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लेंस संपादकीय

हसदेव : अडानी के लिए रास्ता साफ करती सरकार

Editorial Board
Editorial Board
Published: November 26, 2025 8:45 PM
Last updated: November 26, 2025 8:45 PM
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छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने पर्यावरण संकट की गंभीर चुनौती से जूझ रहे हसदेव अरण्य में 1742.0 हेक्टेयर में फैले केते एक्सटेंशन कोयला खदान में खनन को मंजूरी देकर यह खदान अडानी समूह को देने का रास्ता साफ कर दिया है। केंद्र और राज्य सरकार को भाजपा की डबल इंजिन सरकार बताई जाने वाली केंद्र की मोदी सरकार से इसे मंजूरी मिलते ही यहां करीब चार लाख पेड़ों की कटाई की आशंका है।

दरअसल यह सारी कवायद एक सिलसिले में दिखती है, जिसकी शुरुआत इसी साल जून में हुई थी, जब सरगुजा वनमंडल के वनमंडलाधिकारी ने वन भूमि में कोयला खनन की अनुशंसा की थी।

मुश्किल से डेढ़ दशक पहले बिजली और कोयला क्षेत्र में उतरे अडानी समूह की चमक हैरतअंगेज है और यह एक औद्योगिक समूह के प्रति सरकार द्वारा बरती जा रही अतिशय उदारता का भी उदाहरण है।

यह सरकार के मनमाने फैसलों में से ही एक है, जहां जंगलों से अपनी जरूरत भर की वनसंपदा लेने वाले आदिवासियों को तो बेदखल करने से गुरेज नहीं किया जाता, वहीं एक औद्योगिक समूह के हित में जैवविविधता से समृद्ध हसदेव में कोयला खनन के लिए वनभूमि के इस्तेमाल को बदलने में देर नहीं की जाती।

अडानी समूह ने किस हद तक सार्वजनिक संपदा पर एकाधिकार हासिल कर लिया है, उसे हसदेव से भी समझा जा सकता है।

इस मामले में तो राजनीतिक शुचिता की बात करना ही बेमानी हो चुका है। छत्तीसगढ़ की जिस भाजपा सरकार ने अडानी के लिए कोयला खदान को मंजूरी दी है, उसके मुखिया विष्णु देव साय ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहते राज्य की पिछली भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार पर हसदेव को अडानी को सौंप देने का आरोप लगाया था।

यही नहीं, भाजपा के आदिवासी नेताओं ने बकायदा इसके खिलाफ एक अभियान भी चलाया था। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य की भाजपा सरकार पर हसदेव अडानी को सौंपने का आरोप लगाया है, लेकिन यह भी सच है कि केते एक्सटेंशन राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को देने की कवायद तो राज्स्थान में अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार के समय ही हो गई थी।

मुश्किल यह है कि हसदेव के लिए उठती स्वतंत्र आवाजें भी भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद कमजोर हुई हैं, ऐसा क्यों हैं इसे समझना मुश्किल नहीं।

दरअसल इस सारी कवायद पर गंभीर बहस और व्यापक रायशुमारी की जरूरत है और इसमें चुनी हुई सरकारों की ही अहम भूमिका हो सकती है, लेकिन क्या वह हसदेव के जंगलों और वहां के लोगों का दर्द सुनने को तैयार हैं?

यह भी पढ़ें : हसदेव अरण्य में साढ़े 4 लाख पेड़ों की कटाई को छत्तीसगढ़ सरकार की हरी झंडी

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