नई दिल्ली। (MOHAN BHAGWAT) ने गुरुवार को नागपुर में संगठन द्वारा आयोजित ‘विजयादशमी उत्सव’ के अवसर पर शस्त्र पूजा की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीयता का अर्थ हिंदू है। इस साल विजयदशमी उत्सव के अवसर पर आरएसएस अपने स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने का जश्न भी मना रहा है। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी उपस्थित थे।
नागपुर मुख्यालय में संबोधन के दौरान सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, “ विश्व भारत की ओर देख रहा है। ब्रह्मांड चाहता है कि भारत उदाहरण प्रस्तुत करते हुए विश्व को राह दिखाए।”मोहन भागवत ने कहा, “जब सरकार जनता से दूर रहती है और उनकी समस्याओं से काफी हद तक अनभिज्ञ रहती है और उनके हित में नीतियाँ नहीं बनाई जातीं, तो लोग सरकार के खिलाफ हो जाते हैं। लेकिन अपनी नाखुशी व्यक्त करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल करने से किसी को कोई लाभ नहीं होता। अगर हम अब तक की सभी राजनीतिक क्रांतियों का इतिहास देखें, तो उनमें से किसी ने भी अपना उद्देश्य कभी हासिल नहीं किया। सरकारों वाले राष्ट्रों में हुई सभी क्रांतियों ने अग्रिम राष्ट्रों को पूंजीवादी राष्ट्रों में बदल दिया है। हिंसक विरोध प्रदर्शनों से कोई उद्देश्य हासिल नहीं होता, बल्कि देश के बाहर बैठी शक्तियों को अपना खेल खेलने का मंच मिल जाता है।
आरएसएस 100 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है। इस दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा,” ये वर्ष श्री गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान का सढ़े तीन सौ वर्ष है। जिन्होंने अत्याचार, अन्याय और सांप्रदायिक भेदभाव से समाज के मुक्ती के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और समाज की रक्षा की ऐसी एक विभूति उनका समरण इस वर्ष होगा। आज 2 अक्टूबर है तो स्वर्गीय महात्मा गांधी की जयंती है अपने स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका योगदान अविस्मरणीय है। लेकिन, स्वतंत्रता के बाद भारत कैसा हो उसके बारे में विचार देने वाले हमारे उस समय के दार्शनिक नेता थे उनमें उनका स्थान अग्रणीय हैं। जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण दिए ऐसे स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री का आज जयंती है। भक्ति, देश सेवा के ये उत्तम उदाहरण हैं।”
भागवत कहते हैं, “अमेरिका द्वारा लागू की गई नई टैरिफ नीति उनके अपने हितों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। लेकिन इससे सभी प्रभावित होते हैं। दुनिया एक-दूसरे पर निर्भरता के साथ काम करती है। इसी तरह किन्हीं दो देशों के बीच संबंध बनाए रखे जाते हैं। कोई भी देश अलग-थलग नहीं रह सकता। यह निर्भरता मजबूरी में नहीं बदलनी चाहिए। हमें स्वदेशी पर भरोसा करने और आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। फिर भी अपने सभी मित्र देशों के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखने का प्रयास करें, जो हमारी इच्छा से और बिना किसी मजबूरी के होंगे।”