नेशनल ब्यूरो। नई दिल्ली
विगत दस सालों में सुरक्षा को लेकर उठाए गए तमाम कदमों के बावजूद रेल की दुर्घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। मंगलवार को बिलासपुर में हुआ रेल हादसा एक के बाद एक हो रही भयावह घटनाओं का हिस्सा है। जिसमें एक मालगाड़ी और यात्री रेलगाड़ी की आमने-सामने टक्कर हो गई। हादसे में दो लोको पायलट सहित पांच मौतें हो गईं।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में लोकसभा में बताया कि 2014-15 में 135 घातक रेल हादसे दर्ज हुए थे, जो 2023-24 में घटकर करीब 40 रह गए। ( यानि हादसों में 75 फीसदी की कमी आई है।
उन्होंने यह भी कहा कि रेल दुर्घटनाओं की दर 2014-15 की 0.11 प्रति मिलियन ट्रेन-किमी से घटकर 2023-24 में 0.03 तक आ गई है। 2023 में उड़ीसा में हुए ट्रेन हादसे में 296 लोगों की मृत्यु और 1,200 से अधिक घायल हुए इस बड़ी त्रासदी ने साफ कर दिया कि तकनीक है पर प्रक्रिया और निगरानी अभी मजबूत नहीं हैं।
क्यों होते हैं बिलासपुर जैसे हादसे
हाल में रेलवे की जांच में कई ट्रेनों में सिग्नल ओवरराइड अलार्म निष्क्रिय पाए गए। साउथ ईस्टर्न रेलवे जोन की ऑडिट रिपोर्ट (2024) में पाया गया कि ट्रैक निरीक्षण का 35 फीसदी हिस्सा अधूरा था। हादसे के बाद भी कर्मचारियों पर निचले स्तर कार्रवाई करती है , जबकि अधिकारियों के स्तर पर और नीति-निर्माण स्तर पर जवाबदेही तय नहीं होती। रेल मंत्रालय ने कहा कि अब “सभी रेल ज़ोन में 24×7 सुरक्षा निगरानी केंद्र” बन रहे हैं, परंतु ज़मीनी असर देखने को नहीं मिलता है।
हादसों पर हादसे
भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है । रोज़ाना लगभग 2.3 करोड़ लोग भारतीय रेल से सफर करते हैं। इतने बड़े पैमाने पर संचालन के बावजूद, रेल सुरक्षा भारत के सामने एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। पिछले कुछ वर्षों में हुए बड़े हादसों पर एक निगाह डालते हैं
- बालासोर (ओडिशा) ट्रेन हादसा, जून 2023 — तीन ट्रेनें टकराईं, 296 मौतें, 1200 घायल।
- अमृतसर (2018) — रावण दहन के दौरान ट्रैक पर भीड़ चढ़ने से 60 मौतें।
- कानपुर (2016) — इंदौर–पटना एक्सप्रेस पटरी से उतरी, 150 लोगों की मौत।
- जोगबनी (2020) और गोरखपुर (2022) जैसी कई छोटी घटनाएँ — जिनमें दर्जनों जानें गईं।
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