नई दिल्ली। क्या आप यकीन करेंगे कि देश की गरीब जनता का करोड़ों रूपये अनिल अंबानी ने हॉलीवुड के फिल्म निर्माताओं के भेंट चढ़ा दिए जिनमे जुरासिक पार्क जैसी फिल्म बनाने वाले स्टीवन स्पीलबर्ग भी शामिल हैं?
“कोबरा पोस्ट” ने गुरुवार को एक बेहद सनसनीखेज प्रेस कांफ्रेंस की है जिसमें उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी पर गंभीर आरोप लगाये गये हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस ने परांजय गुहा ठाकुरता भी मौजूद थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस ने कोबरा पोस्ट के प्रमुख अनिरुद्ध बहल ने आरोप लगाया कि अनिल अंबानी ने पिछली 20 सालों में सरकार और कारपोरेट की मिलीभगत से जनता की गाढ़ी कमाई के 41000 करोड़ रुपए लूट लिए।

अनिरुद्ध बहल ने द लेंस को बताया कि यह पहली रिपोर्ट है। अभी ऐसी और रिपोर्ट आएंगी। इस रिपोर्ट पर पिछले छह महीने से काम चल रहा था। यह रिपोर्ट अनिल। अंबानी के रिलायंस एडीए ग्रुप के कारनामों पर आधारित है जिसे उद्योगपति अनिल अंबानी नियंत्रित करते हैं। गजब यह रहा कि प्रेस कांग्रेस से पहले ही अनिल अंबानी ने कोबरा पोस्ट को कानूनी नोटिस भेज दी।
20 सालों में 28,8740 करोड़ का घोटाला

कोबरा पोस्ट के अनुसार, अनिल अंबानी समूह ने वर्ष 2006 से अब तक लगभग 28,874 करोड़ रुपये की वित्तीय गड़बड़ी की। गौरतलब है कि यह घोटाला यूपीए और एनडीए दोनों की सरकारों के किया गया। कंपनी ने यह पूरा पैसा विभिन्न बैंकों, डिबेंचरों, आईपीओ और बॉन्ड से जुटाई गई पूंजी से जुटाया। इस रिपोर्ट में कहा गया कि इतनी बड़ी रकम को शेल कंपनियों, ऑफशोर इकाइयों और जटिल कॉर्पोरेट संरचनाओं के माध्यम से इधर-उधर किया गया, ताकि किसी रेगुलेटरी एजेंसी को संदेह न हो।
विदेशी कंपनियों के माध्यम से भी हजारों करोड़ का घोटाला
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि करीब 1.53 बिलियन डॉलर लगभग 1 की रकम विदेशी रास्तों से भारत लाई गई। यह धन ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स, साइप्रस, सिंगापुर और मॉरिशस में रजिस्टर्ड कई कंपनियों के जरिए भेजा गया था। खुलासे में इन कंपनियों को स्पेशल परपज व्हीकल कहा गया है। यानी ऐसी संस्थाएं जो सिर्फ फंड ट्रांसफर करने और अवैध रकम को छिपाने के लिए बनाई गई।
नाम बदलो रकम उड़ाओ
कोबरापोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक अनिल अंबानी की कंपनी ने कर्ज लेने और ट्रांसफर करने की एक चक्रीय प्रणाली बनाई थी एक कंपनी बैंक से लोन लेती, दूसरी उससे जुड़ी कंपनी उस पैसे को “इंटर-कॉरपोरेट लोन” या “प्रेफरेंस शेयर” के रूप में दूसरी इकाई को दे देती। कंपनियों की यह प्रक्रिया कई परतों में चलती रही, जिससे अंततः असली खर्च या नुकसान का पता लगाना मुश्किल हो गया। कंपनियों का नाम बार बार बदला गया।
उदाहरण के लिए, एक मामले में कहा गया कि समूह की एक कंपनी ने “टेलीकॉम एक्सपेंशन” के नाम पर लोन लिया, लेकिन वह पैसा दूसरे किस्म की खरीद में इस्तेमाल हुआ। जब जांच एजेंसियों ने सवाल उठाए, तो उस खरीदी को किसी तीसरी सहायक कंपनी में ट्रांसफर कर दिया गया, ताकि रिकॉर्ड साफ दिखे।
जनता के पैसे से अंबानी ने बनाया निजी साम्राज्य
रिपोर्ट के अनुसार, समूह की नौ बड़ी कंपनियों पर कुल 1,78,491 करोड़ रुपये का कर्ज था। इनमें से अधिकांश कर्ज सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से लिया गया था। जब इन कंपनियों के कारोबार ने गिरावट दिखाई, तो बैंकों को लगभग 1,62,976 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा. यह वही पैसा था जो आम नागरिकों ने टैक्स और बचत के रूप में सरकार व बैंकों में जमा किया था. यानी जनता के पैसे से कॉर्पोरेट जगत ने अपने साम्राज्य खड़े किए और फिर घाटे के नाम पर उस धन को डुबो दिया।
बेहद शातिराना तरीके से किया गया घोटाला
कोबरा पोस्ट की जांच बताती है कि इस घोटाले का बड़ा हिस्सा टैक्स हैवन देशों से जुड़ा है। इन देशों में गोपनीयता इतनी अधिक है कि वास्तविक मालिक का नाम उजागर नहीं किया जा सकता। ADAG से जुड़ी दर्जनों शेल कंपनियां ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स, साइप्रस, मॉरिशस और सिंगापुर में पंजीकृत थीं।
ये कंपनियां भारत में स्थित होल्डिंग कंपनियों में निवेश के नाम पर पैसा भेजती थीं, जो आगे जाकर “इन्वेस्टमेंट” या “रिफाइनेंसिंग” के रूप में उपयोग किया जाता था. इस व्यवस्था का असली उद्देश्य था – पैसे की उत्पत्ति को छिपाना और जांच व नियामक एजेंसियों से बचना.
ईडी और सीबीआई क्या जानबूझ कर खामोश
प्रेस कांफ्रेंस में प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया गया है कि इतने बड़े स्तर पर फंड ट्रांसफर और वित्तीय अनियमितताओं के बावजूद रिजर्व बैंक, सेबी और वित्त मंत्रालय ने समय रहते कोई सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की ? जांच के मुताबिक, कुछ एजेंसियों को इन लेनदेन पर संदेह था, लेकिन या तो फाइलें लंबित रहीं या राजनीतिक दबावों के चलते कार्रवाई नहीं हुई।

