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Home » आपातकाल : राजशक्ति और जनशक्ति के तनाव से उभरा लोकतंत्र

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आपातकाल : राजशक्ति और जनशक्ति के तनाव से उभरा लोकतंत्र

Editorial Board
Last updated: June 23, 2025 2:01 pm
Editorial Board
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Emergency in India
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चंचल, राजनीतिक विश्लेषक, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष

पचास साल पहले 25 जून, 1975 की रात देश में आपातकाल लगा। दो साल रहा । यह इतिहास है । इतिहास इस आपातकाल का सरलीकरण करके इसका जो निचोड़ बताता है , वह बहुत दिलचस्प है। “ भारत की वह पीढ़ी बहुत सौभाग्यशाली है, जिसने इतिहास के इस काल खंड को – सुन कर या देख कर नहीं जाना, बल्कि उसे जिया है ।”

इस नतीजे तक आने लिए इतिहास ने आपातकाल के इस कालखंड को जिस तार्किक तथ्यों को उभारा है, उसे समझना होगा- “ लोकतंत्र वाहिद एक तंत्र है, जो राजशक्ति और जनशक्ति के तनाव पर डालता फूलता है , अगर जनशक्ति राजशक्ति को दबा कर मजबूत होगी तो अराजकता आएगी और अगर राजशक्ति जनशक्ति को दबा कर सत्ता चलाती है तो तानाशाही आएगी ।

भारत के लोकतंत्र ने इन दोनों शक्तियों के उभार को एक साथ देखा है । 73 से 75 तक जनशक्ति के उफान का काल है, जिसे जेपी आंदोलन के नाम से जाना जाता है। जिसके प्रतीक हैं , महान समाजवादी , स्वतंत्रता सेनानी जय प्रकाश नारायण। तो 75 से 77 तक राजशक्ति के दबदबे का काल जिसे आपातकाल कहते हैं, जिसकी प्रतीक हैं तात्कालिन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी।

भारतीय लोकतंत्र में प्रयोग किए गए जनशक्ति और राजशक्ति के तनाव का अंत दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में नहीं मिलेगा, जब जनशक्ति और राजशक्ति दोनों एक दूसरे के सामने खड़े होकर प्रायश्चित की मुद्रा में अपने अपने “ अति “ को स्वीकारते हैं और लोकतंत्र को आगे ले चलने का संकल्प लेते हैं । दोनो शक्तियों के मिलनबिंदु देखने वाली पीढ़ी आज जिंदा है । क्या गजब का मंजर रहा होगा उसे देखिए – 25 जून, 75 को देश में आपातकाल लगा , दो साल बाद 77 में आपातकाल हटा और चुनाव की घोषणा हुई ।

आपातकाल लगाने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी की कांग्रेस चुनाव में पराजित हो गई । उसकी जगह नई सरकार बनी, जिसे जनता सरकार के नाम से जाना गया । देश में हुए आम चुनाव के बाद जनता सांसदों को राजघाट पर इकट्ठा किया गया और उन्हें लोकतंत्र और संविधान की शपथ दिलायी जा रही थी , ठीक उसी समय जय प्रकाश नारायण अपने विश्वासी कुमार प्रशांत के साथ श्रीमती इंदिरा गांधी के आवास पर पहुंचे । दोनों एक दूसरे के सामने खड़े थे , दोनों की आंखें नम हो गईं। श्रीमती गांधी आगे बढ़ कर के जेपी के कंधे पर अपना सर रख दिया । दोनों रो रहे थे । श्रीमती गांधी ने इतना भर कहा –

  • अब क्या होगा ?
    जेपी ने श्रीमती गांधी के सर पर हाथ रखा
  • सब ठीक होगा इंदु !

इतिहास दोनों की नम आंखों का आकलन कर रहा है – दोनों शक्तियां पराजित हुईं जिंदा हुआ, तो बस लोकतंत्र । दोनों लोकतंत्र और समाजवाद के वाहक हैं।

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