रांची। झारखंड की राजनीति के दिग्गज नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का सोमवार, 4 अगस्त को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। झारखंड ने न केवल एक नेता खोया, बल्कि एक ऐसी शख्सियत को खो दिया, जिसने आदिवासियों की आवाज को बुलंद किया और झारखंड को उसकी पहचान दिलाई। उनके बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर इसकी पुष्टि करते हुए लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।”
शिबू सोरेन को ‘दिशोम गुरु’ यानी ‘देश का गुरु’ की उपाधि आदिवासी समुदाय के लिए उनके अभूतपूर्व योगदान के कारण मिली। संताली भाषा में ‘दिशोम’ का अर्थ है देश और ‘गुरु’ का अर्थ है मार्गदर्शक। 1970 के दशक में उन्होंने आदिवासियों को उनके हक और अधिकारों के लिए जागरूक किया। उनके पिता सोबरन सोरेन, जो एक शिक्षक थे, उनकी 1957 में महाजनों द्वारा हत्या कर दी गई थी।
इस घटना ने शिबू सोरेन को अन्याय के खिलाफ लड़ाई शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ ‘धान कटनी आंदोलन’ शुरू किया, जिसमें आदिवासी समुदाय सामूहिक रूप से उन खेतों की फसल काटता था, जिन्हें महाजनों ने हड़प लिया था। इस आंदोलन ने उन्हें आदिवासियों के बीच ‘दिशोम गुरु’ के रूप में स्थापित किया।
शिबू सोरेन ने 1980 से 2019 तक दुमका से आठ बार लोकसभा सांसद के रूप में प्रतिनिधित्व किया और तीन बार राज्यसभा सांसद रहे। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, हालांकि, विभिन्न कारणों से वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 2004 में वे मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय कोयला मंत्री भी रहे। उनके नेतृत्व में JMM ने झारखंड की राजनीति में मजबूत स्थान बनाया। उनके बेटे हेमंत सोरेन उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
लड़ी आदिवासियों के हक की लड़ाई और बना झारखंड
शिबू सोरेन ने झारखंड को बिहार से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य बनाने के लिए लंबा संघर्ष किया। 1972 में बिनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। इस संगठन ने आदिवासियों और मूलवासियों के हक की लड़ाई को संगठित रूप दिया। 1980 में दुमका से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने झारखंड अलग राज्य की मांग को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया।
उनके नेतृत्व में यह आंदोलन जन-आंदोलन बन गया और 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ। शिबू सोरेन ने गांव-गांव जाकर लोगों को एकजुट किया और ‘जल, जंगल, जमीन’ के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। उनके इस योगदान को झारखंड की जनता हमेशा याद रखेगी।
आदिवासियों के लिए प्रमुख कार्यशिबू सोरेन ने आदिवासियों के हक के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने महाजनी प्रथा और सूदखोरी के खिलाफ आंदोलन चलाकर आदिवासियों की जमीन वापस दिलाने में अहम भूमिका निभाई। ‘धान कटनी आंदोलन’ के तहत उन्होंने आदिवासियों को संगठित कर उनकी जमीन पर अवैध कब्जा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की।
इसके अलावा, उन्होंने शराबबंदी के लिए अभियान चलाया और आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिक्षा और कृषि से संबंधित कई कार्यक्रम शुरू किए। गिरिडीह के टुंडी में उनके द्वारा स्थापित आश्रम आदिवासियों के उत्थान और जल संरक्षण जैसे कार्यों का केंद्र रहा। उनकी अगुवाई में JMM ने खनन और औद्योगिक क्षेत्रों में कार्यरत आदिवासियों को संगठित कर उनके अधिकारों की रक्षा की।
ऐतिहासिक भाषण : जमीन, जंगल और जल हमारी पहचान…
शिबू सोरेन ने अपने संसदीय करियर में कई यादगार भाषण दिए, जिनमें से 1980 के दशक का उनका एक भाषण विशेष रूप से ऐतिहासिक माना जाता है। दुमका से पहली बार सांसद बनने के बाद उन्होंने लोकसभा में आदिवासी समुदाय की समस्याओं को जोरदार तरीके से उठाया।
उनका यह भाषण आदिवासी अस्मिता और उनके अधिकारों पर केंद्रित था। उन्होंने कहा, “हमारी जमीन, हमारा जंगल और हमारा जल हमारी पहचान है। ये हमसे छीने जा रहे हैं। आदिवासियों को उनके हक से वंचित रखना अन्याय है। हमारी संस्कृति और हमारी जमीन को बचाने के लिए हमें एकजुट होना होगा।”
इस भाषण ने न केवल आदिवासियों के मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर लाया, बल्कि झारखंड अलग राज्य की मांग को भी बल दिया। उनके इस भाषण की गूंज संसद से लेकर गांव-गांव तक पहुंची और लोगों में नई चेतना जागृत हुई।