द लेंस डेस्क। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की पीठ ने पिछले हफ्ते सर्वसम्मति से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के व्यावसायिक उपक्रम एंट्रिक्स के खिलाफ देवास मल्टीमीडिया के 1.29 अरब डॉलर के मुकदमे को आगे बढ़ाने की मंजूरी दी है।Devas-Antrix Deal यह विवाद 2005 के एक रद्द सैटेलाइट सौदे से संबंधित है, जब भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम शिखर पर था। इसरो ने अपने व्यावसायिक उपक्रम एंट्रिक्स के जरिये दिखा दिया कि वह किसी भी संस्था की तुलना में अपेक्षाकृत कम दामों पर उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेज सकता है। उसी दौरान देवास मल्टीमीडिया नामक एक स्टार्ट अप उसके संपर्क में आया।
बंगलुरू के इस स्टार्टअप को इसरो के पूर्व वैज्ञानिकों ने स्थापित किया था और इससे सिलिकॉन वैली की वेंचर कैपिटल भी जुड गई। इरादा था 3जी हैडसेट्स पर सीधे मल्टीमीडिया कंटेंट और ब्रॉडबैंड स्ट्रीम करना, ताकि भारत के बदतर नेटवर्क को बाइपास किया जा सके। इसके जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में उपग्रह आधारित इंटरनेट योजना शामिल थी। यह कुछ उसी तरह का था, जिसे आज एलन मस्क की स्टारलिंक कंपनी दुनियाभर में लागू करना चाहती है।
एंट्रिक्स और देवास मल्टीमीडिया में हुए करार के जरिये एंट्रिक्स को दो उपग्रहों को जियोस्टेशनरी कक्ष में लांच करना था। करार के मुताबिक इन उपग्रहों पर 70 मेगाहर्ट्ज का कीमता एस-बैंड स्पेक्ट्रम देवास को 12 साल के लिए पट्टे पर मिल जाता। बदले में देवास 167 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान करती और भारत में उपग्रह आधारित डिजिटल सेवाएं शुरू करने में मदद करती।
आज से बीस साल पहले 2005 में यह क्रांतिकारी योजना थी जिसके जरिये नेटफ्लिक्स और उपग्रह टीवी सीधे मोबाइल फोन पर पहुंच गया होता। यह योजना सिरे चढ़ नहीं पाई और फिर फरवरी 2011 में, रणनीतिक मामलों पर भारत के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी, ने फैसला किया कि उसे “रणनीतिक और सुरक्षा उद्देश्यों” के लिए S-बैंड स्पेक्ट्रम की आवश्यकता है। एंट्रिक्स को तुरंत सौदा समाप्त करने का निर्देश दिया गया।
दरअसल इससे पहले 2009 के अंत में चर्चित राडिया टेप्स लीक हुए थे, जिनमें देश के शीर्ष व्यापारियों और राजनेताओं के बीच 5,000 से अधिक बातचीत शामिल थीं और यह सभी 2G स्पेक्ट्रम का हिस्सा हासिल करने के इर्द-गिर्द थी। यह मामला इतना गरमाया कि ‘स्पेक्ट्रम’ शब्द से जुड़ी हर चीज जांच के दायरे में आ गई। और एक ऐसा सौदा जो एक निजी कंपनी को मूल्यवान और संवेदनशील उपग्रह स्पेक्ट्रम देता था, अचानक राजनीतिक रूप से विषाक्त लगने लगा।
एंट्रिक्स ने देवास को सूचित किया कि भारत सरकार की नीति में बदलाव के कारण, वह अब S-बैंड में स्पेक्ट्रम को वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए नहीं दे सकता।इस तरह एक कानूनी लड़ाई तैयार हो गई और जिसका दायरा अमेरिका तक फैल गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि देवास पूरी तरह से भारतीय कंपनी नहीं थी, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय निवेशकों द्वारा समर्थित कंपनी थी।
इस मामले पर एक्स पर एक हैंडल @zerodhamarkets ने विस्तार से स्टोरी करते हुए 2005 से लेकर अब तक के ब्योरे विस्तार से दिए हैं। इस हैंडल ने थ्रेड में यह भी लिखा है कि यह किस तरह से भारतीय संपत्तियों पर कब्जा करने की वैश्विक स्तर पर चल रही कोशिशों की शुरुआत जैसा है। नतीजतन देवास के साथ 562 मिलियन डॉलर का मामला आज 1.29 अरब डॉलर में बदल चुका है।
 
					

 
                                
                              
								 
		 
		 
		