नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में गुरुवार को 64.66 फ़ीसदी मतदान के साथ ‘अब तक का सबसे ज्यादा’ मतदान दर्ज किया गया। इस चरण में 18 जिलों की 121 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ, जहां कुल 3.75 करोड़ से ज़्यादा मतदाता हैं।
नहीं भुला जाना चाहिए कि SIR के दौरान मतदाता सोची से लगभग 65 लाख नाम काटे गए इस बार हुए मतदान के 2000 के विधानसभा चुनाव के 62.57 फ़ीसदी मतदान से बेहतर हैं।
2020 के चुनाव में, पहले चरण में 57.29 फीसदी मतदान हुआ। लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा मतदान 1998 में 64.6 फीसदी हुआ था।
चुनाव आयोग बढ़े हुए मतदान के लिए अपनी पींठ ठोंक रहा है।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 1951 के बाद हुए सर्वाधिक मतदान के लिए मतदाताओं को बधाई दे रहे हैं वहीं बीजेपी इसे अपने जीत का संकेत मान रही है लेकिन इसके पीछे की वजह राजनीतिक है या अंकगणितीय?यह बात अभी सवालाओं के घेरे में है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में रिकॉर्ड मतदान इस बात का सबूत है कि लोगों ने नरेंद्र और नीतीश के ट्रैक रिकॉर्ड पर अपना भरोसा जताया है।
बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने बढ़े हुए मत प्रतिशत पर कहा कि एनडीए इस चरण में 121 में से लगभग 100 सीटें जीतेगा। उन्होंने कहा कि इस साल के नतीजे 2010 के चुनाव परिणामों का रिकॉर्ड तोड़ देंगे।
चौधरी ने यह भी कह दिया कि महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव राघोपुर से हार जाएंगे। उन्होंने कहा, ‘जैसे 2010 में लालू प्रसाद के परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं जीता था, वैसे ही इस बार भी उनके परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं जीतेगा।’
वहीं, विपक्ष इसे नीतीश सरकार के खिलाफ जनाक्रोश का परिणाम बता रही है।
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि ‘बिहार का युवा, महिलाएं, बुजुर्ग, हर वर्ग इस सरकार के खिलाफ गुस्से में वोट कर रहा है। गुस्से का वोट हमेशा बदलाव का वोट होता है। बिहार में बदलाव आ रहा है।’
बिहार दौरे से वापस लौटे पत्रकार विश्वदीपक कहते हैं कि निस्संदेह मतदाताओं में आई कमी इस बढ़े हुए मत फीसद की बड़ी वजह है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस बार युवाओं ने जमकर वोटिंग की है। यह वोटिंग रोजगार के मुद्दे पर हुई है या मोदी जी के फेस वैल्यू पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
सत्ता के विपरीत रहा है ज्यादा मतदान
ऐतिहासिक रूप से, बिहार में ज़्यादा मतदान प्रतिशत सत्ता परिवर्तन का संकेत माना जाता है। लोग पारंपरिक रूप से बदलाव की चाहत में मतदान केंद्रों पर कतारों में खड़े होते रहे हैं।1980 में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार के तीन साल के शासन और राष्ट्रपति शासन के बाद कांग्रेस के पक्ष में मतदान लगभग 7 प्रतिशत बढ़ गया।
1990 में मतदान प्रतिशत 56.3 प्रतिशत से बढ़कर 62 प्रतिशत हो गया 5.8 प्रतिशत की वृद्धि के कारण जगन्नाथ मिश्रा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गयी और जनता दल के लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
हालांकि, 2005 में मतदान में 16 फ़ीसदी की गिरावट आई, फिर भी इसने फिर से सत्ता परिवर्तन लाया, और जेडी (यू) के नीतीश कुमार पहली बार सत्ता में आये।
2010 में मतदान प्रतिशत 46.5 प्रतिशत से बढ़कर 52.7 प्रतिशत हो गया, जिससे नीतीश कुमार को उनके आशाजनक कार्यों के कारण मुख्यमंत्री के रूप में एक और मौका मिला और उन्हें “सुशासन बाबू” का नाम दिया गया।
क्या नगद योजनाओं ने किया काम
कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अनुमानों से विपरीत चुनाव से ठीक पहले नीतीश द्वारा घोषित नकद वितरण और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं ने पहले चरण के मतदान में एनडीए के पक्ष में काम किया है खासतौर से महिलाओं के खाते में दस हजार रुपये डाले जाने से स्थिति बदली है।
यह भी कहा जा रहा है कि एनडीए के भीतर जेडी (यू) के पक्ष में बीजेपी से ज़्यादा वोट पड़े हैं जो चुनावों से पहले पिछड़ता दिख रहा था लेकिन इस बात पर चुप्पी है कि तेजस्वी ने जो खातों में तीस हज़ार रुपए डालने की घोषणा की है क्या उसका असर नहीं हुआ होगा?
यकीनन महिलाओं का मुद्दा और उनका वोट इस चुनाव में महत्वपूर्ण साबित होने जा रहे हैं चुनाव के पहले चरण में महिला मतदाताओं की संख्या काफी उत्साहजनक रही है । ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना, १२५ यूनिट तक मुफ्त बिजली ने ज़रूर असर दिखाया होगा पर क्या यह असर इतना व्यापक रहा है कि पांच फीसदी वोट बढ़ा दे?
SIR का कितना असर
विधानसभा चुनावों से महीनों पहले, चुनाव आयोग ने मतदाता सूची शुद्धिकरण अभियान विशेष गहन पुनरीक्षण चलाया, जिसके परिणामस्वरूप राज्य की मतदाता सूची में महत्वपूर्ण सुधार हुआ।एसआईआर के बाद, अंतिम सूची में 7.42 करोड़ पात्र मतदाता शामिल किए गए जो मसौदा सूची में दर्ज 7.24 करोड़ नामों से 18 लाख अधिक थे, लेकिन संशोधन प्रक्रिया से पहले दर्ज 7.89 करोड़ नामों से 47 लाख कम थे।
मगध क्षेत्र में मतदाता आधार औसतन 2.6 प्रतिशत बढ़ा, जिसमें पटना जिले में सबसे ज़्यादा 3.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जहाँ लगभग 1.6 लाख नए मतदाता जुड़े। शायद यही वजह है कि वहां मतदान फीसद बढ़ा। नहीं भूलना चाहिए 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में, इन 121 सीटों पर मुकाबला सबसे कड़े मुकाबलों में से एक साबित हुआ।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और वामपंथी दलों वाले महागठबंधन ने 61 सीटें जीतकर मामूली बढ़त हासिल की। भाजपा और जद (यू) के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 59 सीटों के साथ उसके ठीक पीछे रहा। बढ़े हुए मत फीसद में इस चरण में सीटों का फासला ज़्यादा हो तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
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