ब्राजील तक सीमित क्यों रहे? यह वैश्विक संकट है। रेत के अंधाधुंध खनन, बांधों का निर्माण और प्रदूषण से नदियों का प्राकृतिक बहाव घट रहा है, जो पारिस्थितिकी तंत्र को चोट पहुंचा रहा है।”
उनका जोर इस बात पर है कि नदियों को जीवंत इकाई मानकर उनके अधिकारों का संरक्षण अनिवार्य है जैसे स्वच्छ बहाव, प्रदूषण मुक्ति और पारिस्थितिक संतुलन। सबसे तत्काल कदम नाले-नालियों के सीवेज को नदियों में मिलने से रोकना है, जो जल स्रोतों को जहरीला बना रहा है।
संगठन की यह मुहिम गहरी चिंता से उपजी है। जैसे नदी का अस्तित्व बचेगा, तभी उससे जुड़ी जीविकाएं सुरक्षित रहेंगी। मछुआरे, नाविक और स्थानीय समुदायों की आजीविका पर निर्भरता नदियों पर ही टिकी है। यदि नदियां मरती रहीं, तो ये पारंपरिक व्यवसाय खतरे में पड़ जाएंगे, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को झकझोर देगा। यह प्रदर्शन दर्शाता है कि जलवायु कार्रवाई वैश्विक सम्मेलनों से आगे, स्थानीय नदियों-जलस्रोतों के संरक्षण से ही साकार होगी।

