रायपुर। आपका बिजली का बिल इस महीने दोगुना या तिगुना आया होगा? पिछले तीन महीने से बिल ऐसा ही आ रहा है। दरअसल आप भी छत्तीसगढ़ के उन लाखों परिवारों में से हैं, जिनके बिजली के बिल ने उनका बजट बिगाड़ दिया है।
ऐसा क्यों?
द लेंस की इस रिपोर्ट विस्तार से जानिए।
इसकी वीडियो रिपोर्ट हमारे YouTube Channel में देखें
छत्तीसगढ़ सरकार ने ‘बिजली बिल हाफ योजना’ को सीमित कर दिया है। पहले यानि कि भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार की बिजली बिल हाफ योजना के तहत 400 यूनिट की खपत पर 2 सौ यूनिट बिजली मुफ्त थी। अब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इस योजना को संशोधित कर दिया है। अब सिर्फ 100 यूनिट तक ही यह राहत मिल रही है। 100 यूनिट से एक यूनिट भी ज़्यादा खपत पर — पूरी दर पर ही बिजली मिलेगी।
प्रदेश भर में इस नए संशोधन का विरोध होने लगा क्योंकि इससे फैसले से आम लोगों का बजट बिगड़ गए, बड़े बिजली बिल से कमर टूटने लगी है।
चौंकाने वाला आंकड़ा यह है कि पहले जहां 51 लाख उपभोक्ता सरकार की हाफ बिजली बिल योजना का लाभ उठा रहे थे, अब लगभग 25 लाख लोग इस राहत से पूरी तरह वंचित हो गए हैं।योजना से बाहर हो गए हैं!
पहले ही महंगाई की मार झेल रहे मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग के लोगों का बिजली बिल अब दोगुना-तीन गुना आने लगा है।
बिजली कंपनी के जानकार कहते हैं कि इस योजना को सीमित करने से कंपनी की कुल बचत मुश्किल से 800 करोड़ रुपए हो रही है।
ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञ भी सरकार के इस फैसले और नियत पर सवाल उठा रहे हैं।
अपनी पूरी जिंदगी ऊर्जा के क्षेत्र में लगाने वाले बिजली विशेषज्ञ पीएन सिंह कहते हैं कि बिजली बिल हाफ योजना को समेटने के बाद सरकार को आर्थिक बचत बहुत ज्यादा नहीं हो रही है। मुश्किल से 700 से 800 करोड़ रुपए साल के बचेंगे। ऐसे में जन विरोधी यह फैसला समझ से परे है।
प्रदेश सरकार दावा कर रही है कि पीएम सूर्य घर योजना के तहत उपभोक्ता रूफ टॉप सोलर प्लांट लगाएंगे तो हाफ क्या उन्हें बिजली मुफ्त में ही मिलने लगेगी!
इस दावे की हकीकत जानिए।
बिजली विशेषज्ञ पीएन सिंह कहते हैं कि जो दावा सरकार कर रही है, वह मुफ्त बिजली बिल की ओर कदम है। जिस पीएम सूर्य घर योजना का हवाला देकर इस योजना को बंद करने की बात समझ से परे है, क्योंकि जिस योजना का फायदा प्रदेश के करीब 55 लाख उपभोक्ताओं को मिल रहा था, उनको मिलने वाला फायदा एक ऐसी योजना के चलते बंद कर दिया गया, जिसके हितग्राहियों का लक्ष्य ही सरकार ने 1 लाख 30 हजार रखा है।
पीएन सिंह आगे कहते हैं कि हैरानी इस बात की है कि देश में अचानक कितने सोलर प्लेट बन जाएंगे। देशभर में यह योजना चल रही है। करोंड़ों इसके हितग्राही हैं। ऐसे में एक क्षमता तक ही ताे सोलर प्लेट्स का निर्माण हो सकता है।
सवाल उठता है कि क्या वाकई सरकार ने महज एक लाख 30 हजार लोगों को, वो भी 2027 तक, फायदा पहुंचाने के लिए आज करीब 25 लाख उपभोक्ताओं की जेब पर सीधे बोझ डाल दिया है।
ना तो राजनीति के, ना ही लोक कल्याण के और ना ही ऊर्जा संरक्षण के किसी भी समीकरण के लिहाज से यह बात हजम होती है।
फिर क्या वजह है कि सरकार ने पच्चीस लाख आम उपभोक्ताओं की कमर तोड़ने वाला यह फैसला कर डाला?
क्या महज सवा लाख उपभोक्ताओं को पीएम सूर्यघर योजना के दायरे में लाने के लिए यह कदम उठाया गया? तथ्य और चर्चाएं सरकार के इस दावे के अनुकूल नहीं हैं।

हैरानी की बात है कि 400 यूनिट तक बिजली बिल हाफ योजना का दायरा समेटते हुए उसे 100 यूनिट कर आम जनता की कमर तोड़ने वाला यह फैसला जब सरकार ने किया, उसी समय सरकार ने स्टील उद्योगों को राहत का बड़ा पैकेज दे कर खुश कर दिया था!
