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क्या एआई खत्म कर देगा नौकरियां? मिडिल क्लास के लिए क्या है चुनौती?

पूनम ऋतु सेन
Last updated: June 10, 2025 1:11 pm
पूनम ऋतु सेन
Byपूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की...
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Zoho founder Sridhar Vembu
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द लेंस डेस्क | जोहो कॉर्पोरेशन के संस्थापक और सीईओ श्रीधर वेम्बु ( Zoho founder Sridhar Vembu ) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ऑटोमेशन के भविष्य पर अपनी राय सोशल मीडिया पर पोस्ट की है । उन्होंने कहा कि एआई और रोबोट से बड़े पैमाने पर नौकरियां खत्म होने का डर गलत है लेकिन अगर सरकारें सही नीतियां नहीं बनातीं तो यह मध्यम वर्ग के लिए आर्थिक मुश्किलें खड़ी कर सकता है। एक सोशल मीडिया पोस्ट में वेम्बु ने बताया कि अगर भविष्य में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट जैसे काम पूरी तरह से ऑटोमेटेड हो गए, तो भी इंसानों के लिए काम की कमी नहीं होगी। लेकिन असली सवाल यह है कि लोग उन सस्ते सामानों को कैसे खरीदेंगे, जो रोबोट और एआई बनाएंगे।

खबर में खास
नौकरियां नहीं, आर्थिक असमानता है असली खतराइंसानी कामों की बढ़ेगी कीमतयह तकनीकी नहीं, आर्थिक समस्या

नौकरियां नहीं, आर्थिक असमानता है असली खतरा

वेम्बु ने कहा कि एआई और रोबोट से सामान और सेवाओं की कीमतें बहुत कम हो सकती हैं, शायद लगभग मुफ्त जैसी। उदाहरण के लिए, जिस तरह हम सांस लेने के लिए हवा का इस्तेमाल मुफ्त में करते हैं, उसी तरह भविष्य में कई चीजें सस्ती हो सकती हैं। लेकिन अगर लोगों के पास आय का कोई जरिया नहीं होगा, तो वे इन सस्ती चीजों को भी नहीं खरीद पाएंगे। यही आर्थिक असमानता का सबसे बड़ा खतरा है।

इंसानी कामों की बढ़ेगी कीमत

वेम्बु का मानना है कि कुछ ऐसे काम हैं, जो एआई और रोबोट कभी नहीं कर सकते। जैसे- बच्चों की देखभाल, घर का खाना बनाना, बीमारों की सेवा, खेती, पर्यावरण की देखभाल और स्थानीय संगीतकारों का प्रदर्शन। ये काम भविष्य में ज्यादा मूल्यवान हो सकते हैं और इनके लिए अच्छी कमाई भी हो सकती है। इससे लोगों की आय बढ़ेगी और वे सस्ते सामानों को खरीद सकेंगे।

टेक कंपनियों का एकाधिकार खतरा

वेम्बु ने चेतावनी दी कि अगर टेक कंपनियों का एकाधिकार (मोनोपॉली) नहीं रोका गया तो ऑटोमेशन के फायदे सिर्फ कुछ बड़ी कंपनियों तक सीमित रह जाएंगे। इससे आम लोगों को सस्ते सामान का लाभ नहीं मिलेगा और उनकी आय और भी कम हो सकती है। उन्होंने सरकारों से अपील की कि वे टेक कंपनियों पर सख्त नियम लागू करें ताकि ऑटोमेशन का फायदा सभी को मिले।

यह तकनीकी नहीं, आर्थिक समस्या

वेम्बु ने साफ किया कि एआई और रोबोट से होने वाली चुनौती तकनीकी नहीं बल्कि आर्थिक और नीतिगत है। अगर सरकारें सही नीतियां बनाएं, तो यह सुनिश्चित हो सकता है कि ऑटोमेशन से होने वाला लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंचे। उन्होंने उम्मीद जताई कि दुनिया में कम से कम एक देश ऐसा जरूर होगा, जो इस आर्थिक बदलाव को सही तरीके से संभालेगा।

अभी दूर है ऐसा भविष्य, क्या करें?

वेम्बु ने यह भी जोर देकर कहा कि सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट या अन्य नौकरियों का पूरी तरह ऑटोमेशन अभी बहुत दूर है। लेकिन हमें अभी से इसके लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि लोगों को नए कौशल सीखने और बदलाव के लिए तैयार रहने की जरूरत है।

नए कौशल सीखें: एआई के युग में उन कामों पर ध्यान दें, जो इंसान ही कर सकते हैं, जैसे देखभाल, रचनात्मकता और पर्यावरण संरक्षण।
आर्थिक नीतियों पर ध्यान दें: सरकारों को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जो ऑटोमेशन के फायदे को सभी तक पहुंचाएं।
एकाधिकार पर रोक: टेक कंपनियों के एकाधिकार को रोकने के लिए सख्त नियम जरूरी हैं।

श्रीधर वेम्बु का बयान तकनीकी दुनिया और भविष्य की अर्थव्यवस्था को समझने वालों के लिए महत्वपूर्ण है। वे मानते हैं कि सही नीतियों और नियमन से एआई का युग आर्थिक संकट नहीं बल्कि समृद्धि ला सकता है।

TAGGED:AI ROBOTARTIFICIAL INTELLIGENCESOCIAL MEDIASRIDHAR VEMBUZOHO CEOZOHO FOUNDER
Byपूनम ऋतु सेन
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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