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सीपीआई (माओवादी) दो फाड़? तेलंगाना राज्य समिति ने सोनू के बयान को निजी राय कहा

दानिश अनवर
दानिश अनवर
Byदानिश अनवर
Journalist
दानिश अनवर, द लेंस में जर्नलिस्‍ट के तौर पर काम कर रहे हैं। उन्हें पत्रकारिता में करीब 13 वर्षों का अनुभव है। 2022 से दैनिक भास्‍कर...
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- Journalist
Published: September 19, 2025 7:45 PM
Last updated: September 20, 2025 6:37 PM
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रायपुर। क्या सीपीआई (माओवादी) अपने गठन के इक्कीस साल बाद अब एक विभाजन की कगार पर है ?

हाल ही में माओवादियों के एक के बाद एक दो ऐसे बयानों ने हलचल मचा दी थी जिनमें से अभय के नाम से जारी एक बयान में कहा गया था कि वे शांति वार्ता के लिए हथियार डालने को तैयार हैं जबकि पार्टी के एक पोलित ब्यूरो सदस्य सोनू के नाम से जारी दूसरे बयान में पार्टी की कार्यनीति की जमकर आलोचना की गई।

अब सीपीआई (माओवादी)की तेलंगाना राज्य समिति के एक प्रतिनिधि जगन के नाम से शुक्रवार को समाचार संस्थानों में पहुंचे बयान ने पिछले दो बयानों को सोनू की निजी राय कह कर खारिज कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि देश में नक्सल आंदोलन अपने शुरुआती दौर के बाद से ही अलग अलग समय में ऐसे विभाजन का शिकार रहा है। सीपीआई (एमएल) के नाम के साथ अलग अलग पहचान जोड़ कर कई पार्टियां अस्तित्व में आईं।किसी ने संसदीय लोकतंत्र की राह थामी किसी ने शस्त्र ही थामे।

फिर 21 सितंबर 2004 को इस आंदोलन ने एक ताकतवर करवट ली और पीपल्स वार तथा एमसीसी जैसे दो बड़े नक्सल गुटों के विलय के साथ सीपीआई (माओवादी) का गठन हुआ।यह वामपंथी सशस्त्र आंदोलनों की दिशा में एक ऐसा बड़ा कदम था जो आने वाले समय में सरकारों के लिए बड़ी चुनौती बन गया।इस आंदोलन का विस्तार ही होता जा रहा था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने तो नक्सलवाद को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा कहा था।यूपीए सरकार के ही दौर में माओवादियों के खिलाफ बड़े सैन्य अभियान छेड़े गए और माओवादियों के इलाकों में लगातार अर्द्धसैन्य बलों की तैनाती बढ़ाई गई।2014 के बाद भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की नक्सल नीति भी यही थी।

इसी राह पर आगे बढ़ते हुए अब गृह मंत्री अमित शाह ने तो माओवादियों के सफाए का ऐलान कर दिया और डेड लाइन दी है – 31 मार्च 2026।इसके बाद से ही माओवादियों के खिलाफ ऐसी बड़ी सैन्य कार्रवाइयां शुरू हुईं कि आज इनकी कमर टूट गई है।

पार्टी की इसी हालत के कारण अभय अथवा सोनू जैसे नेताओं ने माओवादी पार्टी की अपनी राजनीतिक लाइन के विपरीत हथिया छोड़ने और बाकी पार्टियों के साथ मिल कर काम करने की मंशा जाहिर की। सोनू अथवा अभय के प्रस्ताव पर सरकार ने बहुत शादी हुई प्रतिक्रिया दी और कहा कि अभी इन बयानों की सत्यता जांची जा रही है।

सरकार जब तक बयानों को परख पाती तब तक शुक्रवार को माओवादियों की तेलंगाना राज्य समिति के प्रतिनिधि ने सोनू अथवा अभय के बयानों को उनकी निजी राय कह दिया है।

मतलब साफ है – यह साफ साफ पार्टी के दो फाड़ होने जैसी ही स्थिति है।माओवादी राजनीति के प्रेक्षकों का कहना है कि आने वाले दिनों में ऐसे और घटनाक्रम देखने – सुनने को मिलेंगे।

शुक्रवार को आए जगन के नाम वाले बयान में कहा गया, ‘इस बयान से भ्रमित होने की कोई ज़रूरत नहीं है। फ़ासीवादी भाजपा की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष तेज होना चाहिए।’

जगन ने अपने प्रेस नोट में लिखा, ‘प्रिय जनों! केंद्र में बैठी भाजपा पार्टी लंबे समय से क्रांतिकारी आंदोलन को खत्म करने की योजना बना रही है और उसे लागू भी कर रही है, और जनवरी 2024 से वह नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को नष्ट करने के लिए कगार नामक एक बड़े पैमाने पर युद्ध शुरू करेगी।’

