लेंस डेस्क। जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म हुए आज छह साल पूरे हो रहे हैं। 5 अगस्त 2019 को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के ऐलान के साथ ही जम्मू-कश्मीर दो दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित हो गया। जम्मू-कश्मीर (विधानसभा के साथ) और लद्दाख (बिना विधानसभा) के साथ ये दो केंद्र शासित राज्य मौजूदा समय में हैं। इसी के साथ देश में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हो चुके हैं। जब केंद्र की मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A हटा रही थी, तो वादा था कि इससे राज्य में अमन चैन की बहाली होगी। आज इस फैसले को छह साल पूरे हो रहे हैं, तो बड़ा सवाल यह कि इतने सालों बाद वादे जमीन पर कितना पूरे हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2023 को इस फैसले को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया, जिसमें कहा गया कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति को इसे हटाने का अधिकार था। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में व्यापक लॉकडाउन और कर्फ्यू लागू किया गया। टेलीफोन नेटवर्क और इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गईं। तब तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला सहित जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अब्दुल मजीद लारमी, गुलाम नबी भट्ट, डॉ. मोहम्मद शफी, मोहम्मद यूसुफ भट्ट सहित कई नेताओं को या तो नजरबंद कर दिया गया या हिरासत में ले लिया गया।
केंद्र सरकार का तर्क था कि यह कदम सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी था, क्योंकि अनुच्छेद 370 को हटाने से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन या अशांति की आशंका थी। हालांकि इस लॉकडाउन को धीरे-धीरे हटाया गया, लेकिन सामान्य स्थिति बहाल होने में समय लगा।
10 साल बाद हुए चुनाव

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद 2024 में विधानसभा चुनाव हुए, जो 2014 के बाद पहले विधानसभा चुनाव थे। यानी लगभग 10 साल बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए गए। इससे पहले 2020 में जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनाव हुए थे, जिसको लेकर दावा किया गया था लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने की दिशा में पहला है। सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर 2024 तक चुनाव कराने का निर्देश दिया था, जिसके बाद केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया।
आपको बता दें कि अगस्त 2019 से जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू था, जो राज्यपाल के माध्यम से संचालित किया गया। यह व्यवस्था छह साल तक चली क्योंकि अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य की विधानसभा भंग थी और नई सरकार के गठन तक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में प्रशासन चलाया गया। इस दौरान उपराज्यपाल (एलजी) ने शासन की बागडोर संभाली।
शांति बहाली के दावे और आतंकी घटनाएं

केंद्र सरकार का दावा है कि अनुच्छेद 370 हटने से जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास को बढ़ावा मिला। आधिकारिक आंकड़ों में बताया गया कि आतंकी घटनाओं में 70% की कमी आई और पथराव जैसी घटनाएं लगभग समाप्त हो गईं। 2016-2019 के बीच 930 आतंकी घटनाएं हुईं, जिसमें 290 जवान और 191 नागरिक मारे गए, जबकि 2019-2022 के बीच 617 घटनाओं में 174 जवान और 110 नागरिकों की मौत हुई।
हालांकि जम्मू क्षेत्र में हाल के वर्षों में आतंकी घटनाओं में वृद्धि देखी गई। 2024 में अप्रैल से जुलाई तक राजौरी, पुंछ, रियासी, कठुआ, उधमपुर और डोडा में छह बड़े आतंकी हमले हुए। ये हमले जंगल क्षेत्रों में विदेशी आतंकवादियों द्वारा किए गए, जिससे कश्मीर में शांति बहाली के बावजूद जम्मू क्षेत्र में नई चुनौतियां सामने आई हैं। 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बैसारन मैदान में आतंकवादियों ने पर्यटकों के एक समूह पर हमला किया, जिसमें 25 भारतीयों सहित कुल 26 लोग मारे गए। पहलगाम हमला जिसे मुंबई 26/11 के बाद सबसे बड़ा नागरिक-लक्षित हमला माना गया।
उमर अब्दुल्ला सरकार की मांगें और केंद्र से टकराव

जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने 2024 में विधानसभा में दो प्रस्ताव पारित किए। पहला पूर्ण राज्य का दर्जा, जिसे सभी पार्टियों का समर्थन मिला। दूसरा अनुच्छेद 370 की बहाली इस प्रस्ताव पर बीजेपी ने कड़ा विरोध किया, जिसके कारण विधानसभा में हंगामा और हाथापाई भी हुई।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शुरू में कहा था कि वे केंद्र सरकार के साथ टकराव से बचेंगे, लेकिन अनुच्छेद 370 की बहाली के प्रस्ताव ने उनके इरादों पर सवाल उठाए। बीजेपी का कहना है कि यह प्रस्ताव जनता को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने की कोशिश है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को हटाने को वैध ठहराया है और इसे बहाल करना संभव नहीं। उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे से जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग करते रहेंगे।
लद्दाख में सोनम वांगचुक का आंदोलन

