रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने हसदेव अरण्य (Hasdeo Aranya) में प्रस्तावित कोयला खनन को हरी झंडी दे दी है। वन विभाग ने केते एक्सटेंशन ओपन कास्ट कोल माइनिंग और पिट हेड कोल वॉशरी प्रोजेक्ट के लिए 1742.60 हेक्टेयर वन भूमि को गैर-वन प्रयोजन हेतु डायवर्ट करने की अनुशंसा कर दी। यह अनुशंसा केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के एआईजी को भेजी गई है।
यह प्रोजेक्ट राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RVUNL) द्वारा प्रस्तावित है। यहां कोयला खनन का काम अडानी इंटरप्राइजेस को करना है।
इस अनुशंसा के तहत छत्तीसगढ़ वन विभाग ने केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक परियोजना के लिए वन भूमि को गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने की मंजूरी देने की सिफारिश की है।


वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के तहत 26 जून 2025 को किए गए स्थल निरीक्षण के बाद सरगुजा के प्रभागीय वन अधिकारी की अनुशंसा के तहत वन विभाग ने 25 नवंबर 2025 को केंद्रीय वन मंत्रालय को यह सिफारिश भेजी है।
इस सिफारिश को अगर केंद्रीय अनुमति मिल जाती है तो इस कदम से करीब साढ़े 4 लाख पेड़ों की कटाई का रास्ता साफ हो जाएगा।
कुल आवश्यक भूमि में से 1742.155 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि और 0.445 हेक्टेयर राजस्व वन भूमि शामिल है।
वन मंडलाधिकारी, सरगुजा द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर निबंधन शुल्क, प्रोसेसिंग शुल्क और 1,21,000 रुपये जमा किए जाने का भी उल्लेख दस्तावेज में है।
वन विभाग के सचिव अमर नाथ प्रसाद ने अपने पत्र में यह स्पष्ट किया है कि उपलब्ध जानकारी, विभागीय परीक्षण और अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर यह प्रस्ताव ‘राज्य शासन स्तर पर स्वीकृति योग्य’ पाया गया है।
केंद्रीय वन मंत्रालय से जारी होगी अंतिम स्वीकृति
जारी दस्तावेजों के मुताबिक वनमंडलाधिकारी की अनुशंसाओं के आधार पर परीक्षण के बाद राज्य वन विभाग ने अपनी स्वीकृति दी।
वन विभाग की राज्य स्तर पर स्वीकृति योग्य मानने के बाद यह प्रस्ताव अब केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भेजा जाएगा। अंतिम स्वीकृति वहीं से जारी होगी।
केंद्रीय स्तर पर मंज़ूरी मिलने के बाद खनन परियोजना का एक्सीक्यूशन शुरू करने, भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) की शर्तों के पालन और पेड़ कटाई प्रक्रिया शुरू होगी।
प्रस्तावित कोयला खदान और वॉशरी परियोजना की क्षमता 9 MTPA (Normative) तथा 11 MTPA (Peak) बताई गई है।
विभाग ने ऑनलाइन आवेदन, नोडल अधिकारी की टिप्पणियों और संबंधित अभिलेखों की जांच के बाद 1980 के अधिनियम के तहत ‘राज्य शासन स्तर पर स्वीकृति योग्य’ बताते हुए अपनी अनुशंसा भेजी है।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में लगातार हो रहा था विरोध
केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक हसदेव अरण्य के उस संवेदनशील जंगल क्षेत्र से जुड़ा है, जिसे प्रदेश का ‘लंग्स जोन’ माना जाता है। यही वजह है कि इस परियोजना का बीते वर्षों में भारी विरोध हुआ था।
इस क्षेत्र के गांव हरैया, फत्तेहपुर, साल्ही, हर्रई आदि के आदिवासी समुदायों ने खनन परियोजना का लगातार विरोध करते हुए कई बार धरना, पैदल मार्च और ग्राम सभा प्रस्ताव पारित किए।
स्थानीय निवासियों का कहना था कि खनन से जंगल, पानी और आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। जंगली हाथियों और अन्य संवेदनशील वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट होगा। हजारों पेड़ों की कटाई से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ेगा।
कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और क्षेत्रीय नेताओं ने भी इस परियोजना को लेकर चिंता जताई थी। पर्यावरणविदों ने हसदेव अरण्य को देश के सबसे समृद्ध वन-क्षेत्रों में से एक बताते हुए इसे संरक्षित रखने की मांग उठाई थी।
2022–2023 के दौरान कोल ब्लॉक आवंटन और पेड़ों की कटाई विरोध के कारण कई महीनों तक यह इलाका आंदोलन का केंद्र बना रहा था।
अब वन विभाग की तरफ से अनुशंसा संबंधी पत्र जारी किए जाने के बाद एक बार फिर इसका विरोध शुरू होगा।
कई ग्राम सभाएं पहले ही खनन का विरोध कर चुकी हैं। वहीं कुछ समुदायों ने रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की उम्मीद से परियोजना को समर्थन भी दिया है।
हसदेव अरण्य जैसे अत्यंत संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र में इतनी बड़ी मात्रा में वन भूमि डायवर्जन को लेकर पर्यावरणविदों की चिंता कायम है।
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