छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में कथित धर्मांतरण और मानव तस्करी का मामला अब एक नए और गंभीर दौर में पहुंच गया है। छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक ने रायपुर स्थित आयोग कार्यालय में महिला उत्पीड़न से संबंधित मामलों की सुनवाई की। इस दौरान नारायणपुर जिले की तीन आदिवासी युवतियों ने शिकायत दर्ज की कि दुर्ग रेलवे स्टेशन पर बजरंग दल के तीन कार्यकर्ताओं ने उनके साथ मारपीट, गाली-गलौज और निजी अंगों के साथ छेड़छाड़ की। साथ ही, जातिसूचक अपशब्दों का भी इस्तेमाल किया गया।युवतियों ने बताया कि इस मामले में पुलिस ने उनकी शिकायत पर प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज नहीं की। इसके बाद वे अपनी शिकायत लेकर महिला आयोग पहुंचीं।
आयोग में अब तक तीन सुनवाइयां हो चुकी हैं, लेकिन सूचना मिलने के बावजूद ज्योति शर्मा और उनके सहयोगी आयोग में उपस्थित नहीं हुए। दुर्ग के पुलिस अधीक्षक (एसपी) द्वारा आरोपियों को पेश करने में लगातार लापरवाही बरती जा रही है। आयोग ने यह भी बताया कि जीआरपी (रेलवे पुलिस) को डीआरएम (मंडल रेल प्रबंधक) के अधीन बताया जा रहा है, जबकि डीआरएम का कहना है कि जीआरपी राज्य पुलिस के अधीन है। इसके अलावा, दुर्ग रेलवे स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज की मांग पर केवल एक गेट की फुटेज ही आयोग को पेन ड्राइव में उपलब्ध कराई गई। इससे संदेह होता है कि डीआरएम भी सबूत छिपाने में आरोपियों की मदद कर रहे हैं।
इस पूरे मामले में आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए डीजीपी को विशेष पत्र भेजने का निर्णय लिया है। पत्र में 15 दिनों के भीतर तीनों युवतियों की अलग-अलग एफआईआर दर्ज करने और इसकी रिपोर्ट आयोग को भेजने का निर्देश दिया जाएगा। यदि डीजीपी 15 दिनों में एफआईआर दर्ज कर रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करते, तो आयोग युवतियों को पुलिस प्रशासन से मुआवजा दिलाने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र भेजेगा।महिला आयोग में आंतरिक विवादमहिलाओं की समस्याओं का समाधान करने और उनके मुद्दों की सुनवाई करने के लिए गठित छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग इस समय स्वयं आंतरिक विवादों से जूझ रहा है।
आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक पर आयोग की सदस्य लक्ष्मी वर्मा, दीपिका शोरी और सरला कोसरिया ने गंभीर आरोप लगाए हैं। इन सदस्यों का दावा है कि आयोग में अनियमितताएं हो रही हैं, जैसे शासकीय वाहन के खर्च की जानकारी न देना। इस मामले में जब हमने अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने मीडिया में बयान देने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि यह मामला अब सचिव के पास पहुंच चुका है और उचित जांच के बाद ही वे आधिकारिक रूप से अपनी बात रखेंगी।
किरणमयी नायक की नियुक्ति और विवाद
20 जुलाई 2020 को, जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार थी, तब डॉ. किरणमयी नायक को महिला आयोग की अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। उनका कार्यकाल जुलाई 2023 में समाप्त हो गया था, लेकिन कार्यकाल पूरा होने से 15 दिन पहले ही तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उनकी नियुक्ति को अगले कार्यकाल तक बढ़ा दिया। अब उनका कार्यकाल 20 जुलाई 2026 तक है। नवंबर 2023 में विष्णु देव साय के नेतृत्व में भाजपा सरकार सत्ता में आई। इसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने एक आदेश जारी कर सभी निगम, मंडल और आयोगों को भंग कर दिया।
आमतौर पर सरकार बदलने पर ऐसी नियुक्तियों पर सवाल उठते हैं। इस आदेश के बाद डॉ. किरणमयी नायक ने कोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि उनका पद संवैधानिक है, इसलिए उन्हें हटाया नहीं जा सकता। उन्होंने कोर्ट से इस आदेश पर स्थगन (stay) प्राप्त कर लिया। वर्तमान में यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है।
आयोग के सदस्यों और अध्यक्ष के बीच तनाव
पिछले साल साय सरकार द्वारा आयोग में तीन नए सदस्यों की नियुक्ति की गई थी। अब अध्यक्ष और इन सदस्यों के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है। सदस्यों के आरोपों को राजनीतिक रूप से प्रेरित माना जा रहा है, क्योंकि अध्यक्ष को वैधानिक रूप से हटाना संभव नहीं है।
सूत्रों के अनुसार, आयोग में कार्यरत एक कर्मचारी ने आवेदकों के नकली दस्तावेज तैयार कर जांच में हेरफेर की थी। सचिव ने इस कर्मचारी को दोषी पाए जाने पर तत्काल प्रभाव से हटा दिया, जिससे आरोप लगाने वाले सदस्य नाराज हो गए। सूत्र यह भी बताते हैं कि आयोग में लगातार भाजपा समर्थित व्यक्तियों से संबंधित मामले आ रहे हैं, और इन पर कार्रवाई होने से कुछ लोग नाराज हैं।
दुर्ग नन मामले की शुरुआत और आदिवासी युवतियों के साथ अन्याय
यह पूरा विवाद 25 जुलाई 2025 को शुरू हुआ, जब दुर्ग रेलवे स्टेशन पर बजरंग दल के एक कार्यकर्ता की शिकायत पर जीआरपी पुलिस ने केरल की दो नन, प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस, तथा नारायणपुर के एक युवक सुकमन मंडावी को गिरफ्तार किया था। उन पर नारायणपुर की तीन आदिवासी युवतियों को बहला-फुसलाकर आगरा ले जाने और जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाया गया था।
इस मामले में छत्तीसगढ़ धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम और अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई। हालांकि, बिलासपुर की एनआईए कोर्ट ने 2 अगस्त 2025 को दोनों नन और सुकमन मंडावी को सशर्त जमानत दे दी। कोर्ट ने प्रत्येक आरोपी से 50,000 रुपये का बॉन्ड और पासपोर्ट जमा करने का आदेश दिया, साथ ही बिना अनुमति देश छोड़ने पर रोक लगा दी।
युवतियों के आरोप
तीनों युवतियों ने पहले भी नारायणपुर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी। उनका दावा था कि वे अपनी मर्जी से नन के साथ आगरा जा रही थीं जहां उन्हें एक ईसाई मिशन अस्पताल में नौकरी का अवसर मिला था। युवतियों ने कहा कि वे पहले से ही ईसाई धर्म का पालन करती हैं, इसलिए धर्मांतरण का सवाल ही नहीं उठता। उनका आरोप है कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने उन्हें दुर्ग रेलवे स्टेशन पर रोका, मारपीट की और अपमानजनक टिप्पणियां कीं। युवतियों ने यह भी दावा किया कि बजरंग दल ने पुलिस के सामने उनसे जबरन झूठे बयान दिलवाए, जिसमें नन पर धर्मांतरण का आरोप लगाने के लिए दबाव डाला गया। इस मामले ने राजनीतिक और सामाजिक विवाद को और गहरा कर दिया है।