बिहार में अब जबकि विधानसभा चुनावों की घोषणा कभी भी हो सकती है, राज्य के विभिन्न हिस्सों में किसान जमीन से जुड़े विवादों को लेकर सड़क पर हैं। सवाल है कि क्या यह चुनाव में कोई बड़ा मुद्दा बनेगा?
यह चुनाव में मुद्दा बने या बने लेकिन वास्तविकता यह है कि बिहार में भूमि सुधार एक बड़ा मुद्दा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक बिहार सबसे घनी आबादी वाला राज्य है। यानी यहां कम जमीन पर अधिक लोग रहते हैं। डी बंदोपाध्याय की अध्यक्षता में बने ‘भूमि सुधार आयोग’ की रिपोर्ट के मुताबिक 1999-2000 तक राज्य में भूमिहीन लोगों का आंकड़ा 75 प्रतिशत था।
एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 104.32 लाख किसानों के पास कृषि भूमि है। जिसमें 82.9 फीसदी भूमि जोत सीमांत किसानों के पास हैं और 9.6 फीसदी छोटे किसानों के पास है। केवल 7.5 फीसदी किसानों के पास ही दो हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन है।

इन सभी वजहों से बिहार में जमीन विवाद के मामले हर साल बड़ी संख्या में दर्ज होते हैं। विकास के बढ़ते सिलसिले में मुआवजे में कमी, विस्थापन के डर और सामाजिक न्याय की चिंताओं की वजह से विकास कार्य को लेकर भूमि अधिग्रहण में अक्सर किसानों का विरोध देखने को मिलता है।
हाल की कुछ घटनाएं को देखें, तो बिहार में भारतमाला प्रोजेक्ट, रेलवे प्रोजेक्ट और पूर्णिया एयरपोर्ट को लेकर जमीन अधिग्रहण को लेकर किसानों की नाराजगी देखने को मिली है। भारतमाला प्रोजेक्ट एवं अन्य विकास की योजनाओं का बिहार में लगातार विरोध आखिर क्यों किया जा रहा है?
भारतमाला प्रोजेक्ट का विरोध क्यों?
भारतमाला परियोजना के तहत बिहार में सहरसा-पटना सड़क संपर्क परियोजना और एनएच 139 डब्ल्यू जैसी कई सड़क निर्माण परियोजनाएं चल रही हैं। मकसद है, राज्य में सड़क परिवहन और माल ढुलाई को बेहतर बनाना। लेकिन देश के कई अन्य हिस्सों की तरह बिहार के कई क्षेत्रों में इसका विरोध लगातार किया गया है।
पिछले कुछ महीनों में भारतमाला परियोजना के तहत वाराणसी से कोलकाता तक बनने वाला एक्सप्रेस-वे की वजह से कैमूर, रोहतास और औरंगाबाद के किसानों की खड़ी धान की फसल पर बुलडोजर चलाया गया।

रोहतास के चेनारी प्रखंड स्थित बीरनगर गांव के रहने वाले मोहित कुमार बताते हैं,
‘भारतमाला परियोजना की वजह से खड़ी धान की फसल पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। प्रशासन कुछ दिन इंतजार कर सकता था। विरोध करने पर किसानों के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट की गई है। सरकार को उचित मुआवजा किसानों को देना चाहिए।‘
मोहित की लगभग 22 कट्ठा जमीन भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत सरकार ले रही है।
किसान संगठन से जुड़े राम प्रवेश यादव कहते हैं,’ बताइए 2025 में भूमि अधिग्रहण का मुआवजा 2014 की दर से दिया जा रहा है। क्या इतने दिनों में रुपया की कीमत वही है? आसान बात है कि किसानों को वर्तमान बाजार दर पर मुआवजा मिलना चाहिए।‘
यह आम शिकायत है कि भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत बिहार के कैमूर में किसानों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला है, लेकिन उनकी 60 एकड़ फसल को बर्बाद कर दिया गया है। उसके बाद से प्रशासन का वहां विरोध हो रहा है। विरोध प्रदर्शन के दौरान कैमूर जिला स्थित चैनपुर प्रखंड के सिहोरा मौजा में किसानों ने भारत माला एक्सप्रेस वे के निर्माण कार्य को रुकवा दिया है। स्थानीय लोग कह रहे हैं, ‘एक परियोजना, एक जमीन, एक फसल, और एक मुआवजा’ होना चाहिए। कैमूर से दो मंत्री भी हैं बिहार सरकार में…सब खामोश हैं।
अगस्त में प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए चार किसानों को गिरफ्तार कर लिया था। इस घटनाक्रम के बाद प्रदर्शन की वजह से किसान और प्रशासन आमने-सामने हैं। स्थानीय पत्रकार विमलेंदु सिंह के मुताबिक 10 सितंबर को चैनपुर स्थित दुलहरा गांव के पास जब प्रशासन बुलडोजर के साथ पहुंचा, तो किसान काफी संख्या में विरोध करने पहुंच गए। वहीं नौ सितंबर को भी मसोई गांव के पास विरोध कर रहे किसानों को खदेड़ा गया था। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ है।”
