रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने 18 महीने बाद अंतत: अपनी टीम पूरी कर ली है। 2003 में कुल विधायकों के 15 फीसदी सदस्यों को ही मंत्री बनाया जा सकने का फॉर्मूला आने के बाद से ही छत्तीसगढ़ में सरकारों में मुख्यमंत्री को मिलाकर 13 मंत्री ही हुआ करते थे, लेकिन पहली बार है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री को मिलाकर मंत्रिमंडल अब 14 सदस्यीय ही होगा। कांग्रेस ने 14 की संख्या की वैधानिकता पर सवाल उठाए हैं लेकिन 90 सीटों वाले हरियाणा में यही फॉर्मूला चल रहा है।
साय सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की छाप तब नजर आई, जब पहली बार के ही तीनों विधायकों को मंत्री पद की शपथ के लिए आमंत्रित किया गया। ये तीन हैं, गजेंद्र यादव, गुरु खुशवंत और राजेश अग्रवाल। इनमें से दो क्रमश : गुरु खुशवंत और राजेश अग्रवाल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे। कुछ दिन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव ने भी अपनी कार्यकारिणी घोषित की थी और उस कार्यकारिणी में भी इक्का-दुक्का लोगों को छोड़कर नए चेहरों को ही शामिल किया गया था। दूसरी पंक्ति का नेतृत्व तैयार करने की इसी रणनीति को मोदी शाह की कार्यशैली की तरह ही देखा जा रहा है।

लेकिन, जो खबरें मिल रहीं हैं, उसके मुताबिक भाजपा के भीतर ही इसे सबकुछ सहजता या सुगमता से स्वीकार कर लिया गया है, ऐसा नहीं है। नेत़ृत्व की नई पंक्ति तैयार करने जैसे तर्कों के साथ-साथ यह भी कहा जा रहा है कि जिन नेताओं ने कई कई बार सत्ता का स्वाद चख लिया हो, हर बार उन्हें ही क्यों मौका देना? मंत्रिमंडल से लेकर अब तक बनाए जा चुके निगम मंडलों के अध्यक्षों तक इस तर्क के अपवाद भी हैं।
सरकार बनने के साथ ही जब साय मंत्रिमंडल का गठन हुआ था, तब अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, धर्मलाल कौशिक, रेणुका सिंह, धर्मजीत सिंह, लता उसेंडी, विक्रम उसेंडी, जैसे अनेक दिग्गजों को निराश होना पड़ा था। ये वो कद्दावर चेहरे थे, जो संगठन से लेकर शासन तक अनुभव रखते थे, लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा ने अनुभव और वरिष्ठता जैसे तर्कों को दरकिनार कर एक झटके में इन नेताओं को हाशिए पर ढकेल दिया और रामविचार नेताम, दयालदास बघेल और केदार कश्यप जैसे नामों को छोड़ दें, तो नए चेहरों को ही मौका दिया। इसके बाद अब जब विस्तार का मौका आया, तो फिर इन दिग्गजों की दावेदारी उभरने लगी थी। इनमें अजय चंद्राकर, धर्मलाल कौशिक, लता उसेंडी, विक्रम उसेंडी जैसे नाम मंत्री पद के लिए अटकलों में भी जगह नहीं पा रहे थे।

पार्टी सूत्र कहते हैं कि राजेश मूणत के लिए डॉ. रमन सिंह प्रयासरत थे और अमर अग्रवाल को दिल्ली के अपने संपर्कों का भरोसा था। लेकिन, इन्हें भी निराश होना पड़ा है। इनमें से कई नेता बुधवार को हुए शपथ ग्रहण समारोह में राजभवन में नजर भी नहीं आए। पार्टी के भीतर इन्हें लेकर चर्चाएं हैं कि अब एक व्यक्ति एक पद के फॉर्मूले के हिसाब से इन्हें अपना कार्यकाल विधायक के रूप में ही गुजारना होगा। एक दिग्गज बृजमोहन अग्रवाल को पार्टी मंत्री पद से वंचित करते हुए लोकसभा में भेज चुकी है।
मंत्रिमंडल के इस विस्तार को लेकर कांग्रेस की तरफ से आई दो प्रतिक्रियाएं भी दर्ज की जानी चाहिए। पहली प्रतिक्रिया पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की है, जिन्होंने मंत्रिमंडल के आकार की वैघानिकता पर सवाल उठाया है और कहा है कि 14 मंत्री बनाना विधि सम्मत नहीं है। दूसरी दिलचस्प प्रतिक्रिया कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज की तरफ से आई है, जिन्होंने आरोप लगाया है कि इस मंत्रिमंडल में एक सदस्य एक बड़े उद्योगपति की पसंद पर शामिल किया गया है और उन्होंने यह भी कहा कि नए बने तीनों मंत्री मुख्यमंत्री की पसंद के नहीं है।
साय मंत्रिमंडल में रायपुर शहर को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। गुरु खुशवंत रायपुर जिले से जरूर हैं, लेकिन वे आरंग विधानसभा के विधायक हैं। रायपुर शहर से पुरंदर मिश्रा को दावेदार माना जा रहा था। लेकिन, पार्टी सूत्र बताते हैं कि छत्तीसगढ़ की आज की राजनीतिक परिस्थितियों में ब्राह्मणों के और अधिक प्रतिनिधित्व की गुंजाइश नहीं थी। अभी वैश्य समाज और ब्राह्मण समाज के एक-एक प्रतिनिधि मंत्रिमंडल में है। इस लिहाज से यह कहा जा सकता है कि अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति को समुचित प्रतिनिधित्व मिला है। प्रेक्षक कहते हैं कि इस फेरबदल को लेकर बीजेपी के भीतर क्षत्रपों में या उनके समर्थकों में चाहे जितनी मायूसी हो, लेकिन क्षेत्र, जाति, उम्र जैसे मापदंडों पर तो मंत्रिमंडल पार्टी की अपनी रणनीति के अनुकूल है, लेकिन बीजेपी के भीतर निराशा के सुर क्या गुल खिलाएंगे, यह भविष्य में ही पता चलेगा।
मंत्रिमंडल के इस विस्तार से पहले विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, तो अपनी पसंद राजेश मूणत के नाम की वजह से लगातार चर्चा में बने रहे। भले ही उनकी पसंद को जगह न मिल पाई हो, लेकिन सबसे ज्यादा हैरानी पार्टी प्रेक्षकों को इस बात पर हो रही है कि सात बार के सांसद, तीन राज्यों के राज्यपाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूरा जीवन संघ और भाजपा को समर्पित कर चुके रमेश बैस की भी क्या पार्टी के ऐसे फैसलों में कोई भूमिका नहीं थी। क्या उनकी पसंद का कोई नाम इस मंत्रिमंडल में शामिल है? क्या नेतृत्व की नई पीढ़ी तैयार करने की रणनीति के तहत राज्यों में भी भाजपा के ऐसे मार्गदर्शक मंडल खड़ी कर दी जा रही है, जो पार्टी के लिए अपने योगदान, अपने अनुभव और पूरी तरह से सक्रिय होने के बावजूद हाशिए पर धकेल दिए जाएं?