समाचार विश्लेषण
रायपुर। छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ आईपीएस रतन लाल डांगी के खिलाफ एक सब इंस्पेक्टर की पत्नी ने गुरुवार को यौन प्रताड़ना की शिकायत की है। महिला ने डीजीपी अरुण देव गौतम से शिकायत की।कानूनन तो इस शिकायत पर पहले एफआईआर होनी थी लेकिन इसके बजाए विभाग ने दो IPS को शामिल करते हुए एक जांच समिति बनाई और जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई का प्रेस नोट पुलिस मुख्यालय की तरफ से जारी हुआ।
जैसे ही महिला की शिकायत की खबर मीडिया की सुर्खियां बना तो आईपीएस रतन लाल डांगी ने पत्रकारों से कहा कि उन्होंने तो डीजीपी से 15 अक्टूबर को यानि महिला की शिकायत से एक दिन पहले ही उसके खिलाफ ब्लैकमेलिंग की शिकायत की थी, इसके बाद ही उस महिला ने 16 अक्टूबर को उनके खिलाफ शिकायत की।
दिलचस्प यह है कि पीएचक्यू की जांच समिति भी एक हफ्ते बाद तब बनी जब यह मामला सार्वजनिक हुआ।
इस पूरे घटना क्रम में कई सवाल भी खड़े हो गए।
सबसे अहम सवाल यह रहा कि जब महिला ने आईपीएस के खिलाफ प्रताड़ना की शिकायत की है, तो उसकी एफआईआर के बजाए जांच क्यों की जा रही है?क्या आईपीएस होने की वजह से रतन लाल डांगी को विशेष रियायत दी जा रही है?
सुप्रीम कोर्ट का साफ निर्देश है कि महिला की प्रताड़ना की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ तत्काल एफआईआर की जाए, फिर जांच की जाए। गिरफ्तारी से राहत दी जा सकती है, लेकिन इस मामले में आईपीएस को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को नजरअंदाज कर दिया गया।
आम आरोपियों को छोड़ भी दें तो इसी बरस करीब आधा दर्जन सरकारी अफसरों के खिलाफ ही यौन प्रताड़ना की शिकायतों पर प्रदेश के अलग-अलग थानों में नियमानुसार फौरन एफआईआर की गई है।
महीनेभर पहले बलरामपुर एसडीओपी याकूब मेमन के खिलाफ सरगुजा में एफआईआर हुई। रायपुर की एक महिला की शिकायत के आधार पर दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज की गई। एफआईआर शून्य पर दर्ज कर केस डायरी रायपुर के टिकरापारा थाना पुलिस को ट्रांसफर कर दिया गया।
इसी तरह 29 सितंबर को कवर्धा में एक आरक्षक सतीश मिश्रा के खिलाफ युवती की शिकायत पर दुष्कर्म की एफआईआर की गई। तब सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में युवती ने कहा था कि कार्रवाई न होने की स्थिति में वह आत्मदाह करने को मजबूर हो सकती है। हालांकि, कांस्टेबल के खिलाफ केस दर्ज कर उसे सस्पेंड कर दिया गया है।
पिछले महीने ही बीजापुर में पदस्थ एक डिप्टी कलेक्टर दिलीप उइके के खिलाफ भी महिला की शिकायत पर दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज की गई। एक महिला कॉन्स्टेबल ने उस पर शादी का झांसा देकर रेप और धोखाधड़ी का केस दर्ज कराया है। पीड़िता ने डीआईजी को पत्र लिखकर पूरे मामले की शिकायत की, जिसके बाद पुलिस ने FIR दर्ज की।
इसी तरह मार्च में छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में डीएसपी विनोद मिंज पर शादी का झांसा दे कर यौन शोषण करने का आरोप लगा।जिसके बाद पीड़ित महिला की शिकायत पर दुर्ग के पद्मनाभपुर थाने में एफआईआर की गई। शादी का झांसा देकर दुष्कर्म की एफआईआर की गई है।
हाल के ही इस तरह के चार केस पर नजर डालें तो पुलिस ने शिकायत मिलने के तुरंत बाद ही एफआईआर कर ली, लेकिन आईपीएस के खिलाफ डीजीपी से शिकायत के बाद भी एफआईआर की बजाए जांच सवालों के घेरे में है।
क्या कहता है कानून ?
इस मामले में अधिवक्ता एलके मिश्रा ने बताते हैं कि महिला की प्रताड़ना की किसी भी स्तर में शिकायत हो, फौरन एफआईआर की जानी चाहिए, उसके बाद जांच की जाए। उन्होंने कहा कि एफआईआर पूर्व जांच का प्रावधान न तो दंड प्रक्रिया संहिता में था और न ही भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में है। सिर्फ कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर पूर्व जांच की व्यवस्था की है।

यौन प्रताड़ना की ऐसी शिकायतों के आधार पर एफआईआर से पहले जांच का प्रावधान नहीं है – पद के आधार पर भी नहीं !
ऐसे में महिला की शिकायत पर आईपीएस के खिलाफ एफआईआर न कर पहले जांच कमेटी बना देना यह आशंका खड़ी करता है कि क्या महकमा इस मामले को कानून की नजर से नहीं किसी वरिष्ठ आईपीएस की नजर से देख रहा है?
यह भी दिलचस्प है कि जांच में शामिल अफसरों को लेकर तो बीजेपी के ही एक नेता नरेश गुप्ता ने सोशल मीडिया पर God save Chhattisgarh Police लिख कर एक जांच अधिकारी आईपीएस आनन्द छाबड़ा का नाम लेते हुए जांच की निष्पक्षता पर ही सवाल खड़े किए हैं?
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस मामले में कहा है कि आईजी हो या आईपीएस कानून से ऊपर कोई नहीं है।कानून सबके लिए समान है।जो भी दोषी पाया जाएगा उस पर कार्रवाई होगी।
मुख्यमंत्री के इस बयान को भी हैरानी के साथ देखा जा रहा है।
सवाल यह है कि क्या विभाग की जांच समिति के पास यह विकल्प भी होगा कि वो जांच में महिला की शिकायतों को झूठा साबित कर दे ? क्या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता पुलिस को यह अधिकार देती है कि किसी महिला की यौन उत्पीड़न की शिकायत एफआईआर से पहले ,उस शिकायत को अदालत के दरवाजे तक पहुंचाने से पहले गुण दोष के आधार पर परखे,खासतौर पर तब जब महिला यह भी दावा कर रही है कि उसके पास तमाम तरह के साक्ष्य हैं ?
अगर मुख्यमंत्री की मंशा यह है कि कानून सबके लिए समान है तो सवाल उठ रहा है कि पुलिस के महानिदेशक की नजर में क्या कानून सबके लिए समान नहीं हैं ?
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