इस पैकेज के तहत छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग ने बिजली का टैरिफ तय करते समय स्टील इंडस्ट्री के लिए ‘लोड फैक्टर’ 15% से बढ़ाकर 25% कर दिया। यानी इन उद्योगों को अब बिजली और ज्यादा सस्ती दरों पर मिलेगी।
सरकार के इस तोहफे से स्टील उद्योगों को हर साल लगभग 1000 से 1500 करोड़ रुपए की बचत होगी।
इसको लेकर भी बिजली विशेषज्ञ पीएन सिंह का कहना है कि इस तरह से लोड फैक्टर का फायदा आपको देना है तो सभी क्षेत्र को दिया जाए। सिर्फ स्टील इंडस्ट्री को विशेष तवज्जो को क्यों दी जा रही है?
दिलचस्प यह है कि पिछली भूपेश बघेल सरकार ने भी यही प्रस्ताव रखा था, लेकिन उस समय विद्युत नियामक आयोग ने इसे मंज़ूर नहीं किया था। अब वर्तमान सरकार के मिनी स्टील प्लांट्स को बिजली की दरों में 25% राहत के प्रस्ताव को नियामक आयोग से मंजूरी मिल गई !

राज्य विद्युत नियामक आयोग का टैरिफ ऑर्डर बताता है कि 2025-26 में स्टील इंडस्ट्री से सालाना 8000 करोड़ की आय का अनुमान लगाया गया था। लेकिन जानकार कहते हैं कि लोड फैक्टर 25 फीसदी करने की वजह से आय करीब 65 सौ से 7 हजार करोड़ ही रह जाएगी। यानि लगभग हजार से 1500 करोड़ की छूट सीधे उद्योगों को जा रही है। जबकि अगर आयोग के टैरिफ ऑर्डर को ही समझा जाए तो घरेलु बिजली से आयोग ने करीब 39 सौ करोड़ रुपए आय का अनुमान जताया है, वह भी इस योजना के बंद होने से पहले। ऐसे में अब इस योजना के बंद करने के बाद यह अनुमान करीब 46 सौ से 47 सौ करोड़ रुपए बताया जा रहा है।
बिजली कंपनी के जानकार सूत्र कहते हैं कि स्टील इंडस्ट्री के लिए किए गए टैरिफ में इस बदलाव के बाद बिजली कंपनी पर करीब 1000 करोड़ रुपए का भार बढ़ गया तो सरकार को रास्ता सुझाया गया कि इसकी भरपाई आम लोगों से की जा सकती है और तब सरकार ने आम जनता को दी जा रही राहत में कटौती कर दी। यानि इस्पात उद्योग को सस्ती बिजली देने से आ रहे बोझ की वसूली अब जनता का बिल बढ़ा कर की जा रही है।
राज्य विद्युत नियामक आयोग की रिपोर्ट से ही यह साफ समझा जा सकता है कि एक तरफ 700 से 800 करोड़ रुपए बचाने के लिए सरकार 25 लाख उपभोक्ताओं को झटका दे रही है। वहीं, उद्योगों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार हजार से 15 सौ करोड़ रुपए का नुकसान खुद उठाने को तैयार है।
इस मामले में हमने बिजली कंपनी के चेयरमैन और ऊर्जा विभाग के सचिव डॉ रोहित यादव से बात करने की कोशिश की। उनसे एक बार संपर्क हुआ लेकिन बात नहीं हो सकी।
फिर डॉ. रोहित यादव को लगातार फोन कॉल किया गया लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। हमने इस पूरे मामले में बिजली कंपनी का पक्ष लेने के लिए उन्हें दो सवाल वॉट्सएप में भेजे, इसके अलावा Text मैसेज में भी सवाल भेजे।
जनकल्याण, औद्योगिकीकरण, मुनाफा और राहत के पैकेज के इस अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र को समझना बहुत पेचिदा नहीं है।
पहला सवाल था, इलेक्ट्रिसिटी कमीशन ने स्टील इंडस्ट्री के लिए लोड फैक्टर 15 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया, जिसका फायदा सीधे तौर पर स्टील इंडस्ट्री को हो रहा है। इसकी वजह क्या रही कि बिजली कम्पनी ने इसका विरोध नहीं किया?
दूसरा सवाल था, क्या स्टील इंडस्ट्री को लोड फैक्टर बढ़ाने पर होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए बिजली बिल हाफ योजना को सीमित किया गया है? क्योंकि बिजली बिल हाफ योजना का दायरा समेटने के लिए जिस PM सूर्य घर बिजली योजना का हवाला दिया जा रहा है, उसका लक्ष्य ही बिजली कंपनी ने मार्च 2027 तक 1 लाख 30 हजार रखा है।
इन दोनों सवालों के जवाब इस खबर को लिखते समय तक नहीं मिले। जैसे ही बिजली कंपनी का पक्ष इस मामले में आता है तो उसे रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा।
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