स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता Greta Thunberg ने इजरायली सेना पर हिरासत के दौरान अमानवीय व्यवहार का आरोप लगाया जबकि इजरायल ने इन आरोपों को खारिज किया है। प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने इजरायली सेना पर हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार का गंभीर आरोप लगाया है। ग्रेटा का कहना है कि उन्हें ऐसी जगह रखा गया, जहां खटमलों का प्रकोप था और उन्हें पर्याप्त भोजन व पानी नहीं दिया गया। इस वजह से उनकी तबीयत बिगड़ गई। दूसरी ओर इजरायली अधिकारियों ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए दावा किया है कि सभी हिरासत में लिए गए लोगों को जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई गईं।
क्या है पूरा मामला?
हाल ही में इजरायली सेना ने गाजा के लिए खाद्य सामग्री ले जा रहे 40 छोटे जहाजों को रोक लिया था। इन जहाजों पर ग्रेटा थनबर्ग सहित 400 से अधिक मानवाधिकार कार्यकर्ता सवार थे। इन कार्यकर्ताओं को इजरायली सेना ने हिरासत में ले लिया। हिरासत से रिहा होने के बाद ग्रेटा ने स्वीडिश विदेश मंत्रालय को एक ईमेल के जरिए अपनी आपबीती बताई।
ग्रेटा के आरोप
ग्रेटा ने अपने ईमेल में बताया कि हिरासत के दौरान उन्हें एक ऐसी जेल में रखा गया जहां खटमलों की वजह से उनकी त्वचा पर चकत्ते पड़ गए। उन्हें पर्याप्त खाना और पानी नहीं दिया गया, जिसके कारण वे डिहाइड्रेशन का शिकार हो गईं। स्वीडिश दूतावास ने ग्रेटा से मुलाकात के बाद इस बात की पुष्टि की कि उनकी हालत ठीक नहीं थी। साथ ही दो अन्य रिहा हुए कार्यकर्ताओं ने भी ग्रेटा के दावों का समर्थन किया। उनका कहना है कि इजरायली सेना ने ग्रेटा के साथ बुरा बर्ताव किया। कार्यकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि ग्रेटा को बालों से पकड़कर घसीटा गया और इजरायल का झंडा चूमने के लिए मजबूर किया गया।
इजरायल का जवाब
इजरायली दूतावास ने इन सभी आरोपों को निराधार बताया है। दूतावास के एक प्रवक्ता ने कहा, “हिरासत में लिए गए सभी लोगों को खाना, पानी, शौचालय और चिकित्सा सुविधाएं दी गईं। सभी कानूनी अधिकारों का पालन किया गया।” इजरायल ने यह भी कहा कि हिरासत की प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार थी।
शनिवार को रिहा हुए दो अन्य कार्यकर्ताओं ने ग्रेटा के साथ हुए बर्ताव की पुष्टि की है। इन कार्यकर्ताओं का कहना है कि हिरासत के दौरान मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। हालांकि इस मामले में स्वतंत्र जांच की मांग अभी तक सामने नहीं आई है। स्वीडिश सरकार ने इस मामले में अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है लेकिन ग्रेटा के समर्थन में कई संगठन सामने आ रहे हैं।