नई दिल्ली। देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों को जन्म देने वाले वक्फ (संशोधन) अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इनमें से कुछ प्रावधान सत्ता के ‘मनमाने’ प्रयोग को बढ़ावा देंगे।
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने कहा कि उसे लगता है कि पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई मामला नहीं बनता, लेकिन ‘कुछ धाराओं को कुछ संरक्षण की आवश्यकता है।’ इन प्रावधानों पर तब तक रोक लगा दी गई है जब तक कि अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला नहीं हो जाता।
वक्फ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चार अहम बातें हैं। पहला ये कि वक्फ संशोधन कानून पर रोक नहीं होगा।
दूसरा ये कि वक्फ बाय यूज़र को रद्द करने पर रोक लगाई गई है। कलेक्टर निर्णय नहीं करेगा कि कोई प्रॉपर्टी वक्फ है या नहीं।
तीसरा ये कि बोर्ड का CEO मुस्लिम होना अनिवार्य। राज्य वक्फ बोर्ड में 3 से ज्यादा सदस्य किसी और धर्म के नहीं हो सकते, सेंट्रल वक्फ बोर्ड में 4 से ज्यादा सदस्य किसी और धर्म के नहीं हो सकते।
चौथा कि पांच साल से मुस्लिम होने पर ही प्रॉपर्टी वक्फ करने वाली शर्त पर रोक लगाई गई है।
नए कानून में जिला कलेक्टर को दी गई व्यापक शक्तियों पर चिंता जताते हुए अदालत ने कहा, ‘कलेक्टर को नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों पर निर्णय लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती और यह शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन होगा। जब तक न्यायाधिकरण द्वारा निर्णय नहीं हो जाता, तब तक किसी भी पक्ष के विरुद्ध किसी तीसरे पक्ष के अधिकार का सृजन नहीं किया जा सकता।’
कलेक्टर को ऐसी शक्तियों से संबंधित प्रावधान पर रोक रहेगी। भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने कहा कि उन्हें लगता है कि पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई मामला नहीं बनता।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि कानून में वह धारा भी हटा दी जानी चाहिए जिसके अनुसार केवल कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ घोषित कर सकता है। उन्होंने कहा, ‘बिना किसी व्यवस्था के, इससे मनमानी शक्ति का प्रयोग होगा।’
न्यायालय ने कहा कि उसकी ‘धारणा सदैव किसी कानून की संवैधानिकता के पक्ष में होती है’ तथा हस्तक्षेप केवल ‘दुर्लभतम मामलों’ में ही किया जाना चाहिए।
1995 के वक्फ कानून में संशोधन, जिसे संसद ने पारित कर दिया और अप्रैल में राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई, ने देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था। मुस्लिम संगठनों ने इन संशोधनों को असंवैधानिक और वक्फ की जमीन पर कब्जा करने की साज़िश करार दिया था। सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि कई वक्फ संपत्तियां बड़े भूमि विवादों में फंसी हुई हैं और उन पर अतिक्रमण का आरोप है। केंद्र ने कहा कि नए कानून का उद्देश्य इन मुद्दों को सुलझाना है।
वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में मुसलमानों का एक प्रमुख संगठन, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी शामिल है। इसके सदस्य सैयद कासिम रसूल इलियास ने कहा कि बोर्ड द्वारा उठाए गए बिंदुओं को शीर्ष अदालत ने ‘काफी हद तक’ स्वीकार कर लिया है।
उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, ‘वक्फ बाय यूजर’ पर हमारा बिंदु स्वीकार कर लिया गया है। इसके साथ ही, संरक्षित स्मारकों पर हमारा बिंदु भी स्वीकार कर लिया गया है, कि कोई तीसरा पक्ष दावा नहीं करेगा। जो पाँच साल का संशोधन लगाया गया था, उसे हटा दिया गया है, और इसके साथ ही… मैं कहना चाहता हूँ कि कुल मिलाकर, हमारे कई बिंदु स्वीकार कर लिए गए हैं, और हमें लगता है कि काफी हद तक संतुष्टि है।’