Piyush Pandey Death: भारतीय विज्ञापन की दुनिया को अपनी अनोखी कहानियों और हास्य से सजाने वाले दिग्गज पीयूष पांडे का गुरुवार को 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। चार दशकों से ज्यादा समय तक ओगिल्वी इंडिया की कमान संभालने वाले पांडे ने विज्ञापनों को महज बिक्री के औजार से बदलकर लोगों के दिलों की धड़कनों से जोड़ दिया। उनकी यादें हमेशा तरोताजा रहेंगी, क्योंकि उन्होंने विज्ञापन को भारतीय परिवारों की जिंदगी का हिस्सा बना दिया।
जयपुर में पैदा हुए पांडे का सफर बचपन से ही रंगीन था। राजस्थान की राजधानी में जन्मे इस रचनात्मक प्रतिभा ने कम उम्र में ही विज्ञापन की दुनिया में कदम रख दिया। उनके भाई प्रसून के साथ मिलकर उन्होंने रोजमर्रा की चीजों के लिए रेडियो पर जिंगल्स गाए। 1982 से पहले उन्होंने क्रिकेट खेला, चाय की पत्ती चखी और यहां तक कि निर्माण के काम भी किए। लेकिन ओगिल्वी में आने के बाद ही उन्हें असली पहचान मिली। यहां उन्होंने विज्ञापनों को आम बोलचाल की भाषा में ढाल दिया, जो पहले अंग्रेजी की चमक-दमक से भरी रहती थीं।
पांडे के हाथों बने विज्ञापन आज भी घर-घर गूंजते हैं। एशियन पेंट्स का ‘हर घर कुछ कहे’ वाला नारा, कैडबरी का ‘कुछ अच्छा हो जाए, कुछ खास हो जाए’, फेविकोल का मशहूर अंडे वाला विज्ञापन और हच का प्यारा कुत्ता ये सब उनकी देन हैं। इनमें छिपा उनका देसी हास्य और सरल कहानी कहने का अंदाज ने विज्ञापन उद्योग को हमेशा के लिए बदल दिया।
2018 में भाई प्रसून के साथ मिलकर वे पहले एशियाई बने, जिन्हें कान्स लायंस का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड ‘सेंट मार्क लायन’ मिला। यह सम्मान भारतीय रचनात्मकता को वैश्विक पटल पर चमकाने का प्रतीक था।पीयूष पांडे की विदाई से विज्ञापन जगत गमगीन है। उनके विशिष्ट मूंछें, जोरदार हंसी और उपभोक्ता की भावनाओं को छूने वाली सोच हमेशा याद आएगी। परिवार ने निजी जीवन का सम्मान करते हुए ज्यादा जानकारी साझा नहीं की, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में बातें आ रहीं हैं की अंतिम संस्कार मुंबई में ही होगा।

