[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
रायपुर में पहली बार सिख गुरुओं की ऐतिहासिक धरोहर का प्रदर्शन
डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए : डॉ. राकेश गुप्ता
ट्रंप के 25% टैरिफ से शेयर बाजार का शुरुआती कारोबार लड़खड़ाया, सेंसेक्स 683 अंक टूटा
भूपेश बघेल ने पूछा – किस स्कूल में पढ़े हैं विष्णु देव साय?
ननों की गिरफ्तारी के विरोध में दिन में प्रियंका हाथ में तख्ती लिए खड़ी रहीं, शाम को राजीव शुक्ला ने CM साय के साथ किया डिनर
रायपुर के क्रिकेट स्टेडियम में अब खेले जा सकेंगे ICC टूर्नामेंट के मैच
आईआईटी, एमबीए, यूपीएससी, पीएससी परीक्षा में जुटे नौजवान गौर करें
NISAR Satellite Launch: अंतरिक्ष में क्‍या करेगा निसार, NASA-ISRO का है संयुक्‍त अभियान
आखिरकार भारत-पाकिस्तान WCL सेमीफाइनल मुकाबला रद्द
CG कैबिनेट : छत्तीसगढ़ क्रिकेट संघ को इंटरनेशनल स्टेडियम के पास अकादमी के लिए सरकार देगी जमीन
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.

Home » सड़क हादसे राष्ट्रीय आपदा घोषित हों

सरोकार

सड़क हादसे राष्ट्रीय आपदा घोषित हों

Editorial Board
Last updated: June 12, 2025 12:51 pm
Editorial Board
Share
road accidents
SHARE
मधुरेन्द्र सिन्हा
वरिष्ठ पत्रकार

देश में हर साल बाढ़ जैसी प्राकृतिक घटनाओं से हजारों लोग मर जाते हैं, तो उसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग उठती है और कई बार  उसे स्वीकार भी कर लिया जाता है। तदनुसार सरकार कदम भी उठाती है। लेकिन किसी ने भी मनुष्य के द्वारा पैदा की जा रही ऐसी किसी स्थिति को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग नहीं की, जिसमें बहुत से लोगों की मौत हो जाती है। यह बात इसलिए हैरान करने वाली है कि देश में हर दिन औसतन 42 बच्चे और 31 किशोर सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवा बैठते हैं। केंद्रीय सड़क परिवाहन एवं  राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार 2024 में देश भर में पांच लाख सड़क हादसे हुए, जिनमें 1.80 लाख लोगों की मौत हुई। इस साल यह आंकड़ा बढता ही जा रहा है।

हैं न ये आंकड़े भयावह? इतना ही नहीं आगे भी पढ़िये। भारत में दुनिया के सिर्फ एक प्रतिशत वाहन हैं, लेकिन सड़क पर होने वाली अकाल मृत्यु के मामले में हम दुनिया में होने वाली कुल मौतों का 11 प्रतिशत हैं। यह डरावना सच है। अखबारों के पन्ने सड़क दुर्घटनाओं की खबरों से भरे पड़े हैं। लेकिन इसे लेकर देश में कोई चीख पुकार नहीं हो रही है और न ही कोई संगठन, एनजीओ, राजनीतिक दल इसे वरीयता का मुद्दा बना रहा है। चूंकि यह मामला राजनीति से जुड़ा हुआ नहीं है, इसलिए इस पर कोई बड़ी चर्चा नहीं हो रही है। हर कोई इससे कन्नी काटता दिख रहा है। बस, जब कोई ऐसी दुर्घटना होती है, जिसके पात्र नामी लोग हों या जिससे सनसनी फैले वैसी खबरों पर चर्चा होती है लेकिन उससे सबक लेने को कोई तैयार नहीं होता दिखता है।

देश में अभूतपूर्व रफ्तार से हाईवे बन रहे हैं और बनने भी चाहिए लेकिन उन पर होती हुई दुर्घटनाओं को रोकने के लिए क्या कारगर कदम उठाये गए हैं, इस पर कोई जवाब नहीं है। सरकार ने जो नीति बनाई उसे अब तक कार्यान्वित क्यों नहीं किया गया? क्या केन्द्र और राज्य सरकारों में सड़क दुर्घटनाओं के मुद्दे पर संवेदनशीलता का अभाव है? इस सवाल का जवाब मुश्किल है लेकिन उसे ढूंढ़ना तो पड़ेगा ही और समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाना ही पड़ेगा।

