अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया भर के देशों पर टैरिफ लगाया है। इसके पीछे वे अमेरिका के स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने का कारण बता रहे हैं, लेकिन इसकी असल वजह व्यापार संतुलन से जुड़ी है।
भारत पर अब यह टैरिफ बढ़कर 50 प्रतिशत हो गया है, जिसमें 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ शामिल है। भारत में इसका सबसे पहला असर कपड़ा उद्योग पर दिखाई दे रहा है, जिसकी पहली कड़ी कपास उत्पादन करने वाले किसान हैं।
इसी बीच कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने कपास पर आयात शुल्क हटा लिया है। यह छूट 30 सितंबर तक जारी रहेगी। ऐसा करते ही भारत में कपास के दामों में 1100 रुपये की गिरावट दर्ज की गई। आयात शुल्क हटने को कॉर्पोरेट की मदद के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन केंद्र सरकार के इस फैसले की आलोचना इसलिए हो रही है, क्योंकि इस व्यापार युद्ध में कपास किसानों के हितों की अनदेखी की गई है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान संगठनों की ओर से साझा बयान जारी कर इस फैसले को वापस लेने की मांग की है। अखिल भारतीय किसान सभा ने 1 सितंबर से इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन का ऐलान किया है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि किसानों की आय दोगुनी करने का वादा करने के बाद भी सरकार पर किसानों का भरोसा क्यों नहीं बन पा रहा है? भारत के तमिलनाडु, महाराष्ट्र और पंजाब के किसान कपास उत्पादन करते हैं। वहीं सरकार के यह भी आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर दिन 31 किसान आत्महत्या करते हैं।
अमेरिका का 50 प्रतिशत टैरिफ और भारत में कपास पर आयात शुल्क शून्य कर देना। यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब दो महीने से खेतों में कपास की फसल खड़ी है और कटाई का समय नजदीक है। पहले से कर्ज में डूबे किसानों को डर है कि उनकी आगामी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा।
इससे पहले एक और वाजिब मांग किसानों की है, सी2+50% के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य। जिसका वादा 2014 के भाजपा चुनावी घोषणा-पत्र में किया गया था। मौजूदा समय में कपास 7121-7521 रुपये प्रति क्विंटल है, जिसे लेकर किसान संतुष्ट नहीं हैं।
किसानों की इन चिंताओं पर केंद्र सरकार की ओर से अभी कुछ साफ नहीं किया गया है। यह भी साफ नहीं है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संतुलन को लेकर जारी टैरिफ वार का सीजफायर कब होगा?