बहुचर्चित कॉमनवेल्थ खेल घोटाले में कथित मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित क्लोजर रिपोर्ट प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के साथ ही देश की प्रमुख अभियोजन एजेंसियों की साख पर तो सवाल उठाती ही है, इससे कैग जैसी प्रतिष्ठित संस्था की जवाबदेही भी एक बार फिर कठघरे में है। इस मामले की फाइल बंद होने के साथ ही कॉमनवेल्थ आयोजन समिति के तत्कालीन अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी और महासचिव ललित भनोट सहित अन्य लोगों के खिलाफ लगाए गए आरोप बेबुनियाद साबित हुए हैं। दिल्ली में 2010 में कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन किया गया था और उस समय वहां शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं। कोई साल भर बाद सीवीसी और कैग की रिपोर्ट्स में इस आयोजन की आड़ में 70,000 करोड़ रुपये के घोटाले का दावा किया गया था, जिसकी अब हवा निकल गई है। दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार और केंद्र में यूपीए के सत्ता से जाने के पीछे कॉमनवेल्थ और 2 जी स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाले जैसे मामले भी थे, जो एक-एक कर अदालतों में दम तोड़ रहे हैं। दरअसल तेरह साल बाद आए इस फैसले ने दिखाया है कि किस तरह से कैग और सीवीसी की रिपोर्ट्स की आड़ में जांच एजेंसियों के साथ ही मीडिया ने खुद को राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल होने दिया। किसी और संदर्भ में कुछ साल पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन ने कहा था, हमारी अपराध न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ही सजा बन जाती है। कहने की जरूरत नहीं कि इस मामले को भी इसी रूप में देखा जाना चाहिए।
13 साल बाद

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