मध्य वर्ग की बदलती परिभाषा ने लगभग असंभव बना दिया है कि उसे एक समान वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया जा सके

यदि आप 1990 के दशक की शुरुआत की ओर लौट कर देखें, तो पता चलेगा कि भारतीय मध्य वर्ग आबादी का वह हिस्सा था, जिसकी सर्वाधिक पूछ परख हो रही थी। तब यह वर्ग उन सामानों और सेवाओं के उपभोग के बारे में सोचने लगा था, जो अब तक उसकी पहुंच से दूर थीं। कारें, मोटरसाइकिलें और फ्रिज, टीवी, वाशिंग मशीन और अन्य घरेलू इलेक्टॉनिक सामान या ब्रांडेड कपड़े जैसे सामानों के बढ़ते विकल्प इसी वर्ग में बढ़ती मांग से संचालित थे। मध्य वर्ग को परिभाषित करना आसान था, क्योंकि इसमें मुख्य रूप से वे भारतीय शामिल थे, जो काफी हद तक अच्छी तरह से शिक्षित और पेशेवर थे।
पिछले दस-पंद्रह वर्षों के दौरान संगठित कार्यबल और फैलते शहरों में बड़ी संख्या में भारतीयों के शामिल होने से मध्य वर्ग का स्वरूप बदल गया है। यह आबादी ऐसे परिवारों से मिलकर बनी थी, जहां कई पीढ़ियों से लोग कमा रहे थे। इनमें दोनों जीवन साथी, उनके अभिभावक और बच्चे तक कमाई कर रहे थे, जिससे परिवार के खर्च करने की आय बढ़ गई।
इस आकांक्षी वर्ग ने दुनिया की सैर भी शुरू कर दी, जैसा कि भारत से विदेश में होने वाली यात्राओं में बढ़ोतरी से पता चलता है। ऐसी यात्राएं कामकाजी और छुट्टियां बिताने के लिए होती थीं। इस तरह यह समुदाय आयकर के दायरे में भी आ गया। मध्य वर्ग की पहुंच भौतिक वस्तुओं तक तो थी ही, वित्तीय तथा अन्य तरह की सेवाओं तक भी उनकी पहुंच बन गई।
2000 से शुरू दशक से मध्य वर्ग के स्वरूप में तेजी से बदलाव हुआ है। और आज ‘मध्य आय’ (मिटिल इनकम) और ‘मध्य वर्ग’ (मिडिल क्लास) ये दोनों शब्द एक दूसरे के बदले आसानी से इस्तेमाल हो रहे हैं। मध्य आय किसी व्यक्ति या परिवार के आय के स्तर को दर्शाती है, वहीं मध्य वर्ग का संबंध उनकी सामाजिक और आर्थिक हैसियत से है। भारत में इन दोनों शब्दों के मायने एकदम भिन्न हैं और देश के आर्थिक विकास के निर्धारण में इनका खास महत्व है।
मध्य आय वर्ग उन लोगों का समूह है, जो उच्च आय और निम्न आय समूह के बीच आते हैं। विश्व बैंक के वर्गीकरण के मुताबिक 7.5 लाख रुपये से लेकर 15 लाख रुपये सालाना आय मध्य आय वर्ग में आती है। इसके उलट मध्य वर्ग को एक निश्चित स्तर की शिक्षा, आय और जीवनशैली वाले समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। वे आमतौर पर व्हाइट-कॉलर नौकरियों में कार्यरत होते हैं और उनके पास विभिन्न सुविधाओं और अवसरों तक पहुंच होती है।
खपत के पैटर्न के मुताबिक भारत में मध्य वर्ग की सालाना आय छह लाख से रूपये से 18 लाख रुपये के बीच है। आकलन है कि भारत की आबादी में 40 फीसदी मध्य वर्ग में आते हैं। स्वाभाविक रूप से इस परिभाषा के साथ कुछ संदेह भी जुड़े हुए हैं, दरअसल अभी कोई स्पष्ट मध्य वर्ग है ही नहीं जिसके पास आकांक्षाएं हुआ करती थीं और उन्हें पूरा करने के साधन भी।
हम आज एक ऐसा देश हैं, जहां एक वर्ग ऐसे लोग का है, जो गरीब हैं और जिन्हें मुफ्त राशन मिलता है। दूसरी ओर आबादी में एक फीसदी ऐसे लोग हैं, जो अति समृद्ध और अमीर हैं। इन दोनों के बीच ऐसा वर्ग है, जिसकी न तो कोई एक आवाज है और न ही नीतियों से संबंधित किसी भी मामले में उसका कोई प्रभाव है, जो उनके जीवन को बेहतर बना सके।
इस आबादी में एक वर्ग ऐसा भी है, जिनमें शामिल लोगों के अनेक रिश्तेदार या परिवार के सदस्य भारत से बाहर पढ़ाई कर रहे हैं या काम कर रहे हैं। बहुत धीमी गति से ही सही सक्षम भारतीयों में पलायन देखा जा रहा है। ये लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में भारत को छोड़कर विदेशों में बस रहे हैं, जहां बुनियादी जरूरतें पूरी हो रही हैं। इससे आशय साफ हवा, साफ पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी चीजों की गुणवत्ता से है।
आयकर, खर्चों और सेवाओं के जरिये सरकार की आय में योगदान करने वाले इस वर्ग पर मजाक भी बनाए जाते हैं, जिसे बदले में कुछ खास नहीं मिलता। केवल यही मुद्दा नहीं है, वास्तविकता यह है कि इस वर्ग में शामिल अनेक लोगों को बढ़ती महंगाई से निपटने में खासा संघर्ष करना पड़ता है।
इस आबादी को प्रभावित करने वाला एक अन्य कारक हाल के वर्षों में उनकी स्थिर आय है, जो बढ़ती लागतों के साथ तालमेल नहीं रख पा रही है, नतीजतन घरेलू बचत दर में उल्लेखनीय कमी आई है। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के आधार पर, घरेलू बचत दर में कमी एक चिंता का विषय है, क्योंकि इसे जीडीपी के प्रतिशत के रूप में रिपोर्ट किया गया है।
घरेलू बचत में कमी को बढ़ती जीडीपी के साथ देखें तो पता चलता है कि बचत में पहले के आकलन की तुलना में कहीं अधिक तेजी से गिरावट आ रही है। इसके अलावा, आबादी का यह वर्ग गारंटीशुदा नौकरियों की कमी या सेवानिवृत्ति के बाद किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा न होने से चिंतित है और इस चिंता ने उसकी स्थिति कमजोर कर दी है।
मध्य आय वाली आबादी आम तौर पर आज कॉर्पोरेट की गुलाम बन गई है, जो अच्छे कपड़े पहनती है, कागज पर अच्छा कमाती है, लेकिन जब बचत की बात आती है, तो उसके पास बताने के लिए कुछ खास नहीं है। एआई के कारण कार्यस्थल की बदलती स्थिति ने उनके लिए एक और चुनौती पेश कर दी है। एआई के आगमन से बदलता कार्यस्थल एक और चुनौती है, जिसका इस वर्ग को सामना करना होगा ताकि यह वर्ग मध्य से गरीबी में न उतर जाए।