नई दिल्ली। टेलीग्राफ के संपादक और देश के जाने-माने पत्रकार संकर्षण ठाकुर का सोमवार को गुरुग्राम के एक अस्पताल में निधन हो गया। 63 वर्षीय संकर्षण कुछ समय से बीमार थे और हाल ही में उनकी सर्जरी हुई थी।
संकर्षण ठाकुर को उनकी गहरी राजनीतिक विश्लेषण और जमीनी पत्रकारिता के लिए जाना जाता था। खासकर बिहार और कश्मीर की राजनीति पर उनकी गहरी समझ थी। उन्होंने बिहार की राजनीति पर कई किताबें लिखीं, जिनमें मेकिंग ऑफ लालू यादव, सिंगल मैन: द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ नीतीश कुमार ऑफ बिहार और द ब्रदर्स बिहारी शामिल हैं।
पटना में 1962 में जन्मे संकर्षण ने अपनी पढ़ाई सेंट जेवियर्स हाई स्कूल, पटना से की और दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक किया। अपने चार दशक के पत्रकारीय करियर की शुरुआत उन्होंने 1984 में आनंद बाजार पत्रिका समूह के संडे पत्रिका से की थी। इसके बाद वे द इंडियन एक्सप्रेस और तहलका जैसे प्रमुख प्रकाशनों से जुड़े। टेलीग्राफ में राष्ट्रीय मामलों के संपादक रहने के बाद वे इसके संपादक बने।
संकर्षण को 2001 में प्रेम भाटिया पुरस्कार और 2003 में अप्पन मेनन फेलोशिप मिली थी। उनकी खासियत थी बिहार और कश्मीर की जमीनी हकीकत को बारीकी से उजागर करना। 1999 के कारगिल युद्ध और 2001 में मणिपुर में राजनीतिक हिंसा पर उनकी रिपोर्टिंग ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई।
उनके निधन पर पत्रकारिता जगत और राजनेताओं ने गहरा शोक जताया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “उनकी बेबाक टिप्पणियां और सुंदर लेखन शैली एक अमिट छाप छोड़ गई।”
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने उन्हें “उदार, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष भारत का मजबूत समर्थक” बताया। तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी उनकी पत्रकारिता की सराहना की। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने कहा, “हमने पत्रकारिता की एक निडर आवाज खो दी।”
संकर्षण ठाकुर ने अपने लेखन और विश्लेषण से भारतीय पत्रकारिता में एक खास मुकाम बनाया। उनका जाना पत्रकारिता जगत के लिए एक बड़ी क्षति है।
संकर्षण ठाकुर जाने माने पत्रकार और लेखक जर्नादन ठाकुर के बेटे थे। जर्नादन ठाकुर ने भी राजनीतिक रिपोर्टर और स्तंभकार के रूप में पत्रकारिता जगत में पहचान बनाई। वह अंग्रेजी भाषा के दैनिक समाचार पत्र, द फ्री प्रेस जर्नल के संपादक भी थे।