[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
बिजली निजीकरण के खिलाफ इंजीनियर्स फेडरेशन ने कसी कमर, विधेयक वापस वापस लेने की मांग
आइसलैंड में तीन मच्‍छरों का मिलना, जलवायु परिवर्तन का कितना बड़ा संकेत है?
NEET PG 2025 काउंसलिंग में बदलाव,चॉइस भरने की आखिरी तारीख बढ़ी
अस्पताल के बाहर कचरे डिब्बे के पास 5-6 माह का भ्रूण मिला, पुलिस कर रही CCTV से जांच
अब हर टेक कंपनी को माननी होंगी Do No Harm गाइडलाइंस, भारत सरकार का फैसला
क्रेशर संचालक की गुंडागर्दी, डीजल-पेट्रोल चोरी के शक में दो युवकों पाइप-रस्‍सी से बांधकर पिटाई
एयर इंडिया प्‍लेन हादसे के लिए पायलट जिम्‍मेदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
पीएम मोदी ने कांग्रेस को घेरा…‘1937 में वंदे मातरम के टुकड़े कर दिए गए’  
डोनाल्ड ट्रंप आएंगे भारत, लेकिन कब?
दिल्ली एयरपोर्ट पर ATC सिस्टम की खराबी से 300 उड़ानें लेट, GPS स्पूफिंग से पायलट परेशान
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.
लेंस संपादकीय

जेएनयूः लेफ्ट की जीत, आरएसएस की हार

Editorial Board
Editorial Board
Published: November 7, 2025 8:34 PM
Last updated: November 7, 2025 8:51 PM
Share
JNU student union elections
SHARE
The Lens को अपना न्यूज सोर्स बनाएं

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्टुडेंट यूनियन के चुनाव में सभी चार प्रमुख पदों पर लेफ्ट युनिटी ने कब्जा कर देश के इस प्रतिष्ठित संस्थान में अपनी वैचारिक पकड़ मजबूत की है। पिछले साल यहां आरएसएस और भाजपा से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने संयुक्त सचिव का पद जीत लिया था, लेकिन इस बार उसे सभी पदों पर हार का सामना करना पड़ा है।

पिछली बार वाम दलों से संबद्ध छात्र संगठन आइसा, एसएफआई और एआईएसएफ ने अलग अलग चुनाव लड़े थे, लेकिन इस बार उन्होंने लेफ्ट युनिटी के रूप में एक साथ चुनाव लड़ा और यह जीत दर्ज की है। अध्यक्ष पद पर लेफ्ट युनिटी की पीएचडी स्कॉलर अदिति मिश्रा, उपाध्यक्ष पद पर के गोपिका बाबू, महासचिव पद पर सुनील यादव और संयुक्त सचिव पद पर डानिश अली विजयी हुई हैं।

यों तो एबीवीपी लंबे समय से जेएनयू स्डुटेंड यूनियन पर कब्जे की कोशिश में है, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुआई में पहली बार भाजपा के अपने दम पर बहुमत हासिल करने के बाद से वामपंथ का गढ़ माने जाने वाले जेएनयू की स्टुडेंट यूनियन उसके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है।

बीते कुछ वर्षो में जिस तरह से जेएनयू को सत्ता के शीर्ष से ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के रूप में बदनाम करने की कोशिशें हुई हैं और अब भी हो रही हैं, उसे देखते हुए निश्चय ही लेफ्ट युनिटी की जीत दिखा रही है कि देश के शीर्ष संस्थानों में गिने जाने वाले जेएनयू की वैचारिक नींव कितनी मजबूत है।

अपनी स्थापना के समय से ही जेएनयू ने खुले विचारों को जगह दी है और अकादमिक रूप से उसकी प्रतिष्ठा पर तमाम अवरोधों के बावजूद आंच नहीं आई है, इसलिए आज भी वह देश के शीर्ष उच्च शिक्षण संस्थानों में शुमार है।

