नेशनल ब्यूरो। नई दिल्ली
देश में नक्सल हिंसा प्रभावित जिलों की नवीनतम समीक्षा में पाया गया कि नौ राज्यों में इनकी संख्या 46 से घटकर 38 रह गई है। केवल चार ‘चिंताजनक जिले’ और तीन ‘ सर्वाधिक प्रभावित जिले’ बचे हैं। यह मूल्यांकन गृह मंत्रालय द्वारा ‘वामपंथी उग्रवाद निपटने के लिए राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना’ के अंतर्गत किया गया है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारें इस खतरे से निपटने के लिए मिलकर काम करती हैं। नवीनतम वर्गीकरण गृह मंत्रालय द्वारा 15 अक्टूबर को अधिसूचित किया गया था।
आधिकारिक रिकॉर्ड के कहा गया है कि देश में माओवादी घटनाओं में उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया गया है और इसलिए सुरक्षा-संबंधी व्यय के अंतर्गत आने वाले जिलों की संख्या 1 अप्रैल को 46 से घटकर अब 38 हो गई है। निस्संदेह ऐसा एसआरई की वजह से हुआ है।
एसआरई एक शीर्ष स्तरीय वामपंथी उग्रवाद नीति योजना है जिसके तहत केंद्र आंतरिक सुरक्षा समस्या से लड़ने के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। एसआरई जिलों को आगे ‘वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों’ और ‘विरासत एवं प्रबल जिलों’ में वर्गीकृत किया गया है।
सरकार का दावा है कि मार्च 2026 तक नक्सलवाद को समाप्त करने की केंद्र सरकार की घोषणा के तहत सुरक्षा बलों की आक्रामक कार्रवाई के बाद, इन सभी श्रेणियों में नक्सली हिंसा और प्रभाव के ग्राफ में गिरावट देखी गई है।
वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों की संख्या अप्रैल में 18 से घटकर 11 हो गई है और उन्हें ‘सबसे अधिक प्रभावित जिले’, ‘चिंताजनक जिले’ और ‘अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिले’ के रूप में उप-वर्गीकृत किया गया है।
अब देश में केवल तीन सर्वाधिक प्रभावित जिले’ बचे हैं, जो इस साल 1 अप्रैल को छह थे। ये तीन जिले बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा हैं – सभी छत्तीसगढ़ में हैं। वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों के अंतर्गत यह उप-श्रेणी 2015 में 35 जिलों के साथ बनाई गई थी ताकि संसाधनों की “केंद्रित” तैनाती सुनिश्चित की जा सके।
चिंता के चार जिले छत्तीसगढ़ में कांकेर, झारखंड में पश्चिमी सिंहभूम, मध्य प्रदेश में बालाघाट और महाराष्ट्र में गढ़चिरौली हैं। इस मद में वे जिले शामिल किए गए हैं जहां नक्सली प्रभाव कम हो रहा है, लेकिन संसाधनों के केंद्रित विकास की अभी भी आवश्यकता है।
सूत्रों ने बताया कि अप्रैल में छह में से चार ज़िलों को इस श्रेणी से हटा दिया गया था और समीक्षा के बाद दो ज़िलों को इसमें शामिल किया गया था। नवीनतम समीक्षा के अनुसार, चार अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िले हैं – छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा, गरियाबंद और मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी और ओडिशा में कंधमाल।
आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, जिन जिलों में सुरक्षा स्थिति के साथ-साथ विकास को भी सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, तथा जो न तो ‘सबसे अधिक प्रभावित जिलों’ में शामिल हैं और न ही ‘चिंताजनक जिलों’ की श्रेणी में हैं, उन्हें ‘अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों’ में रखा गया है। अप्रैल में इस श्रेणी में छह जिले थे। ।
नवीनतम समीक्षा में 27 जिलों को ‘विरासत और महत्वपूर्ण जिलों’ की श्रेणी में रखा गया है। इनमें ओडिशा के आठ, छत्तीसगढ़ के छह, बिहार के चार, झारखंड के तीन, तेलंगाना के दो और आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के एक-एक जिले शामिल हैं।
रिकॉर्ड के अनुसार, ये वे जिले हैं जहां नक्सलवाद का अंत हो चुका है, लेकिन ये वामपंथी उग्रवाद के विस्तार के लिए “संभावित स्थल” हैं और इसलिए राज्यों की क्षमता निर्माण के लिए निरंतर सरकारी सहायता की आवश्यकता है। अप्रैल में इस श्रेणी में 28 जिले थे। सूत्रों ने बताया कि नवीनतम समीक्षा के बाद, आठ जिलों को इस श्रेणी से बाहर कर दिया गया और सात को इसमें शामिल किया गया।