जम्मू-कश्मीर के साथ ही लद्दाख भी केंद्र शासित प्रदेश बना। पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक ने लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (LAHDC) को अधिक शक्तियां देने और छठीं अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। सोनम वांगचुक का कहना है लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी को औद्योगिक परियोजनाओं से बचाना जरूरी है। लद्दाख के लोगों को अपनी जमीन और संसाधनों पर नियंत्रण देने के लिए 6ठी अनुसूची लागू करना चाहिए।
आपको बता दें कि जब लद्दाख जम्मू-कश्मीर से अलग हुआ तो विधानसभा जम्मू-कश्मीर के हिस्से में चली गई। लद्दाख में 1 लोकसभा सीट है, लेकिन विधानसभा की एक भी सीट नहीं है इसलिए तत्काल वहां विधानसभा की जरूरत भी नहीं है। लेकिन सोनम वांगचुक लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा या कम से कम विधानसभा की स्थापना की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं।
वांगचुक ने 2024 में भूख हड़ताल और पदयात्रा के जरिए अपनी मांगें उठाईं, जिसे व्यापक समर्थन मिला। केंद्र सरकार ने LAHDC को कुछ अतिरिक्त शक्तियां दीं, लेकिन 6ठी अनुसूची पर अभी कोई ठोस फैसला नहीं हुआ। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अगस्त 2024 में पांच नए जिले बनाने की घोषणा की, जिसके बाद अब लद्दाख में जिलों की संख्या 7 हो जाएगी। लेह और कारगिल के अलावा जिन नए जिलों को बनाने की घोषणा हुई है उनमें जांस्कर, द्रास, शाम, नुब्रा और चांगथांग शामिल हैं।
कश्मीरी पंडितों की वापसी का सवाल कायम, घट रहे परिवार
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति, जो कश्मीर घाटी में रहने वाले गैर-प्रवासी कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व करती है, उसने हाल ही में एक सर्वेक्षण किया, जिसमें समुदाय के सामने मौजूद सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को उजागर किया गया। सर्वे में पाया गया कि आर्थिक तंगी, रोजगार की कमी, सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं और युवाओं की बढ़ती उम्र के कारण कश्मीरी पंडितों की आबादी में लगातार कमी आ रही है। 1990 के दशक में हुए पलायन ने इस समुदाय की संख्या को पहले ही प्रभावित किया था, लेकिन वर्तमान में नई चुनौतियां इस गिरावट का कारण बन रही हैं।
सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के 808 परिवार थे, जो 2024 तक घटकर 728 रह गए हैं। संगठन का कहना है कि स्थानीय मुस्लिम समुदाय के समर्थन के बावजूद, कश्मीरी पंडितों को सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में कई रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है।
एसआरओ 425 के तहत रोजगार और पुनर्वास के लिए उनके लंबे समय से चले आ रहे प्रयास नौकरशाही अड़चनों के कारण रुके हुए हैं। इसके अलावा, अविवाहित कश्मीरी पंडित युवाओं की बढ़ती संख्या एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए विश्वास-निर्माण की बात कही, लेकिन समुदाय का मानना है कि जब तक सरकार ठोस कदम नहीं उठाएगी, तब तक उनकी वापसी की संभावना नगण्य है।
बढ़ती चुनौतियों के बीच विकास
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में 2019 के बाद से अब तक 80,000 करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त हुआ, जिसने रोजगार सृजन और उद्यमिता को प्रोत्साहन दिया। बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी आई और उदयपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (यूएसबीआरएल) अब पूरी तरह कार्यरत है, जो कश्मीर घाटी को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ता है।
जोजी ला सुरंग (2026 तक पूर्ण), जोड-मोर्ह सुरंग, और बनिहाल-काजीगुंड सड़क सुरंग जैसे प्रोजेक्ट्स ने यातायात को सुगम बनाया है। मार्च 2025 तक भारतनेट योजना के तहत 9,789 फाइबर-टू-होम कनेक्शन स्थापित किए गए, जिससे डिजिटल कनेक्टिविटी में वृद्धि हुई। साथ ही पर्यटन क्षेत्र में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। 2024 में यूनेस्को ने श्रीनगर को ‘वर्ल्ड क्राफ्ट सिटी’ के रूप में मान्यता दी।
चिनाब ब्रिज, जो 359 मीटर ऊंचा है और एफिल टॉवर से भी अधिक ऊंचाई वाला है, बनकर तैयार हुआ। यह 1,315 मीटर लंबा स्टील आर्च ब्रिज भूकंप और तेज हवाओं का सामना करने में सक्षम है। इसके अलावा, वंदे भारत ट्रेनों का संचालन भी शुरू हो चुका है।
लेकिन जम्मू क्षेत्र में आतंकी हमलों का बढ़ना, उमर अब्दुल्ला सरकार और केंद्र के बीच अनुच्छेद 370 पर तनाव, और लद्दाख में स्थानीय स्वायत्तता की मांगें अनसुलझी हैं। जेल में बंद इंजीनियर राशिद की 2024 में लोकसभा जीत ने भी राजनीतिक जटिलताएं बढ़ाई हैं।