इसके साथ ही एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि क्या जागरूकता के अभाव में ऐसा हो रहा है? लेकिन यह भी पूरी तरह से सही नहीं लगता। डब्लूएचओ के विशेषज्ञ जी गुरुराज कहते हैं कि जागरूकता लाने से भी दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाना संभव होगा या नहीं यह शोध का विषय है। इस सिलसिले में वह सायरस मिस्त्री का उदाहरण देते हैं जो टाटा समूह के एक समय चेयरमैन भी थे और टाटा मोटर्स में योगदन भी कर रहे थे। मुंबई के निकट पालघर के पास हाईवे पर उनकी मर्सीडीज कार बेहद रफ्तार (134 किलोमीटर प्रति घंटा) से डिवाइडर से टकराई। पिछली सीट पर बैठे सायरस कार की खिड़की से बाहर फिंक गये और वहीं उनकी मौत हो गई। अब यहां बड़ा सवाल यह था कि ऑटोमोबाइल कंपनी चलाने वाला व्यक्ति इतनी बड़ी लापरवाही कैसे कर गया। दुर्घटना के समय उन्होंने सीट बेल्ट भी नहीं लगाया हुआ था और इस वजह से वह कार से बाहर जा गिरे। इतना ही नहीं उन्होंने साथी चालक को गाड़ी धीरे चलाने को भी नहीं कहा। ऐसी कई दुर्घटनाएं होती हैं, जो लग्जरी कारों या महंगी कारों में बैठे लोगों की म़ृत्यु का कारण बन जाती हैं। डॉक्टर गुरुराज का सवाल है कि ये सभी एजुकेटेड लोग, भला इन्हें सड़क और ड्राइविंग संबंधी नियमों का ध्यान कैसे नहीं होगा? वह कहते हैं कि हमारे पास सख्त कानून भी हैं, पर्याप्त आंकड़े भी हैं तो फिर कमी किस बात की है?

यूनिसेफ इंडिया द्वारा सड़क सुरक्षा और प्रणाली पर मौलाना आजाद नैशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (मानु) आयोजित एक मीडिया कंसल्टेशन के दौरान सड़क सुरक्षा के मामले को और ऊपर लाने की बात कही गई। इस मुद्दे को विकास और जन स्वास्थ्य से जोड़ने की बात कही गई। कानूनों के और बेहतर तरीके से पालन तथा प्रणालीगत सुधार की भी बात कही गई।

यूनिसेफ के एक्सपर्ट डॉक्टर जिलालेम टेफैसी कहते हैं कि इस मुद्दे पर समाज और सरकार के हर वर्ग को आगे आना चाहिए। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर एक साथ सवाल उठने चाहिए। चाहे वो शैक्षणिक संस्थान हों, पालिकाएं हों, विधान सभाएं हों, संसद हो, स्वास्थय विभाग हो, अस्पताल हो और मीडिया भी हो, उन सभी को एक साथ मिलकर जनता को शिक्षित करना चाहिए। सड़क सुरक्षा को एक जन अभियान का रूप देना चाहिए ताकि घर-घर बात पहुंचे।यूनिसेफ इंडिया के हेल्थ स्पेशलिस्ट ड़क्टर सैयद हुब्बे अली ने सड़क सुरक्षा को एक हमारी स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत बडा बोझ बताया। उनका कहना है कि इस मुद्दे को ज्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा है जबकि इसकी सख्त जरूरत है। हमें आकस्मिक दुर्घटनाओं के इलाज के केन्द्रों को और भी मजबूत बनाना चाहिए। यह भी एक दुखद पहलू है कि दुर्घटना में घायल लोगों को समय पर चिकित्सा नहीं मिल पाने से हजारों लोग दम तोड़ देते हैं और इनमें छोटे बच्चे ज्यादा होते हैं। सड़कों पर तुरंत ऐंबुलेंस कैसे पहुंचे इस पर बड़ी चर्चा ही नहीं ऐक्शन होना चाहिए। समाज के लोगों को इस बात के लिए तैयार करना चाहिए कि वे घायलों की किस तरह से तुरंत मदद करें।

