राजधानी दिल्ली में लाल किले के नजदीक 10 नवंबर, की शाम एक कार में हुए धमाके को केंद्र सरकार ने भी आतंकी घटना करार दिया है। हालांकि जब इस भीषण धमाके से जुड़ी जांच को एनआईए को सौंपा गया था, तभी साफ हो गया था कि यह कोई मामूली हादसा नहीं है।
दोहराने की जरूरत नहीं कि आतंकी घटनाएं मानवता के खिलाफ सबसे भीषण अपराध हैं, जिसकी भारी कीमत निर्दोष लोगों को चुकानी पड़ती है। इस धमाके में भी मारे गए 13 लोगों के घरों में मानो दुख का पहाड़ टूट पड़ा है। यह आतंक का घिनौना रूप है, जिसे कथित तौर पर डॉक्टरों के एक आतंकी गिरोह ने अंजाम दिया, जिन पर जिंदगी बचाने की जिम्मेदारी होती है।
संभवतः यह आतंक का नया रूप भी है, जिसमें विस्फोटकों से लदी कार को लाल किले तक ले जाने वाले डॉ. उमर सहित कई डॉक्टर शामिल थे, जिनमें से कई को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। इस मामले में शक के दायरे में आई फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी और उसके मालिक की संदिग्ध गतिविधियों को लेकर जो जानकारियां अब सामने आ रही हैं, उसका तो यही मतलब है कि ऐसे संस्थानों पर नजर रखने की जिन नियामक संस्थाओं पर जिम्मेदारी हैं, वे ठीक से काम नहीं कर रही हैं।
डॉ. उमर तथा उसके साथी ड़ॉक्टर इसी यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए थे। इसके बावजूद यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि इस यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे बच्चों और निर्दोष शिक्षकों तथा कर्मचारियों का अहित न हो।
यों तो जांच से ही इस हमले की जानकारियां और षडयंत्र की कहानी सामने आ सकेगी, लेकिन इसमें कुछ बातों पर गौर किया जाना चाहिए। एक तो यह कि पहलगाम हमले के सात महीने बाद इसे अंजाम दिया गया है, जिसका मतलब है कि ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाई के बावजूद आतंकियों का नेटवर्क राजधानी दिल्ली सहित देश के कई शहरों तक फैला हुआ है। इस मामले में जैशे मोहम्मद का नाम सामने आया है, जिसके आका सीमा पार पाकिस्तान में बैठे हुए हैं।
इस धमाके में जो बातें सामने आई हैं, उनमें यह भी कहा जा रहा है कि डॉ. उमर ने संभवतः खुद को बचाने के लिए विस्फोटक से लदी कार में धमाका कर दिया। आतंकियों का इरादा शायद कहीं अधिक सुनियोजित तरीके से दहशत फैलाने का था, जैसा कि इस मामले में कई कारों के शामिल होने से अंदाजा लगाया जा रहा है। यदि आतंकी अपने इन मंसूबों पर कामयाब होते तो सचमुच बड़ी तबाही कर सकते थे।
अंतिम बात, यह बेहद नाजुक समय है, जिसमें संवेदना और संयम की जरूरत है, ताकि माहौल बिगाड़ने वालों के मंसूबे पूरे न हों।
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