रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार प्रदेश की बिजली विपणन कंपनी सीएसपीडीसीएल (CSPDCL) की करीब 10 हजार करोड़ रुपए की कर्जदार है। यह उस कंपनी के 10 हजार करोड़ रुपए हैं, जिस कंपनी का सालाना राजस्व ही 21 हजार करोड़ रुपए है। और यही सबसे हैरान करने वाली बात है। सरकार के अलग-अलग विभागों के बिजली बिल और राज्य सरकार की तरफ से दी जाने वाली सब्सिडी के तौर पर यह कर्जे की रकम बिजली कंपनी को लेना है। चार अलग-अलग मदों के बिल सरकार पर बकाया हैं, जो उसे बिजली कंपनी को देने हैं।
इसी बीच सरकार ने मुख्यमंत्री बिजली बिल हाफ योजना का दायरा 400 यूनिट से घटाकर 100 यूनिट कर दिया है तो सवाल खड़े हो रहे हैं कि कंपनी की करीब 10 हजार करोड़ रुपए की कर्जदार सरकार अब निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग परिवार के खिलाफ यह फैसला किसके लिए कर रही है।
अगर सिर्फ सरकारी विभागों के ही बिजली बिल की बात करें तो करीब 25 सौ करोड़ रुपए बकाया है, जिसके लिए कंपनी की तरफ से बार-बार स्मरणपत्र भेजा जाता है, लेकिन अब तक बिजली बिल सरकारी विभागों की तरफ से क्लियर नहीं किया गया है।
बिजली बिल की इस बकाया रकम की वजह से RDSS स्कीम के तहत केंद्र सरकार से मिलने वाली करीब साढ़े 7 सौ करोड़ की रकम भी नहीं मिल सकी है। इसके अलावा पूर्व के वर्षों की सब्सिडी के करीब 6 हजार करोड़ रुपए भी बकाया हैं।
इतना ही नहीं अलग-अलग योजनाओं, जिसमें हाफ बिजली बिल योजना, किसान मुफ्त बिजली बिल योजना, टैरिफ दरों में हस्तक्षेप करने और एकल बत्ती योजना के तहत मिलने वाले करीब 1 हजार करोड़ रुपए भी पावर कंपनी को नहीं मिले हैं। इस तरह सरकार से बिजली कंपनियों को 4 तरह की रकम जिसमें बिजली बिल, आरडीएसएस स्कीम, सब्सिडी मद और सरकार की अलग-अलग योजनाओं के तहत दी गई बिजली सप्लाई की रकम कंपनी को वसूलनी है।
पावर कंपनी के जानकार सूत्र कहते हैं कि सरकार के विभिन्न विभागों के बिजली बिल के बकाए की राशि 25 सौ करोड़ रुपए नहीं मिलने की वजह से केंद्र सरकार की आरडीएसएस योजना की सहभागिता खतरे में है, क्योंकि योजना की शर्तों के अनुसार यह जरूरी है कि राज्य सरकार अपनी बकाया राशि का भुगतान बिजली कंपनी को समय से करे। ऐसा न होने पर न सिर्फ राज्य को मिलने वाली केंद्रीय सहायता में रुकावट आएगी, बल्कि राज्य सरकार को अनुदान के तौर पर मिलने वाली रकम कर्ज में बदल जाएगी, जिसके ब्याज की अदायगी केंद्र सरकार को करनी होगी।
सरकारी विभागों के बकाए बिजली बिल

कंपनी के सूत्रों के मुताबिक अगर सरकारी विभागों के बकाए पर नजर डालें तो 18 सौ करोड़ रुपए तो सिर्फ नगरीय निकाय और पंचायती विभागों के बकाया हैं। नवंबर 2024 की स्थिति में ही 2290 करोड़ रुपए प्रदेश के लगभग सभी प्रमुख विभागों का बचा हुआ है। इसमें नगरीय निकाय के 1377 करोड़ और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के 472 करोड़ रुपए की रकम बची है। बाकी विभागों का करीब 7 सौ करोड़ रुपए है। इसमें स्कूल शिक्षा विभाग का 85 करोड़, पीएचई विभाग की 80 करोड़, स्वास्थ्य विभाग का 77 करोड़, गृह विभाग साढ़े 33 करोड़, जल संसाधन विभाग का करीब 27 करोड़, महिला एवं बाल विकास विभाग के करीब 24 करोड़, आदिम जाति एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के साढ़े 19 करोड़, आवास एवं पर्यावरण विभाग के पौने 15 करोड़, पीडब्ल्यूडी के साढ़े 13 करोड़, वन विभाग के 13 करोड़, राजस्व विभाग के 12 करोड़, उच्च शिक्षा विभाग के 7 करोड़, कृषि विभाग, कौशल विकास और विधि विधायी कार्य विभाग के साढ़े 3-3 करोड़ रुपए बकाया हैं। इसके अलावा सहकारिता विभाग के 3 करोड़, उद्यानिकी विभाग के ढाई करोड़, खेल, पर्यटन और अन्य विभागों के करीब 25 करोड़ रुपए बकाया हैं।
