रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसमें राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) के तीन अफसरों पर फर्जी दस्तावेज तैयार करने और न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का गंभीर आरोप लगा है।
आरोप है कि इन अधिकारियों ने धारा-164 सीआरपीसी के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष गवाह का बयान दर्ज करने के नाम पर झूठे दस्तावेज बनाए, जो बाद में सुप्रीम कोर्ट में सूर्यकांत तिवारी की अंतरिम जमानत रद्द करने के आवेदन के साथ पेश किए गए।
इन आरोपों के साथ रायपुर की न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी आकांक्षा वेक की अदालत में आवेदन लगाया, जिसके बाद ईओडब्ल्यू चीफ अमरेश मिश्रा, एडिशनल एसपी चंद्रेश ठाकुर और डीएसपी राहुल शर्मा को 25 अक्टूबर को स्पष्टीकरण पेश करने का नोटिस जारी किया गया है।
कोर्ट में लगाए आवेदन के अनुसार, एसीबी/ईओडब्ल्यू ने अपराध संख्या 02/2024 और 03/2024 के मामलों में एफआईआर दर्ज कर जांच कर रही है। जांच के दौरान धमतरी जिला जेल में बंद निखिल चंद्राकर को 16 और 17 जुलाई 2025 को धारा-164 सीआरपीसी के तहत दस्तावेज तैयार कराने के बहाने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी कामिनी वर्मा की अदालत में पेश किया गया, लेकिन चंद्राकर का कोई बयान दर्ज ही नहीं किया गया।
आवेदन में जो आरोप लगाए गए हैं, उनके अनुसार जांच अफसरों ने अपने कार्यालय के कंप्यूटर पर दस्तावेज तैयार किए, उन्हें पेन ड्राइव में लाकर अदालत में जमा कराया और प्रिंटआउट लेकर सुप्रीम कोर्ट में पेश किया।
शिकायतकर्ता अधिवक्ता गिरिश चंद्र देवांगन के अनुसार, इन दस्तावेजों में चंद्राकर के केवल हस्ताक्षर हैं, लेकिन अदालत द्वारा कोई बयान लेखबद्ध नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ‘यह साफ कूटरचना है, जिसका मकसद जांच में गंभीरता पैदा करना और निर्दोष को फंसाना था।’
यह दस्तावेज सूर्यकांत तिवारी की जमानत रद्द करने के आवेदन के साथ पेश किए गए थे, जिसकी प्रतियां तिवारी के वकीलों के माध्यम से प्राप्त हुईं।
आवेदन में फॉरेंसिक जांच का उल्लेख है कि देवांगन ने अदालत से 16-17 जुलाई 2025 के अन्य प्रकरणों की आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपियां प्राप्त कीं और विवादित दस्तावेजों का फोरेंसिक परीक्षण विशेषज्ञ से कराया।
फॉरेंसिंग एक्सपर्ट ने स्पष्ट अभिमत दिया कि विवेचकों द्वारा तैयार दस्तावेज का फॉन्ट अदालत की प्रमाणित प्रतिलिपियों के फॉन्ट से भिन्न है। यहां तक कि दस्तावेज में मिश्रित फॉन्ट का उपयोग भी हुआ है, जो असली दस्तावेजों में असंभव है। इस रिपोर्ट ने अधिकारियों की साजिश को बेनकाब कर दिया।
अधिवक्ता गिरिश चंद्र देवांगन ने पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिलासपुर के सतर्कता विभाग को दस्तावेजों के साथ लिखित शिकायत की थी, लेकिन कार्रवाई न होने पर रायपुर अदालत में क्रिमिनल कंप्लेंट दायर किया।
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