जगन ने लिखा, ‘लोकतांत्रिक बुद्धिजीवियों के एक समूह ने एक शांति संवाद समिति का गठन किया और सरकार के समक्ष माओवादी पार्टी के साथ शांति वार्ता करने का प्रस्ताव रखा। उस प्रस्ताव के जवाब में, केंद्रीय समिति ने स्थिति स्पष्ट की कि केंद्र सरकार बिना किसी ढील के अपना युद्ध अभियान जारी रखे हुए है और खून-खराबा कर रही है। केंद्रीय गृह मंत्री ने बार-बार मार्च 2026 तक माओवादी पार्टी के सफाए का वादा किया है।’

जगन आगे लिखते हैं, ‘दूसरी ओर, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में जन संगठन और लोग कगार युद्ध को रोकने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। देश भर के कई बुद्धिजीवियों, संगठनों और मशहूर हस्तियों ने इस युद्ध को रोकने की अपील की है।’

प्रेस नोट में आगे लिखा, ‘अन्य राजनीतिक दलों ने कगार युद्ध को रोकने के लिए खूब आंदोलन किया है, लेकिन भाजपा सरकार संविधान के विरुद्ध और फासीवादी विचारधारा वाले कानून के विरुद्ध उन्मूलन कार्यक्रम जारी रखने का निर्णय लिया है।’

जगन ने लिखा, ‘कगार को रोकने के लिए देशव्यापी आंदोलन के बावजूद, भाजपा जनता के प्रति हिंसक रवैये के साथ इस नरसंहार को जारी रखे हुए है। इसके अलावा, उसने कहा है कि माओवादियों से कोई बातचीत नहीं होगी और उन्हें आत्मसमर्पण कर हथियार डाल देने चाहिए।’

जगन ने लिखा कि केंद्रीय समिति के सदस्य कॉमरेड सोनू ने घोषणा की है कि वह सशस्त्र संघर्ष रोक रहे हैं और उन्हें लंबे समय से वहां मौजूद पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की राय जानने के लिए एक महीने का समय चाहिए, और पार्टी समिति ने फैसला किया है कि वे सशस्त्र संघर्ष रोकेंगे।

प्रेस नोट कहता है कि समझ नहीं आता कि इसकी घोषणा किस तरीके से की जाती है। अगर कोई आंदोलन छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होकर कानूनी तरीके से काम करना चाहता है, तो वो पार्टी कमेटी में चर्चा करके इजाजत ले सकता है। पार्टी चैनल पर अपनी बात रख सकता है।

प्रेस नोट में आगे लिखा कि आज देश की कोई भी पार्टी इंटरनेट के जरिए सार्वजनिक बहस के जरिए ऐसे फैसले लेने की हिम्मत नहीं करेगी। यह समझना जरूरी है कि ये नुकसान एक भयानक दमन तरीके से हो रहा है। हो सकता है कि यह समस्या अभी हल न हो।

जगन ने आखिरी में लिखा, ‘तात्कालिक कार्य 2024 में पोलित ब्यूरो द्वारा जारी परिपत्र को लागू करना है। आज फिलिस्तीन में हो रहे नरसंहार को दुनिया भर में समझा जा रहा है। यानी दुनिया साई पे के नरसंहार को देख रही है।’

यह भी पढ़ें : माओवादी चिट्ठियां फर्जी या हिंसा की पस्त राजनीति ने टेक दिए घुटने?

TAGGED:ANTI NAXAL OPERATIONChhattisgarhTop_News
Byदानिश अनवर
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दानिश अनवर, द लेंस में जर्नलिस्‍ट के तौर पर काम कर रहे हैं। उन्हें पत्रकारिता में करीब 13 वर्षों का अनुभव है। 2022 से दैनिक भास्‍कर में इन्‍वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग टीम में सीनियर रिपोर्टर के तौर पर काम किया है। इस दौरान स्‍पेशल इन्‍वेस्टिगेशन खबरें लिखीं। दैनिक भास्‍कर से पहले नवभारत, नईदुनिया, पत्रिका अखबार में 10 साल काम किया। इन सभी अखबारों में दानिश अनवर ने विभिन्न विषयों जैसे- क्राइम, पॉलिटिकल, एजुकेशन, स्‍पोर्ट्स, कल्‍चरल और स्‍पेशल इन्‍वेस्टिगेशन स्‍टोरीज कवर की हैं। दानिश को प्रिंट का अच्‍छा अनुभव है। वह सेंट्रल इंडिया के कई शहरों में काम कर चुके हैं।
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