छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के नजदीक लाल खदान में हावड़ा-मुंबई रेल लाइन पर एक मेमू ट्रेन और मालगाड़ी में हुई भीषण टक्कर भारतीय रेलवे की सुरक्षा प्राथमिकताओं पर एक और सवालिया निशान की तरह है। पता चला है कि रेल लाइन पर खड़ी एक मालगाड़ी को पीछे से उसी ट्रैक पर आ रही कोरबा मेमू ने जोर की टक्कर मार दी, जिससे यह हादसा हुआ।
हादसे में छह लोगों की मौत की पुष्टि की गई है, और कई घायलों की स्थिति गंभीर है। दोनों ट्रेनों में हुई टक्कर इतनी भीषण थी कि दोनों के डिब्बे एक दूसरे पर चढ़ गए। यहां तक कि कई डिब्बों में फंसे कुछ घायल यात्रियों को बड़ी मुश्किल से बाहर निकाला जा सका।
यह हादसा कुछ वर्षों के दौरान हुए कई बड़े रेल हादसों की पुनरावृत्ति की तरह है, जिसमें दो ट्रेनें एक ही ट्रैक पर आ गईं। सालभर पहले ओडिशा के लिंगराज स्टेशन पर तो एक ट्रैक पर चार ट्रेनें एक साथ चल रही थीं, गनीमत भर यह थी कि कोई बड़ा हादसा नहीं हआ। पिछले साल 17 जून को पश्चिम बंगाल के दार्जलिंग में बिलासपुर में हुए हादसे की तरह एक मालगाड़ी और कंचनजंगा एक्सप्रेस में टक्कर हो गई थी, जिसमें अनेक लोग मारे गए थे।
जाहिर है, बिलासपुर में हुए रेल हादसे ने एक बार फिर यात्रियों की सुरक्षा को लेकर किए जाने वाले दावों की धज्जियां उड़ा दी है। दोहराने की जरूरत नहीं कि इस हादसे के बाद भी कई तरह की जांच बिठा दी जाएंगी। मुआवजों की घोषणाएं हो ही चुकी हैं। संभव है कि कुछ अधिकारियों या कर्मचारियों का निलंबन भी हो जाए।
दरअसल जरूरत इन औपचारिकताओं से आगे जाकर इस हादसे के लिए संस्थागत लापरवाही की शिनाख्त करने की है। यही ठीक मौका है जब रेलवे और रेल मंत्री की प्राथमिकतों पर सवाल किए जाएं। रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव ने पिछले साल अगस्त में रेलवे सुरक्षा से संबंधित कवच-4.0 प्रणाली को डीआरडीओ से मिली मंजूरी की जानकारी देते हुए कहा था कि यह प्रणाली रेलवे ट्रैक को सुरक्षित रखेगी। उन्होंने यह भी दावा किया था कि अगले दो सालों में सारे रेल ट्रैक और दस हजार ट्रेन इंजिनों में भी इसे लगाया जाएगा।
उनके इस दावे में कितनी गंभीरता थी, यह बिलासपुर में हुए हादसे में देखा जा सकता है। दरअसल यह कहने में गुरेज नहीं किया जाना चाहिए कि रेल मंत्री वैष्णव की प्राथमिकताएं कुछ और हैं यहां तक कि नई ट्रेनें शुरू करने पर उसे हरी झंडी दिखाने का काम भी खुद प्रधानमंत्री मोदी ने संभाल रखा है!
वास्तविकता यह है कि यूपीए सरकार के समय रेलवे की सुरक्षा को लेकर 2012 में परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोदकर की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी, जिसने ट्रेनों की टक्करों को रोकने के लिए कवच प्रणाली ( ट्रेन कोलिजन बयाव प्रणाली) पेश की थी। एक दशक से भी अधिक समय के बाद हालत यह है कि दो साल पहले तक देश के महज दो फीसदी रेलवे ट्रैक को ही इसके तहत कवर किया जा सका था!
रोजाना 2.3 करोड़ लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने वाले भारतीय रेलवे के ऊपर सचमुच बड़ी जिम्मेदारी है। जाहिर है, उनकी सुरक्षित यात्रा के लिए जिम्मेदार शीर्ष लोगों से सीधे सवाल किया जाना चाहिए और जरूरत पड़ने पर उन पर कार्रवाई भी होनी चाहिए, फिर वह रेल मंत्री ही क्यों न हों!

