महागठबंधन ने आखिरकार बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पूर्व उपमुख्यमंत्री राजद नेता तेजस्वी यादव के नाम का ऐलान कर बीते कुछ दिनों से विपक्षी गठबंधन पर छाई धुंध को साफ किया है।
कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने महागठबंधन के साथी दलों के नेताओं के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया और साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि सरकार बनने पर दूसरे समुदायों से भी और उपमुख्यमंत्री हो सकते हैं।
महागठबंधन की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के तुरंत बाद भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि बिहार में मुख्यमंत्री पद की कोई वेकैंसी नहीं हैं और नीतीश कुमार ही हमारे नेता हैं। यानी चेहरे की बात है, तो बिहार में मुकाबला नीतीश बनाम तेजस्वी हो गया है!
वास्तविकता यह है कि तेजस्वी के नाम पर कांग्रेस के भीतर व्यापक सहमति नहीं थी, तो दूसरी ओर दो दिन पहले ही गृह मंत्री अमित शाह ने एनडीए की ओर से नीतीश कुमार का नाम लेने से परहेज करते हुए एक सवाल के जवाब में साफ कहा था कि मुख्यमंत्री का चुनाव विधायक करेंगे। बिहार की यह तस्वीर दूसरे चरण की नाम वापसी के आखिरी दिन सामने आई है, तो इसी से समझा जा सकता है कि महागठबंधन और एनडीए दोनों के भीतर काफी खींचतान है।
वास्तव में तेजस्वी के साथ मुकेश सहनी के नाम के ऐलान से यह चुनाव दिलचस्प हो गया है, बावजूद इसके कि सहनी की पार्टी कुल 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। आगे बढ़ने से पहले यह रेखांकित किया जाना जरूरी है कि हमारी संसदीय और चुनावी व्यवस्था में मुख्यमंत्री पद का चुनाव सीधे नहीं होता और उपमुख्यमंत्री नाम से तो कोई संवैधानिक पद है ही नहीं, शपथ सिर्फ मुख्यमंत्री या मंत्री के रूप में ली जाती है।
इसका साफ मतलब है कि गठबंधन की राजनीति ने यह स्थिति पैदा कर दी है, ताकि सहयोगी दलों को किसी न किसी तरह संतुष्ट किया जाए। पहले महागठबंधन की बात करें तो औपचारिक रूप से तेजस्वी का नाम घोषित न भी किया जाता, तो वह उसकी ओर से मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार थे। आखिर वे कुछ समय के लिए बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे हैं और लंबे समय से विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं।
दूसरी ओर भाजपा जनता दल (यू) के सहारे सत्ता में पहुंचना चाहती है और यदि उसने पिछली बार 80 सीटें जीतने के बावजूद अपने से करीब आधी सीटें हासिल करने वाले नीतीश को मुख्यमंत्री बनाए रखा है, तो यह उसकी मजबूरी भी थी। इस बार नीतीश को चिराग पासवान की महत्वाकांक्षाओं के साथ संतुलन बनाकर भी चलना होगा।
बहरहाल, ये चुनाव यों तो नीतीश बनाम तेजस्वी के बीच दिख रहा है, लेकिन इन दो नेताओं की छवियां ही नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की छवियां भी दांव पर हैं।

