अंबिकापुर। भारत का फेफड़ा कहे जाने वाले हसदेव जंगल को बचाने के लिए एक बार फिर आवाज तेज हो रही है। हसदेव बचाओ संघर्ष समिति ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के गांधी चौक पर एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन कर यह संदेश दिया कि हसदेव जंगल को बचाने के लिए उनकी यह लड़ाई लंबी चलेगी।
समिति का गुस्सा और मांग साफ है कि हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई फौरन रोकी जाए और कोयला खनन परियोजनाओं की मंजूरी रद्द की जाए।
हसदेव अरण्य, जो न सिर्फ घने जंगलों का खजाना है, बल्कि विलुप्तप्राय पेड़-पौधों और वन्यजीवों का घर भी है। यहां परसा ईस्ट केते बासेन, परसा और केंते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक में खनन के लिए करीब 12 लाख पेड़ काटे जा रहे हैं। ये प्रोजेक्ट राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को दिए गए हैं, जिन्हें अदानी समूह चला रहा है।
लेकिन ये खनन सिर्फ पेड़ ही नहीं काट रहा, बल्कि हसदेव और रिहंद जैसी नदियों को भी खतरे में डाल रहा है। जल स्रोत सूख रहे हैं, नदियां प्रदूषित हो रही हैं, और हाथियों का घर उजड़ रहा है। नतीजा? इंसान और हाथियों के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है।
इतना ही नहीं, विश्व की सबसे प्राचीन नाट्यशाला रामगढ़ पहाड़ी भी खतरे में है। खनन और भारी विस्फोटों से इस ऐतिहासिक धरोहर में दरारें पड़ रही हैं। समिति का कहना है कि ये नुकसान हमारी सांस्कृतिक विरासत के लिए अपूरणीय है।
सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ता आलोक शुक्ला ने बताया कि ग्राम सभाओं के विरोध के बाद भी खनन की अनुमति दी जा रही है।
समिति ने याद दिलाया कि 2022 में छत्तीसगढ़ विधानसभा में हसदेव के सभी कोल ब्लॉक रद्द करने का प्रस्ताव पास हुआ था। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने भी चेतावनी दी है कि अगर खनन नहीं रुका, तो मानव-हाथी संघर्ष और भयावह हो जाएगा। धरने के बाद समिति ने कलेक्टर को मुख्यमंत्री और राज्यपाल के नाम एक ज्ञापन भी सौंपा।
क्या हैं समिति की प्रमुख मांगें
हसदेव अरण्य को नो-गो क्षेत्र घोषित किया जाए। लेमरू हाथी रिजर्व के 10 किमी दायरे में खनन पर पूरी तरह रोक लगाई जाए। रामगढ़ पहाड़ी के नुकसान की वैज्ञानिक जांच हो और खनन बंद किया जाए। केंते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक की जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया रद्द की जाए। परसा कोल ब्लॉक में फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव की जांच हो और वन स्वीकृति को रद्द किया जाए। ग्रामीणों पर दर्ज फर्जी मुकदमे खत्म किए जाएं।