इस समय दुनिया के सबसे बड़े मानवीय संकटों में से एक का सामना कर रहे गजा की हालत इस्राइल की अमानवीय कार्रवाइयों के कारण दिनोंदिन बदतर होती जा रही है, ऐसे में वहां तुरंत समाधान की जरूरत है। फलस्तीन का यह संकट दो साल पहले सात अक्टूबर, 2023 को हमास के इस्राइल पर किए गए हमले और करीब ढाई सौ लोगों को बंधक बनाने से पैदा हुआ था।
इसके जवाब में इस्राइल ने गजा पर ताबड़तोड़ हमले किए हैं, जिसमें साठ हजार लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग कुपोषण और भुखमरी का सामना कर रहे हैं। इस्राइल गाजा से फलस्तीनियों का किसी भी तरह से सफाया करने को आमदा है, जिसकी अमेरिका जैसे देश शर्मनाक तरीके से अनदेखी कर रहे हैं।
दूसरी ओर ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल के फलस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता देने के बाद अब बेल्जियम, फ्रांस, लक्जमबर्ग, माल्टा और न्यूजीलैंड ने भी इसी तरह के संकेत दिए हैं। भारत के तो फलस्तीन से ऐतिहासिक संबंध हैं और उसने 1988 में ही फलस्तीन को मान्यता दे दी थी। मौजूदा घटनाक्रम से साफ है कि इस्राइल पर चौतरफा दबाव पड़ रहा है, लेकिन इसके बावजूद यह नाकाफी है।
वास्तव में इस्राइल की मौजूदा सत्ता ने घड़ी की सुई को 13 सितंबर, 1993 से पीछे की ओर धकेल दिया है, जिस दिन ओस्लो में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मध्यस्थता में इस्राइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन और फलस्तीन के नेता यासर अराफात के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ था और दो राष्ट्र समाधान को लेकर उम्मीदें जगी थीं।
दरअसल इस्राइल खुद को पीड़ित बताता है, लेकिन उसने गाजा में सारी हदें तोड़ दी हैं और वह वैश्विक बिरादरी को चुनौती देता नजर आ रहा है। इसी साल जुलाई में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया सहित 28 देशों ने संयुक्त अपील जारी कर कहा था कि गाजा में तुरंत युद्ध खत्म होना चाहिए, वहां लोग भोजन और पानी को लेकर तरस रहे हैं।
इसके बावजूद इस्राइल पर इसका असर नहीं हुआ, इसके उलट उसके प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने सोमवार को लगभग धमकाने वाले अंदाज में कहा है कि वह फलस्तीन नाम का कोई देश नहीं बनने देंगे! यह स्थिति स्वीकार नहीं की जा सकती और ऐसे में जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी और संयुक्त राष्ट्र को तुरंत कोई कदम उठाना चाहिए और दो राष्ट्र के समाधान के लिए इस्राइल पर दबाव बनाना चाहिए।
भारत ने हाल ही में इस्राइल-फलस्तीन संघर्ष को लेकर दो राष्ट्र के समाधान पर अपना समर्थन दोहराया है, लेकिन हाल के वर्षों में मोदी सरकार ने जिस तरह से इस्राइल के साथ दोस्ती गांठ रखी है, उससे कुछ सवाल भी उठते हैं। फलस्तीनी आज जिस संकट का सामना कर रहे हैं, उसे इतिहास उन देशों की भूमिका के साथ भी दर्ज करेगा, जो भीषण संकट के समय पीड़ित नहीं, आततायी के साथ खड़े थे।