[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
‘आपके देश नरक में जा रहे हैं’: संयुक्त राष्ट्र में ट्रंप ने भारत, यूरोप और संयुक्त राष्ट्र पर हमला बोला
‘गरबा से दूर रहें मुस्लिम युवा’, वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज ने जारी किया फरमान
दुनिया की सबसे पुरानी विष्णु प्रतिमा छत्तीसगढ़ में पर आम लोग जानते नहीं
कांग्रेस में संगठन विस्तार पर फोकस, जिला अध्यक्ष बनाने छत्तीसगढ़ समेत तीन राज्यों में AICC ऑब्जर्वर नियुक्त
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार : शाहरुख, विक्रांत, मोहनलाल के अलावा बाल कलाकारों का भी रहा जलवा
मानहानि कानून अपराधमुक्‍त करने का समय आ गया है : सुप्रीम कोर्ट
सौम्या चौरसिया की 16 प्रॉपर्टी EOW ने की अटैच
जिस जज ने चार पत्रकारों को राहत दी वह नहीं करेंगे परंजॉय गुहा ठाकुरता की सुनवाई
माओवादियों की आधी लीडरशिप खत्म
अयोध्‍या में बाबरी के बदले बनने वाली मस्जिद का नक्‍शा ही खारिज, अब तक एक ईंट भी नहीं रखी जा सकी…
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.
लेंस संपादकीय

आपराधिक मानहानिः सुप्रीम कोर्ट से आया संदेश

Editorial Board
Last updated: September 23, 2025 8:28 pm
Editorial Board
Share
Criminal defamation
SHARE
The Lens को अपना न्यूज सोर्स बनाएं

सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने मानहानि से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की है कि मानहानि कानून को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का समय आ गया है। यदि ऐसा होता है, तो यह वाकई भारत की न्याय व्यवस्था में एक मील का पत्थर साबित होगा और इसका सार्वजनिक जीवन के साथ ही प्रेस की स्वतंत्रता पर दूरगामी असर पड़ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के रुख में यह एक बड़ा बदलाव है, जिसकी एक पीठ ने नौ साल पहले 2016 में सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ के मामले में आपराधिक मानहानि को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया था। तब कोर्ट ने प्रतिष्ठा के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 यानी जीने के अधिकार और अनुच्छेद 19 यानी अभिव्यक्ति की आजादी की तरह मौलिक अधिकार करार दिया था।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम एम सुंदरेश ने सोमवार को वेबपोर्टल वॉयर का संचालन करने वाले फाउंडेशन ऑफ इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है। हालांकि अभी इस मामले में सुनवाई जारी है। यह मामला 2016 में वॉयर के एक लेख से जुड़ा है, जिसे लेकर जेएनयू की एक पूर्व प्रोफेसर अमिता सिंह ने निचली अदालत में इस मीडिया प्लेटफार्म के खिलाफ आपराधिक मानहानि की याचिका दायर की थी।

दरअसल वायर ने अपने लेख में कथित रूप से अमिता सिंह के नेतृत्व में तैयार किए गए एक दस्तावेज का उल्लेख किया था, जिसमें जेएनयू को संगठित सेक्स रैकेट का अड्डा बताया गया था। मौजूदा व्यवस्था को देखें तो, पुरानी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 499 और 500 की जगह लेने वाली भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 356 मानहानि को अपराध बनाती है और इसमें दो साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सज़ा का प्रावधान है।

निस्संदेह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं हो सकती, लेकिन आधुनिक लोकतंत्र में आपराधिक मानहानि कानून की भी कोई जगह नहीं होनी चाहिए। दरअसल ऐसे मामलों के राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल की आशंकाएं भी बढ़ी हैं और उसकी वजह से संसद और विधानसभा की सदस्यता तक जा सकती है।

राहुल गांधी के मामले में ऐसा ही हुआ था, जब 2019 में मोदी सरनेम को लेकर की गई उनकी एक टिप्पणी को लेकर सूरत की एक अदालत ने उन्हें आपराधिक मानहानि के मामले में दो साल की सजा सुनाई थी और उनकी संसद से सदस्यता चली गई थी। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल के खिलाफ आए उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिससे उनकी सदस्यता बहाल हो गई थी।

यह नहीं भूलना चाहिए कि आपराधिक मानहानि से संबंधित कानून अंग्रेजों के जमाने में 1860 में भारत में लागू किया गया था, और आज ब्रिटेन तक में यह कानून नहीं है! भारत में भी लंबे समय से आपराधिक मानहानि कानून को हटाने और उसे दीवानी मुकदमे तक सीमित रखने को लेकर बहस चल रही है।

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने तो बकायदा मानहानि को डिक्रिमिनाइलज करने के लिए एक बिल भी 2023 में राज्यसभा में पेश किया था। निस्संदेह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं हो सकती, लेकिन आधुनिक लोकतंत्र में आपराधिक मानहानि कानून की भी कोई जगह नहीं होनी चाहिए। वाकई अब समय आ गया है, जब आपराधिक मानहानि को कानून की किताब से बाहर का रास्ता दिखाया जाए।

यह भी देखें : गजा का संकटः दो राष्ट्र समाधान ही रास्ता

TAGGED:Criminal defamationEditorialsupreme court
Previous Article कांग्रेस में संगठन विस्तार पर फोकस, जिला अध्यक्ष बनाने छत्तीसगढ़ समेत तीन राज्यों में AICC ऑब्जर्वर नियुक्त
Next Article Dr sanjay shrama दुनिया की सबसे पुरानी विष्णु प्रतिमा छत्तीसगढ़ में पर आम लोग जानते नहीं

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow

Popular Posts

एयर इंडिया विमान को बम से उड़ाने की धमकी, टॉयलेट में मिला पत्र, न्यूयॉर्क के रास्‍ते से वापस मुंबई लौटा विमान

नई दिल्‍ली। मुंबई से न्यूयॉर्क जा रही एयर इंडिया की उड़ान में बम की धमकी…

By अरुण पांडेय

Letting the left hand do what the right hand can’t

The three bills that home minister Amit shah tabled in the Lok Sabha today, are…

By Editorial Board

लार्ड्स में 22 रन से टेस्ट मैच हारा भारत, इंग्लैंड ने सीरीज में 2-1 से बनाई बढ़त

स्पोर्ट्स डेस्क। इंग्लैंड के साथ खेले जा रहे एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी (Anderson–Tendulkar Trophy) में भारत सीरीज…

By दानिश अनवर

You Might Also Like

Umar Khalid case
English

Judiciary is on a slippery slope

By Editorial Board
Electricity Bill Hall Scheme
लेंस संपादकीय

आम आदमी पर बिजली की मार

By Editorial Board
वक्फ बिल
लेंस संपादकीय

वक्फ पर जरूरी जिरह

By Editorial Board
No helmet no petrol
English

Token measures bereft of logic

By Editorial Board
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?