बीते कुछ वर्षों से जिस तरह से जेएनयू के विद्यार्थियों को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती की गई है और अकादमिक शोध में आरएसएस की विचारधारा को आगे बढ़ाने की कोशिशें हुई हैं, उसे देखते हुए लेफ्ट युनिटी की जीत का महत्व समझा जा सकता है।

वास्तविकता यह है कि इसी जेएनयू की उदार और खुले विमर्श की परंपरा ने एक से बढ़ कर एक स्कॉलर और राजनेता दिए हैं, जिनमें सीपीएम के दिवंगत महासचिव सीताराम येचुरी से लेकर केंद्रीय मंत्री एस जयशंकर, निर्मला सीतारमन और नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी तक शामिल हैं। यह फेहरिस्त बहुत लंबी है।

एसएफआई ने लेफ्ट युनिटी की जीत को घृणा की राजनीति के खिलाफ एक राजनीतिक बयान करार दिया है। जेएनयू को बदनाम करने की जिस तरह की कोशिशें हो रही हैं, उसे देखते हुए यह सचमुच महत्वपूर्ण बयान है।

हालांकि इस चुनाव की चर्चा जेएनयू में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की दुर्गति की चर्चा के बिना पूरी नहीं हो सकती। ये नतीजे दिखा रहे हैं, कि युवाओं में कांग्रेस की जगह सिमटती जा रही है। इसी के साथ यह भी देखने की जरूरत है कि लेफ्ट पार्टियां भले ही जेएनयू के नतीजों से खुश हो रही हैं, लेकिन जब तक वह युवाओं के लिए व्यापक कार्यक्रम लेकर सामने नहीं आतीं, उनका क्षरण जारी रहेगा।

वास्तव में ये नतीजे आरएसएस के लिए भी सबक हैं, जिसे समझना होगा कि अकादमिक संस्थानों को शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा नहीं बनाया जा सकता। जेएनयू की खूबसूरती इसी में है कि तमाम वैचारिक बहसों के बीच यह देश में शिक्षा और शोध का महत्वपूर्ण केंद्र बना रहे। इसकी अकादमिक स्वायत्तता से किसी भी तरह की छेड़छाड़ इसे नष्ट कर देगी।

TAGGED:abvpEditorialJNU student union electionsUnited Left
Previous Article NEET PG 2025 NEET PG 2025 काउंसलिंग में बदलाव,चॉइस भरने की आखिरी तारीख बढ़ी
Next Article mosquitoes in Iceland आइसलैंड में तीन मच्‍छरों का मिलना, जलवायु परिवर्तन का कितना बड़ा संकेत है?
Lens poster

Popular Posts

70 फीसदी भारतीय छात्रों की पसंद बने ये देश, ‘बिग 4’ देशों के रुझान में आयी कमी

द लेंस डेस्क। भारतीय छात्र ( INDIAN STUDENTS) तेजी से विदेश में पढ़ाई के लिए…

By पूनम ऋतु सेन

पहलगाम हमले के आतंकियों को चुुन-चुन कर मारेंगे : शाह

नई दिल्‍ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि पहलगाम हमले में शामिल…

By Lens News Network

A forgettable chapter

Justice bela Trivedi has now retired from the Supreme Court. Her retirement is as controversial…

By Editorial Board

You Might Also Like

Three bills introduced
लेंस संपादकीय

मनमाने कानूनों की तैयारी

By Editorial Board
Nakati Villagers Protest
लेंस संपादकीय

एक उजड़ते गांव का संघर्ष

By Editorial Board
English

Dysfunctional justice

By The Lens Desk
Raipur Mushroom Factory News
English

Nothing to cover our collective shame

By Editorial Board

© 2025 Rushvi Media LLP. 

Facebook X-twitter Youtube Instagram
  • The Lens.in के बारे में
  • The Lens.in से संपर्क करें
  • Support Us
Lens White Logo
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?