रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में श्री नारायणा अस्पताल में पुरानी एमआरपी में ही दवाइयां और मेडिकल सामग्रियां बेचने का मामला सामने आया है। 22 सितंबर को जीएसटी की दर कम करने के बाद भी अस्पताल में दवाइयां में नए दर के अनुसार दवाइयां और सामग्रियां नहीं बिक रही। इससे ग्राहकों को जीएसटी छूट का लाभ नहीं मिल रहा है।
यह खुलासा एक मरीज के दो बिलों की जांच से हुआ है, जिसमें सितंबर 2025 में खरीदी गई दवाओं और मेडिकल सप्लाई पर पुरानी दरें लगाई गईं। इस बिल के आधार पर जब दवाइयों के पुराने और नए दाम का पता लगाया गया तो यह पता चला कि अस्पताल में जो बिलिंग की गई है, उसमें जीएसटी छूट का फायदा ग्राहकों को नहीं दिया गया।
द लेंस की पड़ताल में सामने आया कि मोना पटेल नाम की एक मरीज के दो बिल में करीब 54 दवाइयां और सामग्रियों की बिलिंग हुई है। 2 अक्टूबर को बिलिंग हुई है। बिल नंबर OPI320367 और बिल नंबर OPI320419 की जांच में साफ तौर पर समझ आ रहा है कि जिन दवाओं और मेडिकल उपकरण की बिलिंग हुई है, वह पुरानी एमआरपी में ही है। इनमें 12 से 18 फीसदी जीएसटी लगाई गई है, जबकि इनमें 5 फीसदी जीएसटी लगनी थी।


पड़ताल में पता चला कि बिल नंबर OPI320367 में 50 सामग्रियों की बिलिंग हुई है। इन दवाइयों और सामग्रियों का कुल दाम 33287 रुपए हुआ, जो ग्राहक से लिया गया। जबकि नए दर के अनुसार इन दवाइयों की कीमत नए दर के अनुसार करीब साढ़े 31 हजार रुपए होनी चाहिए थी।
इसी तरह बिल नंबर OPI320419 में 2 दवाइयां और 2 सामग्रियों का कुल बिल 2160 रुपए बना, जबकि इसका बिल करीब दो हजार रुपए होना चाहिए था।

इस मामले में नारायणा अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. सुनील खेमका का कहना है कि कुछ गड़बड़ियां बिलिंग में हो रहीं थीं। अब सॉफ्टवेयर अपडेट कर दिया गया है। अब नए दर के हिसाब से ही बिल लिया जा रहा है।
जीएसटी परिषद की 56वीं बैठक में लिए गए फैसले के अनुसार 22 सितंबर 2025 से दवाओं और मेडिकल सामग्रियों पर जीएसटी दरें 12 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दी गई, जबकि जीवन रक्षक दवाओं पर यह शून्य या न्यूनतम है। इसके अलावा, स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर जीएसटी पूरी तरह छूट दी गई है।
दवाओं में छूट से सरकार ने दावा किया गया है, जीएसटी 2.0 सुधारों के तहत, राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने स्पष्ट किया है कि 22 सितंबर 2025 से पहले बनी दवाओं पर नए दामों के स्टिकर लगाने की बाध्यता नहीं है। खुदरा विक्रेता स्तर पर ही संशोधित मूल्य लागू किए जा सकते हैं। हालांकि, नई उत्पादित दवाओं पर अनिवार्य रूप से नई एमआरपी और जीएसटी दरें लगनी चाहिए।
ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) 2013 के तहत गैर-शेड्यूल्ड दवाओं पर सालाना 10% तक मूल्य वृद्धि की अनुमति है, लेकिन 2025 में कोई बड़ा संशोधन नहीं हुआ।
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