पूर्व कृषि मंत्री एवं सांसद सुधाकर सिंह इस पूरे मामले पर कहते हैं कि, ‘कैमूर जिले में किसानों के साथ जिला प्रशासन द्वारा अभद्र व्यवहार और गाली-गलौज की घटनाएं हो रही हैं। किसान अपने जमीन के हक और अधिकार के लिए लगातार संघर्षरत हैं, लेकिन उनकी समस्याओं पर न ही बिहार सरकार ध्यान दे रही है और न ही केंद्र सरकार, किसानों की केवल एक ही मांग है कि पहले उचित मुआवजा दिया जाए, उसके बाद ही जमीन का अधिग्रहण किया जाए। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि सरकार उनकी जायज मांगों को दरकिनार करते हुए उनके खेतों में खड़ी फसलों को ज़बरदस्ती बर्बाद कर रही है। यह रवैया किसानों के साथ अन्याय है और उनके जीवन-यापन पर सीधा प्रहार है।’
राजधानी पटना में किसानों का विरोध
भारतमाला प्रोजेक्ट के विरोध में 25 अगस्त, 2025 को सांसद और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह के नेतृत्व में करीब एक हजार किसान अधिग्रहित जमीन का मुआवजा वर्तमान सर्किल रेट के आधार पर देने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने पहुंचे। इस दौरान डाक बंगला चौराहे पर संयुक्त किसान मोर्चा के किसानों को पुलिस ने रोक दिया एवं लाठीचार्ज भी हुई।
कैमूर के रहने वाले मंटू शर्मा, किसान संघ से जुड़े हुए हैं। वह नाराजगी जताते हैं कि, ‘पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की तुलना में हमें 75% कम पैसा हमें मिल रहा है। वहां के किसानों को एक बीघा के लिए 65 लाख रुपये के आसपास राशि मिल रही है। वही हमें सिर्फ 20 लाख रुपये दिया जा रहा है।’
इस रैली के बाद 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य सचिवालय में प्रधान सचिव अमृत लाल मीणा से मुलाकात की। बाद में सुधाकर सिंह ने मीडिया से कहा, ‘प्रधान सचिव ने कहा है कि जमीन का मूल्य 2013 से 10% चक्रवृद्धि ब्याज जोड़कर तय होगा, जिससे किसानों को 12 वर्षों में ढाई से तीन गुना अधिक राशि मिलेगी।’
वहीं आयुक्त कार्यालय पटना प्रमंडल में एनएच 119 डी परियोजना तथा बक्सर जिला के एनएच 84 हेतु अर्जित भूमि को लेकर लगातार सुनवाई की जा रही है।
इसी साल के मार्च महीने में ही आरा बाईपास रेलवे लाइन जगजीवन हाल्ट से मुख्य रेलवे लाइन सासाराम लिंक केबिन परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई भूमि पर भी फसल को बुलडोजर चलाकर नष्ट किया गया था। वहां के स्थानीय लोगों ने भी इसका काफी विरोध किया था।
पूर्णिया एयरपोर्ट में जमीन देने वाले नाराज और उदास क्यों हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 सितंबर को बिहार में पूर्णिया एयरपोर्ट का उद्घाटन किया। पूरे बिहार में सत्ताधारी पार्टी ने इसका काफी प्रचार किया। सीमांचल क्षेत्र के लोग इस परियोजना से खुश हैं।
वहीं दूसरी तरफ एयरपोर्ट कैंपस की दक्षिणी चारदीवारी से सटे गांव गोआसी गांव में एयरपोर्ट को लेकर कोई खुशी नहीं है। एयरपोर्ट निर्माण के लिए इस गांव की 67 एकड़ जमीन अधिगृहीत की गई है।
स्थानीय पत्रकार तेजस्वी कुमार के मुताबिक गांव के अधिकांश लोग अपनी जमीन एयरपोर्ट के लिए नहीं देना चाहते थे। गांव के रहने वाले राजा बताते हैं कि, ‘अधिकांश ग्रामीण को ज्यादा जमीन नहीं है। इस जमीन को देने के बाद कई लोग भूमिहीन हो चुके हैं। मतलब सिर्फ घर रहने के लिए बचा है।‘
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गांव के तकरीबन 75 किसानों की जमीन अधिगृहीत की गई है। ज्यादातर किसानों ने अभी तक मुआवजा नहीं लिया है। इस मामले को लेकर पटना हाईकोर्ट गए है। ग्रामीणों का आरोप है कि कम रुपया देने के लिए आवासीय जमीन को खेतिहर बता दिया गया है। खेतिहर जमीन का मुआवजा 17-18 हजार रुपये डिसमिल है, जबकि आवासीय जमीन का 2.5 लाख रुपये डिसमिल दिया गया है।
इस साल किसानों ने स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया
स्थानीय पत्रकार एवं ग्रामीणों के मुताबिक औरंगाबाद जिला स्थित नबीनगर अंचल के पांडेय कर्मा और इगुनी डिहबार गांवों में एक अगस्त एवं 13 अगस्त को कुटुम्बा अंचल के दरियापुर और 14 अगस्त को सोनबरसा गांव में बिना उनकी सहमति और मुआवजे के खड़ी फसलों को नष्ट करने की वजह से औरंगाबाद में ढाई हजार से ज्यादा किसानों ने इस साल स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया।
लोगों का कहना है कि प्रशासन ने बंदूक के दम पर उनकी मेहनत को बिना मुआवजे के नष्ट कर दिया। सवाल यह है कि जब अन्नदाता की सुरक्षा और सम्मान ही नहीं होगा, तो विकास की यह सड़क किस काम की?