महाराष्ट्र के पालघर में पांच साल पहले हुई दो साधुओं की हत्या के मामले के संदिग्ध काशीनाथ चौधरी की सदस्यता भाजपा पार्टी में उनके प्रवेश के तुरंत बाद रद्द कर दी है, लेकिन यह सब विपक्ष के भारी शोर मचाने के बाद हुआ है। चाल, चरित्र और चेहरे पर जोर देने वाली भाजपा का यह दोहरा चेहरा है, जिसके यहां दागियों को पार्टी में शामिल कर अपनी ओर से ‘दोषमुक्त’ करने की लंबी फेहरिस्त है।
पांच साल पहले कोविड के लॉकडाउन के दौरान 16 अप्रैल, 2020 को पालघर में दो साधुओं चिन्मयानंद और सुशील गिरी तथा उनके ड्राइवर की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। इस घटना ने पूरे देश में हंगामा मचा दिया था। इससे नाराज भाजपा ने इस हत्याकांड के लिए तब अविभाजित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता काशीनाथ चौधरी को मुख्य षडयंत्रकारी बताया था।
तब महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की महाअघाड़ी सरकार सत्ता में थी और उसे घेरने में भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पालघर में साधुओं की हत्या ने महाराष्ट्र की तत्कालीन राजनीति को खासा प्रभावित किया था और यहां तक शिवसेना से अलग होने वाले एकनाथ शिंदे ने भी इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
भाजपा ने भले ही कुछ घंटे के भीतर ही काशीनाथ चौधरी की पार्टी सदस्यता को रद्द कर दिया है, लेकिन इसे नैतिकता का जामा पहनना नासमझी ही होगी। वास्तव में यह कोई पहला मौका तो है नहीं, जब भाजपा ने आपराधिक मामलों के संदिग्ध या किसी दागी को पार्टी में प्रवेश देने का फैसला किया हो।
उसके यहां तो इसकी लंबी सूची है, इसे समझने के लिए महाराष्ट्र से बाहर जाने की भी जरूरत नहीं है, जहां के मौजूदा उपमुख्यमंत्री अजीत दादा पवार पर कभी खुद प्रधानमंत्री मोदी ने हजारों करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। यही नहीं, एक और पूर्व मुख्यमंत्री तथा अभी राज्यसभा सदस्य अशोक चव्हाण जब कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए तो उनके खिलाफ आदर्श आवास घोटाले को लेकर उठ रही आवाजें शांत हो गईं।
भाजपा ने भले ही काशीनाथ चौधरी का पार्टी में प्रवेश रोक दिया है, लेकिन यह कदम राजनीतिक मजबूरी में उठाया गया है। वास्तव में पार्टी को चौधरी को शामिल करने में किसी तरह की नैतिक हिचक नहीं थी, यह तो प्रदेश भाजपा की ओर से आई इस सफाई से ही साफ है कि चौधरी का नाम इस मामले में किसी भी एफआईआर या आरोपपत्र में नहीं था! भाजपा के इस भोलेपन पर कौन न मर जाए!!