RDSS स्कीम के तहत साढ़े 7 सौ करोड़ नहीं मिले।
कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक सरकारी विभागों के ही करोड़ों रुपयों के बिजली बिल का भुगतान नहीं होने की वजह से RDSS स्कीम के तहत केंद्र सरकार की तरफ से मिलने वाला 750 करोड़ रुपए का अनुदान भी नहीं मिला है। RDSS (रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम) यानी पुनर्गठित वितरण क्षेत्र योजना की एक ऐसी स्कीम है, जिसके तहत केंद्र सरकार राज्य की कंपनियों को अनुदान देती है। लेकिन, यह अनुदान तब मिलता है, जब राज्य सरकार का किसी भी तरह बिजली बिल बकाया कंपनियों पर न हो। इसका मतलब हुआ कि इस बिजली बिल के बकाए 25 सौ करोड़ की वजह से कंपनी को भारत सरकार की तरफ से मिलने वाला 750 करोड़ का अनुदान भी नहीं मिल सका है।
सब्सिडी मद के 6 हजार करोड़ भी नहीं मिले

पूर्व के वर्षों की सब्सिडी मद की करीब 6 हजार करोड़ रुपए बकाया है। यह वह रकम है, जो राज्य सरकार अपनी योजनाओं के तहत 3 से 5 हॉर्स पॉवर बिजली पंप पर निधारित सीमा तक नि:शुल्क् बिजली सप्लाई योजना के तहत फ्लैट रेट के विकल्प के तौर पर बिजली सप्लाई का प्रावधान सरकार ने लागू किया था। फ्लैट रेट का विकल्प चुनने वाले किसानों पर प्रति वर्ष खपत की कोई सीमा लागू नहीं होती है, लेकिन राज्य सरकार ने सब्सिडी में 6000 और 75 सौ यूनिट को भी शामिल किया, जिसकी खपत के आधार पर अतिरिक्त राशि का भुगतान सरकार को बिजली कंपनी को करना था। इस रकम का भुगतान नहीं किया गया। इस मद में भी सरकार को 6 हजार करोड़ का भुगतान कंपनी को करना है, जो नहीं किया गया है। यह रकम मय ब्याज के है। अगर बिना ब्याज के भी सब्सिडी की रकम की बात करें तो करीब 45 सौ करोड़ रुपए सिर्फ सब्सिडी का बकाया है। यह रकम 2016 से 2025 तक की है। 9 वर्ष में करीब 45 सौ करोड़ रुपए का मतलब होता है कि हर वर्ष औसत 5 सौ करोड़ रुपए की सब्सिडी की रकम राज्य सरकार पर बकाया है।
अलग-अलग योजनाओं के 1 हजार करोड़ बकाया
इसके अलावा राज्य सरकार की अलग-अलग योजनाओं के मद में देय राशि का भी भुगतान नहीं हो सका। इसमें टैरिफ में वृध्दि न होने, बिजली बिल हाफ योजना, एकल बत्ती और किसानों को मुफ्त बिजली बिल योजना के तहत करीब 1 हजार करोड़ बकाया है, जिसका भुगतान अब तक कंपनी को नहीं हुआ है।
इस मामले में हमने बिजली कंपनी के चेयरमैन और ऊर्जा विभाग के सचिव रोहित यादव से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन वे इस पर कुछ भी नहीं कहे। इसके अलावा बिजली कंपनी के एमडी भीम सिंह कंवर से भी संपर्क करने की कोशिश की, उन्हें मैसेज किया, लेकिन उनकी तरफ से कोई रिप्लाई इस संबंध में नहीं किया गया।
10 हजार करोड़ भुगतान नहीं करने से बिजली सप्लाई होगी प्रभावित
छत्तीसगढ़ रिटायर्ड पॉवर इंजीनियर्स-ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पीएन सिंह का कहना है कि इस संबंध में उन्होंने भी राज्य सरकार को कई बार पत्र लिखा और कंपनी की बकाया रकम के भुगतान की मांग की। लेकिन अभी तक कोई सरकार की ओर से कंपनी को पैसे मिलने के कोई संकेत ही नहीं हैं। श्री सिंह कहते हैं कि कंपनी को करीब 10 हजार करोड़ रुपए मिलने है, जिसमें बिजली बिल के ही करीब 25 सौ करोड़ रुपए हैं। ऐसे में जरूरी है कि कंपनी की बकाया रकम का भुगतान सरकार की तरफ से जल्द से जल्द किया जाए, नहीं तो प्रदेश की विद्युत सप्लाई प्रभावित होगी और इसका असर प्रदेश के उपभोक्ताओं पर होगा।
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