छत्तीसगढ़ की विष्णु देव साय सरकार ने अब तक मिलने वाली दो सौ यूनिट मुफ्त बिजली योजना में बड़ा बदलाव करते हुए इसे अब पचास यूनिट तक सीमित कर आम उपभोक्ताओं को बड़ा झटका दिया है। भूपेश बघेल की अगुआई वाली पूर्व कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के बाद 2019 में घरेलू उपभोक्ताओं को चार सौ यूनिट बिजली की खपत पर दो सौ यूनिट के बिल माफ कर दिए थे, जिससे राज्य की दो तिहाई से अधिक आबादी को लाभ हुआ था। हाफ बिजली बिल योजना से दो सौ यूनिट बिजली की खपत करने वाले उपभोक्ताओं को तो बिजली मुफ्त में ही मिल रही थी। निस्संदेह यह एक लोकप्रिय राजनीतिक फैसला था। दरअसल अकेले छत्तीसगढ़ की बात नहीं है, सारे देश में बिजली बोर्डों और उससे जुड़ी संस्थाओं का बुरा हाल है, जिसकी वजह से बिजली क्षेत्र में भारी विसंगतियां हैं, जिसे दूर करने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने चार सौ यूनिट बिजली बिल हाफ योजना को सीमित कर सौ यूनिट तक करने के अपने फैसले पर प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना का जिक्र किया है और संदेश देने की कोशिश की है कि उपभोक्ता इसकी ओर प्रेरित हों। दरअसल जिस तरह यह कदम उठाया गया है, उससे यही लगता है कि हाफ बिजली बिल योजना में बदलाव की बड़ी वजह भी यही है। ऐसे समय, जब इलेक्ट्रिक वाहनों पर जोर दिया जा रहा है, तो यह भी समझना पड़ेगा कि आम उपभोक्ताओं के लिए बिजली की जरूरतें किस तरह बढ़ी हैं। हाफ बिजली बिल योजना को सौ यूनिट तक सीमित करने से उपभोक्ताओं का बड़ा वर्ग इससे वंचित हो जाएगा। जहां तक सौर ऊर्जा की बात है, तो इससे बहुत से ऐसे लोग वंचित हो सकते हैं, जिनके पास सोलर पैनल लगाने के लिए पक्के या छत वाले मकान नहीं हैं या जो बहुमंजिला इमारतों के फ्लैट में रहते हैं। निस्संदेह, जैसा कि मोदी सरकार का अक्षय उर्जा पर जोर है, सौर ऊर्जा को विकल्प के तौर पर देखा ही जाना चाहिए, लेकिन इसके साथ यह भी देखने की जरूरत है कि बिजली अपने आममें सामाजिक असमानता का कारण न बन जाए!

