लेंस डेस्क। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने केंद्र सरकार के बिजली मंत्री को ड्राफ्ट बिजली (संशोधन) बिल 2025 पर अपनी आपत्तियां सौंप दी हैं। फेडरेशन ने इस बिल को फौरन रद्द करने की मांग की है, क्योंकि उनका मानना है कि पूरा बिजली क्षेत्र निजी हाथों में सौंपने की साजिश है, जो किसानों और आम घरेलू ग्राहकों के लिए घातक साबित होगा।
फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने चेतावनी दी कि बिल पास होने पर दशकों से चली आ रही एकजुट और समाज हितैषी बिजली प्रणाली तबाह हो जाएगी। बिजली बनाने और बांटने के मुनाफे वाले हिस्से निजी कंपनियों को दे दिए जाएंगे, जबकि नुकसान और सामाजिक जिम्मेदारियां सरकारी कंपनियों पर थोप दी जाएंगी।
दुबे के मुताबिक, यह बिल सार्वजनिक भलाई के बजाय बड़े निजीकरण, व्यापारिकरण और बिजली व्यवस्था के केंद्रीकरण को बढ़ावा देगा। इससे सरकारी उपयोगिताओं की आर्थिक मजबूती, ग्राहकों के जनतांत्रिक अधिकार, देश की संघीय व्यवस्था और लाखों बिजली कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में पड़ जाएंगी।
खास तौर पर, लागत के हिसाब से टैरिफ और क्रॉस-सब्सिडी खत्म करने से किसानों व घरेलू उपभोक्ताओं के बिजली बिल आसमान छू लेंगे।
दुबे ने याद दिलाया कि 2014, 2018, 2020, 2021 और 2022 में भी ऐसे ही बिल लाए गए थे, लेकिन कर्मचारी, किसान, उपभोक्ता संगठनों और कई राज्य सरकारों के जोरदार विरोध से वे पारित नहीं हो सके। नया 2025 का ड्राफ्ट भी पुराने बिलों की तरह ही निजीकरण पर केंद्रित है, जो किसी के हित में नहीं।
फेडरेशन का कहना है कि यह बिल बिजली क्षेत्र को कोई फायदा नहीं पहुंचाएगा। इसलिए इसे वापस लेकर असली सुधारों के लिए इंजीनियर्स व कर्मचारियों से बातचीत की जाए। सुधार तभी सफल होंगे जब कर्मचारियों का भरोसा जीता जाए।
टिप्पणियों में सरकार की अपनी स्वीकारोक्ति पर हैरानी जताई गई है कि 2003 के बिजली कानून के 22 साल बाद भी वितरण क्षेत्र पर 6.9 लाख करोड़ का कर्ज हो गया है, जो पहले सिर्फ 26 हजार करोड़ था। यह निजीकरण वाली नीतियों की नाकामी का सबूत है। फेडरेशन ने दोहराया कि आगे निजीकरण से हालात और खराब होंगे और यह सार्वजनिक बिजली क्षेत्र की अंतिम कील ठोंकेगा।

