CG NEWS: छत्तीसगढ़ में सरकारी काम अब आउटसोर्स कर्मचारियों के भरोसे ही चल रहा है। अस्पताल से लेकर बिजली कंपनी, स्कूल-छात्रावास, नगर निगम तक हर जगह ये कर्मचारी दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। लेकिन इन एक लाख से ज्यादा युवाओं को न पूरा वेतन मिल रहा है, न पीएफ-ग्रेच्युटी, न कोई दूसरी सुविधा। ज्यादातर को 8-10 हजार रुपये महीना ही मिल पाता है, जो न्यूनतम मजदूरी से भी कम है। ये दावा है छत्तीसगढ़ प्रगतिशील अनियमित कर्मचारी फेडरेशन का।
फेडरेशन की तरफ से ज़ारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस व्यवस्था से सरकार को हर साल 276 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो रहा है। 1 लाख कर्मचारियों के वेतन पर सालाना करीब 1200 करोड़ रुपये खर्च होते हैं जिसमें 18% जीएसटी और एजेंसी का 5% कमीशन जोड़कर 276 करोड़ सीधे बर्बाद हो जाते हैं। कर्मचारी कहते हैं अगर हमें सीधे नौकरी दी जाए तो सरकार का इतना पैसा भी बचेगा और हमारा भी भला होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 2024-2025 में कई फैसलों में साफ कहा है कि लंबे समय से काम कर रहे कर्मचारियों को स्थायी करने से मना नहीं किया जा सकता। श्रम कानून भी सरकार के पक्ष में नहीं हैं फिर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही। 2023 में मोदी की गारंटी में भी अनियमित कर्मचारियों के लिए कमेटी बनाने का वादा था, लेकिन बनी कमेटी में एक भी कर्मचारी प्रतिनिधि को जगह नहीं दी गई।

20-25 साल से सेवा दे रहे इन कर्मचारियों की हालत अब ‘बंधुआ मजदूर’ से भी बदतर हो गई है। छत्तीसगढ़ प्रगतिशील अनियमित कर्मचारी फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल प्रसाद साहू ने चेतावनी दी है कि अगर मांगें पूरी नहीं हुईं तो दिसंबर में रायपुर में बहुत बड़ा आंदोलन होगा। कर्मचारी अब चुप नहीं बैठेंगे।