हर दिन 80 मौतें

एक्सपर्ट तो अपनी बात कहते हैं और उन पर काम भी होना चाहिए। लेकिन सवाल है कि जिस देश में लोग स्वभावतः लापरवाह हों वहां कैसे कदम उठाये जायें कि दुर्घटनाएं रुकें? हेल्मेट का ही उदाहरण लीजिये। इसे पहने बगैर चलाने वालों में दुर्घटनाओं की संभावना सबसे ज्यादा होती है। पिछले साल दुर्घटनाओं में बिना हेल्मेट के दोपहिया वाहन चलाते समय हर दिन 80 सवार मारे गये। इससे भी बड़ी संख्या में घायल हो गये। अगर सभी दोपहिया चालक हेल्मेट पहनने लगें तो उनसे जुड़ी सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में 42 प्रतिशत और दुर्घटनाओं में 69 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। एक और समस्या है कि लोग तयशुदा स्पीड से ज्यादा रफ्तार से गाड़ियां चलाते हैं और दुर्घटना करते हैं या शिकार बनते हैं। 75 प्रतिशत दुर्घटनाएं सिर्फ इसी वजह से होती हैं।

सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए स्कूलों में बच्चों को जागरूक करना होगा ताकि वे अपने घरों के सदस्यों को हेल्मेट पहनने के लिए बाध्य करें। आज के बच्चे कल के नागरिक हैं और वे अभी से ही जागरूक तथा नियमों के पालन के लिए कृत संकल्प हों यह देश के लिए जरूरी है। इसके लिए मीडिया की भी बड़ी भूमिका है। उसे दुर्घटनाओं को सनसनीखेज ढंग से या सिर्फ वीआईपी से जुड़े मामलों के कवरेज से दूर स्वस्थ और व्यापक कवरेज देना चाहिए जिससे समाज में एक मेसेज जाये कि सड़क दुर्घटनाओं को रोकने में सभी की महत्वपूर्ण भूमिका है।सच तो है कि भारत में हालात तब तक नहीं बदलेंगे जब तक इंसानी व्यवहार और सामाजिक सोच में बदलाव नहीं आयेगा। जरूरत है कानूनों के दिल से सम्मान और पालन की।

TAGGED:IndiaMadhurendra SInharoad accidents
Share This Article
Email Copy Link Print
Previous Article JAVED ON SADGURU जावेद अख्तर का सद्गुरु पर निशाना, कहा – ‘ भक्तों के विश्वास का उठा रहे गलत फायदा ‘
Next Article MAUSAM ALERT उत्तर भारत में लू का कहर, कुछ राज्यों में जल्द बारिश की उम्मीद

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow

Popular Posts

कश्मीरियत के साथ खड़े होने का वक्त

ऐसे वक्त में जब जम्मू-कश्मीर में सब कुछ सामान्य होने का भरोसा जताया जा रहा…

By Editorial Board

छत्तीसगढ़ उच्च शिक्षा विभाग ने जारी की प्रवेश मार्गदर्शिका, इन नियमों का करना होगा पालन

रायपुर। छत्तीसगढ़ उच्च शिक्षा विभाग ने कॉलेजों में शुरू होनो जा रहे नए सत्र के…

By Lens News

जातिगत जनगणना : लोहिया और कांशीराम के नारों ने बदली सियासत

द लेंस डेस्‍क। केंद्र सरकार आखिरकार जातिगत जनगणना कराने के लिए तैयार हो गई है,…

By Arun Pandey

You Might Also Like

Well done India
लेंस संपादकीय

Well done India

By Editorial Board
दुनिया

पुतिन ट्रम्प की बातचीत में उठा ऑपरेशन सिंदूर का मामला, क्रेमलिन ने कहा – ट्रंप ने युद्ध रुकवा दिया

By Lens News
Pen and politics
सरोकार

आंबेडकर, कांशीराम और राहुल की कलम

By Sudeep Thakur
Politics of revenge in emergency
सरोकार

इमरजेंसी में प्रतिशोध की राजनीति : गांधीवादी उद्योगपति के यहां डलवा दिए गए थे आयकर के छापे!

By Rasheed Kidwai
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?