मोदी सरकार और भाजपा तथा एनडीए की राज्य सरकारें भले ही नौ साल पहले लागू की गई नोटबंदी को याद न रखें, लेकिन इसे भुलाया नहीं जा सकता, जिसकी वजह से देश के करोड़ों लोगों को अचानक एक नई मुसीबत का सामना करना पड़ा था।
प्रधानमंत्री मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को रात आठ बजे अचानक राष्ट्र के नाम संबोधन में उस समय प्रचलन में मौजूद पांच सौ और हजार रुपये के नोटों को अवैध घोषित कर दिया था, जिससे हड़कंप मच गया था।
सरकार की ओर से कहा गया था कि इस नोटबंदी से कालेधन पर अंकुश लगेगा, नकली नोट जब्त हो जाएंगे और आतंकवाद पर लगाम कसेगी। लेकिन इसकी वजह से आम लोगों को भारी परेशानियां उठानी पड़ी थी। नोटबंदी ने एक तरह से छोटे और मध्यम उद्योगों में तालाबंदी की स्थिति ला दी थी, जिससे वे आज भी पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं।
यही नहीं, नोटबंदी के एक साल बाद लाए गए त्रुटिपूर्ण जीएसटी ने बची खुची कसर पूरी कर दी थी, जिसका सर्वाधिक असर एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) किसानों और प्रवासी मजदूरों पर पड़ा था। इस दोहरी मार ने आम आदमी की दुश्वारियां बढ़ा दी थीं, जिसे आगे चलकर कोविड और मनमाने ढंग से लागू किए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का भी सामना करना पड़ा था।
जानकार कहते हैं कि नोटबंदी जैसे उपाय कालेधन पर एक हद तक ही अंकुश लगा सकते हैं। नोटबंदी से दो महीने पहले तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे अर्थशास्त्री रघुराम राजन स्वीकार कर चुके हैं कि उनसे इस बारे में जब सरकार की ओर से मशविरा किया गया था तब उनकी सलाह थी कि यह कारगर नहीं हो सकता। यही नहीं, दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री और देश में नई आर्थिक नीतियों के वास्तुकार डॉ. मनमोहन सिंह ने नोटबंदी की वजह से जीडीपी में जो दो फीसदी की गिरावट की आशंका जताई थी, वह सही साबित हुई थी।
हकीकत यह है कि नोटबंदी के ऐलान के समय देश में पांच सौ एक हजार रुपये के जितने नोट प्रचलन में थे, उनमें से 99 फीसदी रिजर्व बैंक के वापस आ गए थे! इसके बावजूद इसे लेकर आज तक सरकार ने कोई संतुष्ट करने वाला जवाब नहीं दिया है।
दरअसल मोदी सरकार के साथ एक मुश्किल यह है कि वह अपनी गलतियों को कभी स्वीकार नहीं करती। इसके उलट वह श्रेय लेने में पीछे नहीं रहती, जैसा कि उसने जीएसटी में भारी विरोध के बाद किए गए बदलाव के बाद किया है। जीएसटी 2.0 को सरकार और भाजपा ने बचत उत्सव की तरह प्रचारित किया है। दूसरी ओर मोदी सरकार भले ही स्वीकार न करे कि नोटबंदी एक गलत कदम था, लेकिन वह उसे अपनी उपलब्धि बताने से भी गुरेज करती है।
नोटबंदी को लेकर द लेंस के YouTube पेज पर यह रिपोर्ट जरूर देखें।

