द लेंस डेस्क। विभिन्न संगठनों और लेखकों ने साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवास राव के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों और दिल्ली हाईकोर्ट के हालिया फैसले को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। सचिव के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की मांग की जा रही है। साथ ही 25 से 28 सितंबर को पटना में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव ‘उन्मेष 2025’ के बहिष्कार की अपील भी की गई है।
‘द वायर हिंदी’ में एक रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद इस मामले ने तूल पकड़ा। रिपोर्ट में बताया गया कि साहित्य अकादमी ने यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाली एक महिला कर्मचारी का समर्थन करने के बजाय उनकी सेवाएं समाप्त कर दी थीं। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बर्खास्तगी को गैरकानूनी और प्रतिशोधात्मक माना और महिला को उनके पद पर पुनर्बहाल करने का आदेश दिया। साथ ही अदालत ने सचिव के खिलाफ जांच को जल्द पूरा करने का निर्देश दिया।
बिहार महिला समाज ने एक बयान में सचिव राव को तुरंत हटाने की मांग की है। संगठन का कहना है कि इतने गंभीर आरोपों के बावजूद राव का पद पर बने रहना यौन हिंसा को बढ़ावा देने जैसा है। संगठन ने बिहार के साहित्यकारों से ‘उन्मेष 2025’ का बहिष्कार करने की अपील की है।
साथ ही, संगठन ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार बार-बार यौन हिंसा के आरोपियों को पुरस्कृत कर रही है। बिहार महिला समाज की अध्यक्ष निवेदिता झा ने कहा, “यह शर्मनाक है कि साहित्य अकादमी ने पीड़िता का साथ देने के बजाय उसकी नौकरी खत्म कर दी, जिसे हाईकोर्ट ने बदले की कार्रवाई मानते हुए महिला को पुनर्नियुक्त करने का आदेश दिया।”
निवेदिता झा ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘उन्मेष 2025’ के लिए एक ग्रुप बनाया गया था, जिसमें साहित्यकारों से उनका पता मांगा जा रहा था। वे भी इस ग्रुप में शामिल थीं, लेकिन जब उन्हें साहित्य अकादमी के इस मामले की जानकारी मिली, तो उन्होंने समारोह के बहिष्कार और सचिव की बर्खास्तगी की मांग की। इसके बाद उनके संदेश को हटा दिया गया और ग्रुप को केवल प्रशासकों के लिए सीमित कर दिया गया।
जन संस्कृति मंच ने भी एक प्रस्ताव जारी कर सचिव को हटाने की मांग की है। मंच ने कहा कि अदालत का पीड़िता की बहाली का आदेश इस बात को रेखांकित करता है कि सचिव के खिलाफ आरोप बेहद गंभीर हैं। लेखक समुदाय भी इस मामले में मुखर हो गया है।
जनवादी लेखक संघ के महासचिव संजीव कुमार ने कहा, “साहित्य अकादमी जैसी संस्था इस स्तर तक गिर गई, यह शर्मनाक है!” वरिष्ठ पत्रकार और लेखक ओम थानवी ने इसे साहित्य जगत की बदनामी करार दिया। वहीं, ‘आलोचना’ पत्रिका के संपादक आशुतोष कुमार ने सुझाव दिया कि लेखकों को साहित्य अकादमी के सभी आयोजनों का पूर्ण बहिष्कार करना चाहिए।
क्या है पूरा मामला
साहित्य अकादमी ने एक महिला कर्मचारी, जिन्होंने यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी, उनको नौकरी से निकाल दिया गया था। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस कार्रवाई को गैरकानूनी और प्रतिशोधात्मक माना और महिला को उनके पद पर वापस नियुक्त करने का आदेश दिया। साथ ही अदालत ने स्थानीय शिकायत समिति (एलसीसी) को सचिव के खिलाफ जांच करने का निर्देश दिया।
2018 में साहित्य अकादमी की एक महिला कर्मचारी ने तत्कालीन सचिव डॉ. के. श्रीनिवास राव पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए एलसीसी में शिकायत दर्ज की थी। इसके बाद अकादमी ने कर्मचारी को ‘कार्य प्रदर्शन में कमी’ का हवाला देकर नौकरी से हटा दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने इसी साल 28 अगस्त को इस कार्रवाई को अवैध और बदले की भावना से प्रेरित माना और महिला की पुनर्नियुक्ति का आदेश दिया।
अदालत ने यह भी साफ किया कि इस मामले की जांच का अधिकार एलसीसी को है, न कि अकादमी की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) को। साहित्य अकादमी ने एलसीसी के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाते हुए जांच का विरोध किया था, लेकिन अदालत ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया।
महिला कर्मचारी की नियुक्ति फरवरी 2018 में साहित्य अकादमी में एक वरिष्ठ पद पर हुई थी। उनकी शिकायत के अनुसार, नियुक्ति के तुरंत बाद सचिव ने उनका यौन उत्पीड़न शुरू कर दिया। इसमें अनुचित शारीरिक संपर्क, अश्लील टिप्पणियां और यौन हमले जैसे कृत्य शामिल थे।
पहली घटना सितंबर 2018 में लेह यात्रा के दौरान हुई, जब सचिव ने महिला की शादी के बाद आपत्तिजनक टिप्पणी की। इसके बाद असम, गंगटोक और रांची की यात्राओं के दौरान भी कई बार अनुचित व्यवहार और टिप्पणियां सामने आईं।
महिला ने 7 नवंबर 2019 को अकादमी के अध्यक्ष को ईमेल के जरिए शिकायत की और एक स्वतंत्र समिति गठन की मांग की। हालांकि अध्यक्ष ने इसे आईसीसी को भेज दिया, जबकि महिला ने वहां औपचारिक शिकायत नहीं की थी। बाद में अध्यक्ष और आईसीसी ने उन पर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया और कहा कि सचिव के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी।
आखिरकार, महिला ने नई दिल्ली जिले के जिला मजिस्ट्रेट के अधीन कार्यरत एलसीसी में शिकायत दर्ज की। समिति ने मामले को सुनवाई योग्य माना और पीड़िता को अंतरिम राहत के रूप में तीन महीने का वेतन सहित अवकाश देने की सिफारिश की।
अदालत में कैसे पहुंचा मामला
जब साहित्य अकादमी ने एलसीसी की सिफारिशों को मानने से इनकार किया, तो पीड़िता ने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया। अकादमी ने भी एलसीसी के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 2020 और 2021 में जांच पर अंतरिम रोक लगा दी थी, लेकिन पीड़िता को वेतन सहित अवकाश देने का निर्देश दिया। फिर भी अकादमी ने 14 फरवरी 2020 को महिला की सेवाएं समाप्त कर दीं।
25 अक्टूबर 2021 को हाईकोर्ट ने इस कार्रवाई को रद्द किया, लेकिन अकादमी की अपील के बाद डिवीजन बेंच ने आदेश के अमल पर रोक लगा दी। इसके बाद, पीड़िता सुप्रीम कोर्ट पहुंची, जिसने 12 अप्रैल 2022 को आदेश दिया कि महिला को 1 अप्रैल 2022 से वेतन दिया जाए।